सामाजिक नियम भी संवैधानिक हो – शंकर रात्रे

धमतरी। भारतीय संविधान देश कि आत्मा है इनमे सैकड़ो बार संशोधन भारत की आत्मा कि छलनी कि है। जो संविधान एक एक भारतीय को गर्भ से लेकर मरणोपरांत तक उसका हक अधिकार देता है, लोक उसकी चर्चा तक नही करते जबकि अन्य पुस्तको को बड़ी श्रध्दा-भ्क्ति के साथ पढी़ जाती है। भारतीय समाज अपने सामाजिक नियमो पर कभी अध्ययन नही कि बल्कि सनातन सामाजिक व्यवस्था के प्रभाव मे आकर कट्टरता का रूख अपनाते गये। जबकि आज की आवष्यकता है, कि हमारा सामाजिक नियम भी संवैधिक होना चाहिए।”
उपरोक्त बातें सर्व समाज पिछडा वर्ग,एससी,एसटी, अल्प संख्यक महासंघ के जिला संयोजक षंकर रात्रे ने सतनाम सेवा समिति एवं पेय बेक टू सोसायटी ब्लाक करूद के द्वारा ग्राम थूहा-बंगोली गुरूघासीदास आश्रम मे आयोजित संविधान दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के बतौर कही। उन्होने कहा कि विष्व महामानव डॉ अम्बेडकर साहब भारतीय समाज को पांॅच हजार वर्शो कि गुलामी से आजादी दिलायी। आज पुर्ण रूप से संविधान लागु नही होने के कारण लोग अपने अधिकारो से वंचित है।
सभा को समिति के अध्यक्ष चोमन जोषी,खिलावन बारले, डेमन कुर्रे,गजेन्द्र टण्डन, तेजेष्वर कुर्रे, बंजारे भालुकोना, दिनेष्वर बंजारे, ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर सामूहिक रूप से संविधान कि प्रस्तावना का वाचन किया। सभा का संचालक समिति के सदस्य भावसिंह डहरे ने किया। सभा मे डॉ रोहित कुर्रे, संत इतवारीदास सोनवानी सहित बड़ी संख्या मे प्रबुध्दजन उपस्थित थे।

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