( उनके 10 वर्ष संघर्ष का परिणाम,सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों को दिया, ससम्मान राष्ट्रीय-ध्वज फहराने का अधिकार )
रायपुर। अथक प्रयासों एवं दृढ निश्चय के चलते, रायपुर में 23 जनवरी 2013 और अब खनिज पदार्थों से भरपूर झारखंड की राजधानी रांची के वार मेमोरियल में 9 जनवरी 2020 को राज्यपाल द्रोपदी मुर्मु ने 108 फुट ऊंचे स्तंभ पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया तो कश्मीर से कन्या कुमारी तक देश तिरंगामय हो गया। कुरुक्षेत्र के पूर्व सांसद नवीन जिन्दल की अगुवाई में फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा स्थापित यह 79वां तिरंगा राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास का बखान कर ही रहा है, उन वीर जवानों के बलिदान की भी याद दिला रहा है जिन्होंने देश की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
1991 के बाद देश में बदलाव की ऐसी बयार बही कि जात-पात, पंथ-मजहब, क्षेत्र-भाषा व बोलियों से ऊपर उठकर एक हिंदुस्तानी कहलाने की ललक युवाओं में जागने लगी। भारत में अलग-अलग काल में परिवर्तन के अलग-अलग कारक रहे हैं। कभी मध्य-पूर्व तो कभी पश्चिम ने भारत की आबोहवा को प्रभावित किया। इस बार सुदूर पश्चिम के देश अमेरिका से हवा चली। आई.आई.टी., आई.आई.एम. और अन्य बड़े भारतीय संस्थानों से निकली युवाओं की टोली ने अमेरिका में जाकर लोकतंत्र का विराट रूप देखा तो उनके मन में भी ललक पैदा हो गई। वे भी सोचने लगे कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में भी लोकतंत्र का यह रूप उतर आए तो उन्हें अमेरिका आकर काम-धाम करने और यहां की संस्थाओं में शिक्षा हासिल करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। युवाओं की इसी टोली में शामिल थे महात्मा गांधी को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले श्री नवीन जिन्दल। उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया अमेरिकियों के आत्मानुशासन, देश के प्रति उनके प्रेम और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति उनके लगाव ने। वे अपने झंडे को हर दिन सम्मानपूर्वक घर, दफ्तर कहीं भी फहराते, उसे अंग लगाते। श्री जिन्दल ने यूनिवर्सिटी ऑफ डलास एट टेक्सास में रहते हुए अमेरिकियों के देशप्रेम पर अनवरत शोध किया, इस ऐंगल से भी कि भौतिकवाद को बढ़ावा देने वाले इस देश के लोगों का अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम कहीं दिखावा तो नहीं है। वह अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमेरिकियों की देशभक्ति में सच्चाई है और इसकी प्रेरणा उन्हें उनके लाल, सफेद और नीले रंग के राष्ट्रीय ध्वज से मिलती है। इसके बाद उन्होंने अमेरिका में रहते हुए ही भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया, तिरंगा को अपना धर्म बना लिया।
नवीन जिन्दल ने अमेरिका में रहते हुए ही संकल्प ले लिया था कि वह भारत में हो रहे बदलाव के साथी बनेंगे और भारतीयों में देशप्रेम की लौ जलाएंगे। भारत आकर श्री जिन्दल ने अपने घर-दफ्तर में पूरे सम्मान के साथ तिरंगा फहराने की परम्परा बरकरार रखने की कोशिश की। वह जहां कहीं भी जाते राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को पुनर्जागरण का स्रोत बताते हुए ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को इसे फहराने