रायपुर। केंद्रीय बजट में कृषि क्षेत्र की उपेक्षा से व्यथित आइफा के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने अपने पद से दिया इस्तीफ़ा दे दिया है।
उन्होंने आइफा के राष्ट्रीय संयोजक पद से इस्तीफा देते हुए अपने त्यागपत्र में कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट 2020-21 में कृषि क्षेत्र की जिस प्रकार उपेक्षा की गई है और इससे भी ज्यादा, इसे लेकर किसान संगठनों के रवैये ने मुझे काफी व्यथित किया है। अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) का जि उद्देश्य के लिए गठन किया गया था, कि ज्यादा से ज्यादा छोटे-बड़े किसान संगठनों का एक महासंघ बना कर खेती-किसानी की समस्याओं को पुरजोर तरीके से उठायी जाएगी और जब बहुसंख्यक आवाज इस संबंध में उठेगी तो केंद्र या सरकारों का इस ओर ध्यान जाएगा. और इस तरह यह महासंघ सरकार तथा किसानों के बीच एक कारगर सेतु का कार्य करेगा।
इस पत्र में डॉ त्रिपाठी ने कहा कि राष्ट्रीय संयोजक के रूप में मैंने अपने स्तर पर कई सारे किसान संगठनों को एकजुट करने की कोशिश की. आरंभ में सभी एक इस पुनित उद्देश्य को लेकर अपना सहयोग व समर्थन का आश्वासन देते हैं, लेकिन बाद में उनका पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पाता. सभी संगठन प्रमुख अपने –अपने संगठनों की छत्र-छाया के नीचे अपनी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के प्रयास में लगे रहते हैं। उनके स्वार्थ कहीं प्रभावित ना हो इसलिए वे कई मुद्दों पर खुल कर सामने आने या फिर एकजुट होने से कतराते हैं. ऐसे में एक पुरजोर आवाज नहीं बन पाती।
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि किसान संगठनों की आइफा को लेकर संजीदगी ना होना इसके गठन के औचित्य को निरर्थक बनाता है, ऐसे में मुझे लगता है कि राष्ट्रीय संयोजक के रूप में मेरी कोई आवश्यकता नहीं है। जब सभी संगठनों को स्वतः ही नक्कार खाने में तूती की आवाज बनना ही मंजूर है, तो ऐसे में मेरा मानना है कि उन्हें जबरन एकजुट नहीं किया जा सकता। “अंततः इन सारी परिस्थितियों के लिए मैं सबसे ज्यादा जिम्मेदार, बेशक मैं अपने आप को मानता हूं। इसलिए मैं इस पद से विमुक्त होना चाहता हूं।” उनका कहना है कि उन्हें विश्वास है कि इन सब से अलग होकर वे अपनी और इस देश की खेती किसानी तथा किसानों की ज्यादा सेवा कर सकते हैं तथा कृषि क्षेत्र में देश को कुछ और बेहतर सकारात्मक परिणाम दे सकते हैं।
इस त्यागपत्र डॉ त्रिपाठी ने यह भी कहा कि
अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के संस्थापक सदस्य होने की वजह से इससे जुड़े सभी किसान संगठनों तथा उनकी मुखियाओं उनका स्वाभाविक तौर गहरा भावनात्मक लगाव रहा हैं।अतः किसान किसानी से संबंधित किसी भी सकारात्मक कार्ययोजना को उनका सहयोग और समर्थन प्राप्त होता रहेगा।