नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को छुट्टी होने के बावजूद एक बलात्कार पीड़िता की 27 सप्ताह से अधिक के भ्रूण के गर्भपात की मांग वाली याचिका पर विशेष सुनवाई की और गर्भपात से जुड़े इस अर्जेंट मामले पर ध्यान देने में “असुविधाजनक रवैया” अपनाने पर गुजरात हाई कोर्ट को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई में “तात्कालिकता की भावना” (sense of urgency) होनी चाहिए। ऐसे मामलों में बर्बाद हुए बहुमूल्य समय का एहसास न करने के लिए गुजरात हाई कोर्ट की आलोचना करते हुए, जस्टिस बीवी नागरत्ना की अगुवाई वाली पीठ ने रविवार तक पीड़िता की ताजा मेडिकल रिपोर्ट मांगी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सोमवार (21 अगस्त) को एक बार फिर से मामले की सुनवाई करेगी।
जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने शनिवार को एक विशेष सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे मामलों में तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए। पीठ ने इसे सामान्य मामला मानने और इसकी सुनवाई स्थगित करने के ‘ढीले-ढाले रवैये’के लिये हाई कोर्ट की आलोचना की। पीठ ने महिला की याचिका पर गुजरात सरकार एवं अन्य को नोटिस जारी करके उनसे जवाब तलब भी किया है।
याचिकाकर्ता के वकील ने शीर्ष अदालत को अवगत कराया कि 25 वर्षीय एक महिला ने 7 अगस्त को हाई कोर्ट का रुख किया था और मामले की सुनवाई अगले दिन हुई थी। उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट ने 8 अगस्त को गर्भावस्था की स्थिति के साथ-साथ याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश जारी किया था। उन्होंने बताया कि जिस मेडिकल कॉलेज में जांच की गई थी, उसने 10 अगस्त को रिपोर्ट सौंपी थी।
शीर्ष अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि हाई कोर्ट ने 11 अगस्त को रिपोर्ट रिकॉर्ड में लिया था, लेकिन ‘विचित्र रूप से’ मामले को 12 दिन बाद यानी 23 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज किया गया कि मामले के तथ्यों एवं परिस्थितयों की पृष्ठभूमि में हर एक दिन की देरी महत्वपूर्ण थी। पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने उसके संज्ञान में लाया है कि हाई कोर्ट ने 17 अगस्त को याचिका खारिज कर दी थी, और इसका कोई कारण नहीं बताया था और संबंधित आदेश को अभी तक हाई कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील विशाल अरुण मिश्रा ने पीठ को बताया कि जब मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था, तब याचिकाकर्ता महिला 26 सप्ताह की गर्भवती थी। पीठ ने मौखिक टिप्पणी की, ”अनुचित तात्कालिकता नहीं होनी चाहिए, लेकिन कम से कम ऐसे मामलों में तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए और इसे किसी भी सामान्य मामले की तरह मानने तथा सुनवाई स्थगित करने का ढीला-ढाला रवैया नहीं होना चाहिए। हमें यह कहते हुए और टिप्पणी करते हुए खेद है।”
याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ को बताया कि आज की तारीख में याचिकाकर्ता 27 सप्ताह दो दिन की गर्भवती है और जल्द ही, उसकी गर्भावस्था का 28वां सप्ताह करीब आ जाएगा। उन्होंने आग्रह किया कि मेडिकल बोर्ड से नयी रिपोर्ट मांगी जा सकती है। पीठ ने कहा, ”इन परिस्थितियों में, हम याचिकाकर्ता को एक बार फिर जांच के लिए अस्पताल जाने का निर्देश देते हैं और नवीनतम स्थिति रिपोर्ट रविवार की शाम 6 बजे तक इस अदालत को सौंपी जा सकती है।”
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह इस मामले में उच्च न्यायालय के आदेश का इंतजार करेगी। पीठ ने कहा, ”हम आदेश का इंतजार करेंगे। आदेश के अभाव में हम उसके सही या गलत होने पर कैसे विचार कर सकते हैं।” पीठ ने मेडिकल बोर्ड द्वारा उच्च न्यायालय में दाखिल की गयी रिपोर्ट के बारे में भी पूछा। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक, गर्भपात कराया जा सकता है। गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत, विवाहित महिलाएं, बलात्कार पीड़िता, दिव्यांग और किशोरियों के लिए गर्भपात की अवधि 24 सप्ताह (तक का गर्भ) है।