के लिए प्रोत्साहित करते लेकिन तब तक भारत में तिरंगे को सरकारी तंत्र से आजादी नहीं मिली थी। कानून के मुताबिक आम भारतीय नागरिक कुछ खास अवसरों पर ही राष्ट्रीय ध्वज फहराकर अपने देशप्रेम की भावना का परिचय दे सकता था इसलिए बिलासपुर के तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने श्री जिन्दल को अपनी रायगढ़ स्थित फैक्टरी में नियमित रूप से तिरंगा फहराने से साफ मना कर दिया। यही वह वक्त था जब श्री जिन्दल ने तिरंगा को सरकारी तंत्र से आजाद कराने का संकल्प लिया। वे 1995 में दिल्ली हाईकोर्ट गए और 23 जनवरी 2004 को सुप्रीम कोर्ट से विजय पताका लहराते हुए पूरे देश में छा गए। इसके बाद जन-जन तक देशभक्ति की भावना पहुंचाने के लिए शुरू हुई नवीन जिन्दल की तिरंगा यात्रा, जो अनवरत जारी है। श्री जिन्दल कहते हैं कि यह वही तिरंगा है जो आजादी के आंदोलन का प्रेरणा स्रोत था और आज देश की एकता, अखंडता और विकास का पवित्रतम प्रतीक है।
एक आम आदमी के रूप में तिरंगा को जन-जन तक पहुंचाने की जंग जीतने वाले नवीन जिन्दल द्वारा जगाई गई चेतना का ही असर है कि आज हर हाथ में तिरंगा है। जब भी देश को कोई सम्मान मिल रहा हो, तो वहां तिरंगा सबसे पहले नजर आता है। खेल के मैदान से लेकर राजनीति के मैदान तक तिरंगा ही तिरंगा नजर आ रहा है तो इसका श्रेय बेहिचक उन्हें जाता है। आसमान का रंग तिरंगा और हर हाथ में झंडा की जो यात्रा उन्होंने शुरू की थी, वह अब तिरंगा आंदोलन का रूप ले चुका है।
श्री जिन्दल कहते हैं, “राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमारे गणतंत्रीय स्वाभिमान की पताका है जिसमें हमें अपने संविधान के आदर्शों के दर्शन होते हैं। राष्ट्रीय ध्वज न सिर्फ जीवन में आवश्यक मूल्यों का प्रतीक है बल्कि यह उन लाखों लोगों के अथक संघर्ष का उद्बोधक भी है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। आज दुनिया में सबसे अधिक युवा आबादी के साथ भारत विकास की ओर अग्रसर है। इसलिए युवा पीढ़ी पर तिरंगे की आन-बान-शान को आगे ले जाने की अहम जिम्मेदारी है। मैं देश के युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे गर्व के साथ तिरंगा फहराएं और अपने देशप्रेम का इजहार करें।” अपनी तिरंगा यात्रा के दौरान कुरुक्षेत्र के पूर्व सांसद श्री नवीन जिन्दल ने कई और उपलब्धियां हासिल की। पहले कोई भी व्यक्ति तिरंगा टोपी नहीं पहन सकता था, अपने कपड़ों पर लैपल पिन या किसी अन्य रूप में तिरंगे का उपयोग नहीं कर सकता था और रात में तिरंगा फहराना तो पूरी तरह वर्जित था लेकिन श्री जिन्दल के अथक प्रयासों से ये बाधाएं समाप्त हो गईं। दिसंबर 2009 में गृह मंत्रालय ने रात में तिरंगा फहराने के उनके प्रस्ताव पर सशर्त सहमति दे दी। मंत्रालय ने कहा कि जहां समुचित रोशनी की व्यवस्था हो, वहां इमारत या विशाल खंभे पर तिरंगा रात में भी फहराया जा सकता है। इसके लिए श्री जिन्दल ने 100 फुट और 207 फुट के 79 कीर्ति ध्वज स्तंभ पूरे देश में लगवाए हैं ताकि राष्ट्र निर्माण और देशभक्ति की प्रेरणा का हमारा सर्वोच्च प्रतीक सदैव लहर-लहर कर देशवासियों का उत्साहवर्धन करता रहे। इसके बाद 2010 में श्री जिन्दल ने लोकसभा अध्यक्ष को सहमत कर लिया कि कोई भी सांसद संसद भवन में लैपल पिन के माध्यम से तिरंगा लगाकर अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन कर सकता है।
