ग्वालियर। रक्षा अनुसंधान के क्षेत्र में भारत ने फिर एक बार अपना कद बढाया है। रासायनिक एवं जैविक हमलों से बचाव की मानक तकनीक के मामलें में भारत को अब अन्य विकसित देशों के भरोसे नहीं रहना होगा। डीआरडीई ( रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना) ग्वालियर के विज्ञानियों द्वारा तैयार देसी मानकों को अब राष्ट्रीय मानक मानते हुए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) से मान्यता मिल गई है। अब देसी मानकों के आधार पर बने उपकरण ही रासायनिक हमलों से बचाव में कारगर साबित होंगे। ऐसा करने वाला भारत विश्व में चौथा देश बन गया है। अभी तक यूएस, जर्मनी एवं ब्रिटेन के मानकों को ही मान्यता थी । डीआरडीई के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ मनीषा साठे की टीम द्वारा तीस सालों की मेहनत के बाद यह सफलता हासिल हुई है। डीआरडीई के विज्ञानी इसे रक्षा अनुसंधान के आत्मनिर्भरता का बड़ा कदम बता रहे हैं।
डीआरडीई ने कठिन प्रयोगों, व्यापक परीक्षण और मूल्यांकन के बाद रासायनिक-जैविक खतरों का मुकाबला करने के लिए अनेक उत्पादों (सूट, मास्क, जूते, चश्मे) और तकनीक (बॉयो डाइजेस्टर) का विकास किया है। डीआरडीई द्वारा बनाए गए उपकरण सेना और बड़े विभागों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हैं। सबसे लेटेस्ट एनबीसी (न्यूक्लियर बॉयोलॉजिकल एंड केमिकल) सूट मार्क-फाइव उत्पाद है, जिसे सेनाओं द्वारा उपयोग किया जा रहा है। इन्हें तैयार करने वाले प्रोटोकॉल को ही राष्ट्रीय मानक माने जाने की मान्यता मिली है।
00 डीआरडीई ग्वालियर: रक्षा अनुसंधान में अग्रणी प्रयोगशाला :
डीआरडीई ग्वालियर रसायन-जैव रक्षा तकनीकी के विकास के लिए देश की अग्रणी प्रयोगशाला है। इसने रासायनिक और जैविक युद्ध एजेंटों के उपयोग के खिलाफ राष्ट्रीय तैयारियों में अहम योगदान दिया है। पिछले 30 साल से रासायनिक एजेंटों के खिलाफ एनबीसी (न्यूक्लियर-बायोलॉजिकल एवं केमिकल) उपकरणों का परीक्षण, मूल्यांकन, उनकी सुरक्षात्मक और पहचान क्षमता को परखने के लिए डीआरडीई विज्ञानी रिसर्च कर रहे थे। डीआरडीई की वरिष्ठ विज्ञानी डॉ मनीषा साठे की टीम में डॉ शिव प्रकाश शर्मा, डॉ प्रभात गर्ग, डॉ वीरेंद्र विक्रम सिंह और पुष्पेंद्र शर्मा शामिल हैं। डीआरडीई के जैव विज्ञान महानिदेशक डॉ एके सिंह ने डायरेक्टर डॉ डीके दुबे और सहनिदेशक डॉ एके गुप्ता की उपस्थिति में इस पहले भारतीय मानक को जारी किया गया।