आखिर, कोरोना एंटिबॉडी की उम्र कितनी है?

नई दिल्ली। दुनियाभर में इंसानी शरीर के अंदर कोरोना एंटीबॉडीज की उम्र को लेकर बहस छिड़ी हुई है। अलग-अलग देश के विशेषज्ञों की इस विषय पर भिन्न राय है। किसी ने इसे छह महीने बताया तो कुछ एंटीबॉडी की उम्र तीन माह बता रहे हैं। भारत मानवीय शरीर में कोरोना एंटीबॉडी की सही उम्र (शरीर में प्रभावी रहने की अवधि) का सटीक जानकारी जुटाना चाहता है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में पहल शुरू कर दी है। अपने अध्ययन में विशेषज्ञ कोरोना संक्रमित और और ठीक हो चुके दोनों ही तरह समूह पर अपना अध्ययन शुरू कर दिया है।
जानकारी के मुताबिक भारतीय वैज्ञानिकों को एंटीबॉडीज के प्रभावी रहने की सही अवधि पता करने में 6 महीने का वक्त लग सकता है। एनआईवी के डायग्नोस्टिक वॉयरोलॉजी समूह के डॉ. गजानन एन सपकाल के मुताबिक सार्स कोविड-19 वायरस की एंटीबॉडीज से संबंधित यह अध्ययन बेहद महत्वपूर्ण होने के साथ आवश्यक भी है। इसके पीछे एक खास वजह प्लाजमा थेरेपी भी ळै। विशेषज्ञ के मुताबिक यह लंबे समय तक चलने वाला अध्ययन है, जिसके तहत कोरोना संक्रमण से उबर चुके लोगों के शरीर में विकसित एंटीबॉडीज की निगरानी की जाएगी। डॉ. सपकाल के मुताबिक कोरोना काल में फ्लू और निमोनिया के लक्षणों को नजरदांज नहीं किया जाना चाहिए। अगर दोनों परेशानी होने का संदेह हो, लक्षण उभरे तो तत्काल चिकित्सकीय परीक्षण कराना चाहिए। वहीं निमोनिया होने पर कोरोना से संबंधित जांच जरूर कराना चाहिए।
कोरोना ने नहीं बदला रूप
देश में कोरोना वायरस के कई स्ट्रेन होने की जानकारी तो सामने आई है, लेकिन इस बीच सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि कोविड-19 ने अभी तक अपना रूप नहीं बदला है। एनआईवी के वैज्ञानिकों के मुताबिक कुछ देशों में सार्स कोविड-19 के रूप में बदलाव देखने को मिले हैं। जिसका खामियाजा उपचार, पहचान, निगरानी और टीकाकरण की प्रक्रिया में भुगतना पड़ा, लेकिन भारत में अभी तक इस वायरस के रूप में बदलाव के प्रमाण नहीं मिले हैं।

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