दाम्पत्य जीवन में हरि नाम ही प्रधान होना चाहिए-चिन्मयानंद

श्रीराम ज्ञान यज्ञ, लक्ष्मीनारायण महायज्ञ का पाँचवा दिन
भिलाईनगर। श्रीराम जन्मोत्सव समिति एवं जीवन आनंद फाउण्डेशन द्वारा आयोजित श्रीराम ज्ञानयज्ञ एवं श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के पाँंचवे दिन आज कथावाचक राष्ट्रीय संत श्री चिन्मयानंद बापू ने प्रभु की कथा पर श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक मार्गदर्शन दिया। उन्होंने बताया कि, कथा एक ज्ञानरूपी प्रसाद है, जिसे हम सबको मिल बांटकर खाना चाहिए। उन्होंने कहा कि, यदि इसे अकेले ही ग्रहण कर लिया तो स्वार्थी माने जाओगे। उन्होंने कहा कि, हमें ज्यादा से ज्यादा प्रभु से उपदेशों को और कथा का प्रचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि, आज के दौर में हम सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा उपयोग करते हैं लेकिन फिल्मी बातों के लिए या कई ऐसी चीजों के लिए जिससे हमारा कोई लेना देना नहीं होता। जबकि हम सबको प्रभु के उपदेशों का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। यह जितनी ज्ञानवर्धक है, उतनी ही कल्याणकारी भी है।
चिन्मयानंद बापू ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए वस्तुओं के सदुपयोग की बात कही। उन्होंने कहा कि, कैंची कपड़े काटने के लिए, चाकू सब्जी काटने के लिए बनाई गई लेकिन आजकल लोग इससे दूसरों की गर्दन काट रहे हैं। यह बिल्कुल गलत है, हमें प्रत्येक वस्तु का वही उपयोग करना चाहिए जिसके लिए उसे बनाया गया है। उन्होंने कहा कि, विज्ञान हमारे बहुत बड़ा वरदान है। इसलिए इसका उपयोग भी हमें ज्ञान के लिए करना चाहिए। चिन्मयानंद बापू ने कहा कि, विषयी और साधक दोनों एक समान गति से चलना चाहिए। उसी तरह यज्ञ में हमेशा भाग लेना चाहिए। यज्ञ का फल बांँटने से ही फलित होता है। उन्होंने उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि, यहांँ एक साथ दो यज्ञ आयोजित किये गये हैं इसलिए मौका मिला है तो गंँगा में स्नान करके धन्य हो जाओ, ऐसा मौका बार-बार नहीं आता। उन्होंने कहा कि, श्रीराम ज्ञान यज्ञ औऱ श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ का लाभ सभी को उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि, भोजन और भजन साथ करने से घर में रामराज जरूर आता है। पति और पत्नि को एक समय का ही सही लेकिन साथ में भोजन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दाम्पत्य जीवन में हरि नाम ही प्रधान होना चाहिए।
श्रीराम कथा के पांँचवे दिन चिन्मयानंद बापू प्रभु श्रीराम की बाल लीला का बखान किया। उन्होंने बताया कि प्रभु श्रीरामचन्द्र ने बाल क्रीड़ा की और समस्त नगर निवासियों को सुख दिया। कौशल्याजी कभी उन्हें गोद में लेकर हिलाती डुलाती और कभी पालने में लिटाकर झुलाती थीं। प्रभु की बाल लीला का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार माता कौशल्या ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृंगार करके पालने पर पीढ़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया, पूजा करके नैवेद्य चढ़ाया और स्वयं वहांँ गई, जहांँ रसोई बनाई गई थी। फिर माता पूजा के स्थान पर लौट आई और वहाँं आने पर पुत्र को भोजन करते देखा। माता भयभीत होकर पुत्र के पास गई, तो वहाँं बालक को सोया हुआ देखा। फिर देखा कि वही पुत्र वहाँं भोजन कर रहा है। उनके हृदय में कंपन होने लगा। वह सोचने लगी कि यहाँं और वहांँ मैंने दो बालक देखे। यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष कारण है। प्रभु श्री रामचन्द्रजी माता को घबराया हुआ देखकर मधुर मुस्कान से हंस दिए फिर उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भूत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं माता का शरीर पुलकित हो गया, मुख से वचन नहीं निकलता। तब आँखें मूंदकर उसने रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाया। माता को आश्चर्यचकित देखकर श्री रामजी फिर बाल रूप हो गए।
कथास्थल में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ श्रीराम जन्मोत्सव समिति के युवा विंग अध्यक्ष मनीष पाण्डेय, जीवन आनंद फाउण्डेशन के प्रमुख विनोद सिंह, प्रीतपाल बेलचंदन, जयशंकर चौधरी, बसंत प्रधान, प्रशांत पाण्डेय, प्रभुनाथ मिश्रा, बुद्धन सिंह ठाकुर, रमेश माने, अजय पाठक आदि उपस्थित थे।
यज्ञ में आहूतियाँं डाल की जनकल्याण की प्रार्थना
श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के तहत आज जोड़ों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आहुति डालकर जन कल्याण के लिए प्रार्थना की। सैकड़ों की संख्या में पुरुष एवं महिलाओं ने यज्ञ स्थल पर पहँुंचकर यज्ञशाला की परिक्रमा की। यज्ञशाला के दर्शन एवं परिक्रमा कर प्रभु के दर्शन का लाभ लिया। महायज्ञ संचालक ने बताया कि महायज्ञ के आयोजन का बड़ा महत्व है। इससे भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है। यज्ञ हमारे जीवन का हिस्सा है। इससे पर्यावरण का संरक्षण होता है।

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