रायपुर। वित्तमंत्री के एमएसएमई क्षेत्र के लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज के बाद अब देश के खुदरा व्यापारियों को वित्तीय संकट से निपटने के लिए अपने लिए भी इसी तरह के पैकेज की उम्मीद है। देशभर के व्यापारी वित्तीय संकट में हैं और यदि सरकार ने व्यापारिक समुदाय को नहीं संभाला, तो पूरे देश में लगभग 20 प्रतिशत छोटे व्यवसाय को एक प्राकृतिक मौत के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
अपने व्यवसाय के भविष्य के बारे में व्यापारिक समुदाय की चिंताओं के बीच और पिछले एक महीने से अधिक समय से एक आर्थिक पैकेज की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हुए विभिन्न राज्यों के व्यापारी नेताओं ने व्यापारियों के लिए आर्थिक पैकेज में देरी पर चिंता व्यक्त की है। काॅन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल के लिए वोकल के स्पष्ट आह्वान को व्यापारियों के माध्यम से ही पूरा किया जा सकता है क्योंकि वे देश के 130 करोड़ लोगों के लिए पहला बिंदु संपर्क हैं।
अपनी नियमित दैनिक वीडियो कॉन्फ्रेंस में विभिन्न राज्यों के प्रमुख व्यापारी नेताओं से परामर्श करने के बाद काॅन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज (कैट) ने पहले ही वित्त मंत्री सीतारमण को उन चिंताओं और मुद्दों से अवगत कराया है जिनके लिए व्यापारियों को राहत पैकेज का इंतजार है।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी ने कहा कि राहत पैकिज से सम्बधित व्यापारियों की इच्छा सूची में उनके कर्मचारियों को वेतन के भुगतान के लिए वित्तीय सहायता, नकद सहित बैंकों से व्यापारियों द्वारा लिए गए ऋण पर लॉकडाउन की अवधि के लिए ब्याज की अदायगी को माफ करना , मुद्रा ऋण में अधिकतम ऋण सीमा को रु 10 लाख से रु 25 लाख तक का विस्तार, ईएसआई और भविष्य निधि में नियोक्ता के योगदान की छूट शामिल हैं । कैट ने सरकार को ईएसआई फंड में जिसमें लगभग 91000 करोड़ रुपये का फंड है और श्रम कल्याण निधि में लेबर वेलफेयर फंड है में से सरकार व्यापारियों के अंश का भुगतान लॉक डाउन की अवधि से लेकर छह महीने तक के लिए दे ।
श्री पारवानी ने यह भी मांग की कि सरकार को बैंकों को निर्देश दे की व्यापारियों को एक विशेष करोना ऋण दे जिस पर 3 प्रतिशत ब्याज दर हो और वो 60 समान किश्तों में भुगतान हो और पहली किश्त जनवरी 2021 से शुरू हो । इस ऋण को किसी भी ऋण के खिलाफ समायोजित नहीं किया जाना चाहिए और व्यापारियों को कार्यशील पूंजी के रूप में प्रदान किया जाना चाहिए। कैट ने यह भी मांग की है कि आरबीआई की व्यापार प्राप्य योजना के तहत, एक वर्ष के लिए खरीदारों के टर्नओवर की सीमा को 300 करोड़ रुपये से घटाकर 10 करोड़ रुपये कर दिया जाना चाहिए, जिससे व्यापारियों को उनकी स्कीम के तहत मिलने वाली बिलों में छूट मिल सके।
श्री पारवानी ने आगे कहा कि डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए, डिजिटल भुगतान लेनदेन पर लगाए गए बैंक शुल्क को व्यापारियों और उपभोक्ताओं से माफ कर दिया जाना चाहिए और सरकार को उक्त राशि को सीधे बैंकों को सब्सिडी देनी चाहिए ।
भारत के खुदरा व्यापार में लगभग 7 करोड़ व्यापारी हैं जो लगभग 40 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं और लगभग 50 लाख करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार करते हैं।