नवीन जिन्दल कहते हैं कि “हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमारे लिए गर्व और राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है। पवित्र तिरंगा हम सभी भारतीयों को एक सूत्र में बांधता है और इस झंडे के नीचे हम जाति-धर्म और पंथ से ऊपर उठकर हिंदुस्तानी कहलाते हैं। इस झंडे के नीचे न कोई राजा है न रंक, न अमीर है न गरीब, न मजदूर है न मालिक, सब एक समान हैं। तिरंगा हमारे महान राष्ट्र की आत्मा और प्रत्येक भारतीय के दिल की धड़कन है। वे आगे कहते हैं कि पहले केवल राजा का ध्वज होता था लेकिन अपना तिरंगा देश के 135 करोड़ लोगों का है। कोई भी भारतीय अब अपने राष्ट्रीय ध्वज को प्रतिदिन अपने घर-दफ्तर में नियम-कानून के मुताबिक फहरा सकता है। उन्होने यह भी कहा कि, उन्हें राष्ट्र के प्रति समर्पण की प्रेरणा बाऊजी श्री ओपी जिन्दल जी से मिली। वे कहा करते थे कि कोई भी ऐसा काम न करना जिससे निजी स्वार्थ झलके, अपितु ऐसा काम करना जिसमें सार्वजनिकता की भावना हो और आम आदमी की उसमें भागीदारी हो। तिरंगा को जन-जन तक पहुंचाने के संघर्ष के पीछे मुख्य मकसद प्रत्येक व्यक्ति के मन में देश के प्रति प्रेम उत्पन्न करना है।
अपनी तिरंगा यात्रा में नवीन जिन्दल ने तिरंगे के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया की स्थापना की और संगीत, कला, फोटोग्राफी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सेमिनार, कार्यशालाओं, प्रदर्शनी के माध्यम से अपनी मुहिम को जन-जन तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं। उनके इस पवित्र कार्य में उपाध्यक्ष के रूप में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शालू जिन्दल जी हाथ बंटा रही हैं। इस संस्था ने तिरंगा-ए सेलिब्रेशन ऑफ द इंडियन फ्लैग नामक कॉफी टेबल बुक निकाली है जिसमें टीएस सत्यन, रघु राय, अविनाश पसरीचा, राम रहमान, प्रशांत पंजीयर, दयानिता सिंह जैसे फोटोग्राफरों के सराहनीय फोटो संग्रह हैं। एक संगीत एलबम भी जारी किया है जिसका नाम है तिरंगा तेरा आंचल। इसका संगीत वनराज भाटिया ने तैयार किया है। इसमें सोनू निगम, उदित नारायण, साधना सरगम, श्रेया घोषाल, विनोद राठौड़, सुनिधि चौहान और शंकर महादेवन ने अपनी आवाज दी है तो संतोष आनंद, निदा फाजली, महबूब और बशीर बद्र के बोल हैं। उनको खुशी है, कि आज देश में 400 से अधिक विशालकाय तिरंगा लहर-फहर कर देशभक्ति की गंगा बहा रहे हैं। जो स्वयं अपने-आप में अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड है। किसी भी देश में इतने विशालकाय ध्वजदंड नहीं लगाए गए हैं, जितने कि भारत में। उल्लेखनीय यह है कि इनमें 79 केवल “फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने लगाए हैं।
नवीन जिन्दल ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं, तिरंगा महोत्सवों, तिरंगा दौड़ आदि के माध्यम से अपनी तिरंगा यात्रा जारी रखी है। चूंकि 23 जनवरी 2004 को तिरंगा फहराना मौलिक अधिकार में शामिल किया गया इसलिए पूरे देश से अब आवाज़ उठ रही है कि 23 जनवरी को तिरंगा दिवस के रूप में मनाया जाए। इस बारे में श्री जिन्दल कहते हैं कि अनेक देशों में राष्ट्रीय ध्वज दिवस मनाया जाता है इसलिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते भारत का भी अपना राष्ट्रीय ध्वज दिवस होना चाहिए और 23 जनवरी इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।