नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में अपना फैसला सुना दिया है। विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला को सौंपा गया है। वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही उचित स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का निर्णय सुनाया। बता दें कि सन 1885 में राम चबूतरा क्षेत्र में पहली बार मंदिर बनाने की इजाजत मांगे जाने का मुकदमा दर्ज हुआ था।
यह है मामला
सन 1885 में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरा क्षेत्र में एक मंदिर बनाने के लिए मुकदमा दायर किया था। उस वक्त बाबरी मस्जिद के मुतावली होने का दावा करने वाले मोहम्मद अशगर ने इस मुकदमे का विरोध किया। उन्होंने कुछ इंच तक भूमि के सीमांकन में आपत्ति दर्ज की थी, लेकिन उन्होंने पर्याप्त आपत्तियां नहीं उठाईं। इसके बाद मुकदमा खारिज कर दिया गया। अदालत का मानना था कि मंदिर बनाने की अनुमति देने से दो समुदायों के बीच दंगे भड़क सकते हैं। राम लला की ओर से यह दलील दी गई कि 1885 के मुकदमे को पूर्व निर्णीत के रूप में संचालित किया गया। यानी कानूनन एक निर्धारित बिंदु जिसके बारे में फिर से निर्णय नहीं दिया जा सकता है।
वर्ष 2010 का फैसला
इसके बाद सन 2010 में न्यायमूर्ति खान ने आदेश दिया कि आदेश अनिवार्य रूप से एक यथास्थिति आदेश था और किसी भी कानूनी मुद्दों पर निर्णय नहीं लिया गया था और इसलिए मुस्लिम पक्ष को बाध्य नहीं कर सकता। वहीं जस्टिस शर्मा ने कहा था कि चूंकि महंत और मुतावली को विवाद में रुचि रखने वाले सभी पक्षों की ओर से मुकदमा लड़ने वाला नहीं कहा जा सकता है। इसलिए यह पार्टियों के लिए बाध्यकारी नहीं हो सकता है।
नवंबर-दिसंबर महत्वपूर्ण रहे
इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के लिहाज से नवंबर-दिसंबर माह काफी अहम रहा है। इस विवाद की सभी महत्वपूर्ण घटनाएं नवंबर और दिसंबर में ही हुईं हैं। इन दो महीनों में ही राममंदिर के लिए शिलान्यास कार्यक्रम, गोलीकांड व बाबरी विध्वंस जैसी घटनाएं हुईं। 9 नवंबर 1989 को हुए शिलान्यास कार्यक्रम ने अयोध्या विवाद को वृहद रूप देने का काम किया था तो अब एक बार फिर नवंबर 2019 में सुप्रीम ने फैसला सुनाया।
मध्यस्थता की पहल
मामले को सुलह-समझौते से निपटाने के लिए पहली बार कोर्ट की पहल पर ही मध्यस्थता की कार्रवाई भी नवंबर माह में ही शुरू हुई थी। 16 नवंबर 2017 को आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर को मध्यस्थ बनाया गया। उन्होंने कई पक्षों से बात की और अदालत के बाहर मामले का हल निकालने का प्रयास किया।
दिसंबर में हुए अधिकांश विवाद
इसी तरह दिसंबर माह भी अयोध्या विवाद में अहम रहा है। अयोध्या विवाद की शुरुआत 22-23 दिसंबर 1949 की रात तब हुई जब हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढऩा बंद कर दिया। दूसरी घटना में 5 दिसंबर 1950 को महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया। 17 दिसंबर 1959 को निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया। जबकि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी 18 दिसंबर 1961 को बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया। अयोध्या मामले के सबसे बड़ी घटना जिसे बाबरी विध्वंस के नाम से जाना जाता है वह भी 6 दिसंबर 1992 को ही घटित हुई। हजारों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दी। इसके बाद सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया। जल्दबाजी में एक अस्थाई राममंदिर बनाया गया। इसके बाद 16 दिसंबर 1992 को मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एमएस लिब्राहन आयोग का गठन हुआ।