बिलासपुर। सुबह 7 बजे नेहरू चौक के पास छत्तीसगढ़ भवन के पास मजदूरों के कुछ एक परिवारों को देखकर राह चलते लोगों कौतुहल होता रहा। साथ में छोटे-छोटे बच्चे और महिलाओं के साथ छत्तीसगढ़ भवन के पास रुका,मजदूरों का यह कारवां, कहां से आ रहा था…? और कहां इसे जाना है…? जैसे बहुत से सवाल राह चलते लोगों के मन मस्तिष्क को झंझोरने लगे। पूछने पर इन लोगों ने बताया कि वे उड़ीसा के संबलपुर में रोजी-रोटी कमाने गए हुए थे। लॉक डाउन के चलते काम-धाम बंद होने से उनके सामने दो वक्त की रोटी और छत के साए की समस्या खड़ी हो गई। कुछ दिन उन्होंने इस उम्मीद में गुजारे कि शायद कोई इंतजाम हो जाए। लेकिन जब, सब तरफ से हताशा और निराशा ही दिखाई देने लगी तो इनको अपना घर-अपना गांव याद आने लगा। जहां भले 2 जून की रोटी बहुत कठिन हो। गरीबी के चलते जहां रहना मुश्किल हो। लेकिन इसके बावजूद लॉक डाउन सरीखे बेबसी के दिनों में अब इन्हे अपना वही बदनसीब गांव याद आ रहा है। जहां और कुछ हो ना हो, अपनापन तो है। अपने लोग तो हैं। अपने पहचाने खेत-खार, खलिहान, पगडंडियां और पनघट तो हैं। लिहाजा अपनेपन की इसी सुकून भरी छांह की तलाश में उड़ीसा से चला श्रमिकों का यह दल गांव-गांव, पांव-पांव होते हुए बिलासपुर तक आ पहुंचा है। यहां किसी ने उन्हें सुबह का नाश्ता और छत्तीसगढ़ भवन से शीतल जल प्रदान कर दिया। दो घडी यहीं ठहर कर एक बार फिर यह कारवां निकल पड़ेगा। बिलासपुर से मध्य प्रदेश में स्थित टीकमगढ़ जिले के अपने गांव के लिए निकल पड़े।