जगदलपुर। मां दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित दुर्लभ अष्टधातु निर्मित मां दंतेश्वरी की प्रतिमाएं वर्ष 1890 में राजमहल के निर्माण के साथ ही मां दंतेश्वरी मंदिर बनाया गया, तब से संगमरमर से निर्मित मां दंतेश्वरी की मूर्ति के नीचे यह तीनों अष्टधातु प्रतिमा भी स्थापित की गई हैं। लगभग 800 वर्ष पूर्व वारंगल से राजा अन्नम देव के साथ बस्तर आई मां दंतेश्वरी के मूर्तियों की पूजा आज भी हो रही है यह प्रतिमाएं शताब्दियों से राजबाड़ा परिसर स्थित दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित हैं। प्रतिवर्ष बस्तर दशहरा के मौके पर इन्हे गर्भगृह से बाहर निकाल तथा दक्षिणमुखी स्थापित कर पूजा की जाती है जहां-जहां बस्तर के राजाओं की राजधानी रहीं,माता की अष्टधातु से बनी यह मूर्तियां भी वहां- वहीं रही है।
मंदिर के मुख्य पुजारी प्रेम पाढ़ी बताते हैं कि प्रति वर्ष शारदीय नवरात्रि के पहले दिन इन मूर्तियों को गर्भगृह से बाहर निकाल तथा दक्षिणमुखी स्थापित करने के बाद ही मंदिर में बस्तर दशहरा की पूजा विधिवत शुरू होती है। मां दंतेश्वरी की डोली विदाई के बाद इन मूर्तियों को वापस गर्भगृह में स्थापित कर दिया जाता है। मंदिर में पुजारियों ने बताया कि अष्टधातु निर्मित तीनों मूर्तियां मां दंतेश्वरी की हैं एक चारभुजी, दूसरी अष्टभुजी और तीसरी मूर्ति दशभुजी है इनका वजन करीब तीन-तीन किग्रा है।
बस्तर राज परिवार के कमलचंद्र भंजदेव बताते हैं कि करीब 800 साल पहले वारंगल के महाराजा अन्नमदेव अपनी कुलदेवी मां दंतेश्वरी की मूर्तियों केसाथ बस्तर आए थे, उनके निधन के बाद बारसूर, दंतेवाड़ा, बड़ेडोगर, मधोता, बस्तर में काकतीय राजाओं की राजधानी रही, इसलिए देवी की यह प्रतिमाएं भी वहां रहीं है, वर्तमान में राजबाड़ा परिसर स्थित दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित हैं।