शुरू होने के पहले ही विवादों में घिरी जल जीवन मिशन योजना, रद्द हो सकते हैं हजारों करोड़ रुपये के कार्य आबंटन, बंदरबांट के आरोप पर सीएम ने दिखाई सख्ती, परीक्षण के दिये आदेश

रायपुर। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रो में 38 लाख घरों तक पानी पहुंचाने की जल जीवन मिशन योजना शुरू होने के पहले ही विवादों में आ गयी है। केंद्र सरकार के सहयोग से राज्य के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा संचालित करीब 13 हजार करोड़ रुपए की इस योजना में अधिकांश ठेके हो गए हैं। इतना ही नहीं अब तक हुए 7 हजार करोड़ के ठेके में 6 हजार करोड़ रुपये के काम बाहरी कम्पनियों को दे दिया गया। जानकारी के मुताबिक इन मे से कुछ कम्पनियों ने स्थानी फर्मों के साथ कंसोर्टियम बनाकर ठेके हासिल किए। इसके अलावा करीब एक हजार करोड़ रुपये का कार्य राज्य के ठेकेदारों को दिया गया है। स्थानीय ठेकेदारों का आरोप है कि बाहरी कम्पनियों को मैदानी इलाकों का काम दिया गया है जबकि स्थानीय कम्पनियों को दूर-दराज के क्षेत्रों का काम।

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप लाइन के माध्यम से 43.17 लाख घरों में से अब तक 4.82 लाख (11% ) घरों में ही पानी की सप्लाई की जा रही है। जल जीवन मिशन के माध्यम से 38.34 लाख घरों में पानी सप्लाई का लक्ष्य है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को जल जीवन मिशन की घोषणा की थी। इसके तहत साल 2024 तक हर घर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है। योजना के संचालन में जो भी खर्च आने आता है, उसका 45 प्रतिशत केंद्र सरकार, 45 प्रतिशत राज्य सरकार और 10 प्रतिशत संबंधित पंचायतों को वहन करना होता है।

सात करोड़ रुपये के आबंटित कार्य मे 4500 करोड़ के ठेके पूरी तरह से संदेह के दायरे में है। इस मामले में कंपनियों के लिए टेंडर शर्ते काफी लचीले बनाए गए थे। इसका फायदा उठाते हुए कई कंपनियों ने ठेके हासिल किए। यह बात सामने आई है कि प्रदेश के बाहर की कुल 44 कंपनियों को काम दिया गया। इतना ही कुछ को रेट कांट्रेक्ट कर काम दिया गया । इन्हें तीन चौथाई काम दिए गए। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने पाइप निर्माता, इंजीनियरिंग और कंप्यूटर और उसकी एसेसरीज बनाने वाली अनुभवहीन कंपनियों को भी काम दे दिया गया। इससे नाराज प्रदेश के फर्मों और ठेकेदारों ने सीएम बघेल और पार्टी के अन्य हलकों में इसकी शिकायतें की थीं। इस संबंध में बताया गया है कि योजना के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आफर बुलाए गए थे। ऐसे नियम बने कि यदि किसी कंपनी के पास अनुभव नहीं है तो वह ज्वाइंट वेंचर कर टेंडर कर सकती है। इसमें वह स्थानीय कंपनियों को शामिल कर सकती है। लेकिन कुछ ने ऐसा किया कुछ ने नहीं। इन बाहरी कंपनियों को उनके टर्नओवर पर रेट कांट्रेक्ट पर ही काम दिया गया। इस छूट का फायदा महाराष्ट्र, गुजरात ,तेलंगाना की कंपनियों को मिला। मैदानी इलाकों के काम बाहरी कंपनियों को दिया गया। इनमें पटेल इंजीनियरिंग मुंबई, लक्ष्मी इंजीनियरिंग कोल्हापुर, गाजा इंजीनियरिंग तेलंगाना, सुधाकर इंफोटेक हैदराबाद, एनएसटीआई कंस्ट्रक्शन कंपनी हैदराबाद, पीआर प्रोजेक्ट इंफ्रास्ट्रक्टर दिल्ली प्रमुख हैं। पीएचई में ए-श्रेणी के ठेकेदारों के लिए काम की असीमित पात्रता है, बी-श्रेणी वालों के लिए 10 करोड़, सी-श्रेणी वालों के लिए 2 करोड़ और डी-श्रेणी वालों के लिए एक करोड़ की पात्रता निर्धारित है। लेकिन शिकायतें यह की गईं कि डी-श्रेणी के ठेकेदारों को भी 4 से 10 करोड़ रुपए तक का काम दे दिया गया है।

इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जल जीवन मिशन के अंतर्गत कार्य आबंटन प्रक्रिया के संबंध में प्राप्त हो रही विभिन्न शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए इन शिकायतों के परीक्षण के लिए मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव वित्त और सचिव लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की तीन सदस्यीय टीम गठित की है।

इस जांच कमेटी में मुख्य सचिव आरपी मंडल, एसीएस वित्त अमिताभ जैन और पीएचई सचिव कोमल सिद्धार्थ परदेसी को रखा गया है। ज्ञातव्य हो कि राज्य बनने के बाद यह अब तक की सबसे बड़ी जांच कमेटी है।

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