नई दिल्ली। अटल बिहारी वाजपेयी, भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम, जिसका घोर आलोचक भी उन्हें पसंद करता होगा। अटल बिहारी वाजपेयी अपनी कविताओं में जितने मुखर रहे, वही धार उन्होंने राजनीति में भी दिखाई। यही वजह रही कि उनके प्रशंसकों की संख्या हर दल में लगभग समान रही। उन्होंने कई मौकों पर ऐसी बातें कहीं और इस अंदाज से कहीं कि गाहे-बगाहे उनका जिक्र हो ही जाता है। एक ऐसा ही वाकया साल 2003 का है, जब अटल जी ने अप्रैल महीने में श्रीनगर में पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। अटल जी की उस पहल का नतीजा रहा कि कश्मीर घाटी एक अरसे तक सुकून की सांस लेती रही।
कहा था-बंदूक समस्या का हल
अप्रैल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने श्रीनगर में कहा था कि बंदूक समस्या का हल नहीं हो सकता। इसके बाद पाकिस्तान के साथ बातचीत की शुरुआत हुई थी। नवंबर 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की घोषणा हो गई थी। इस समझौते की खास बात यह थी कि इसने एक लंबे वक्त तक एलओसी पर शांति बनाए रखी। कहां तो 1999 में दोनों देशों के बीच कारगिल वॉर हुआ था और कहां 2003 से लेकर 2006 तक सीमा पर दोनों देशों के बीच एक बार भी फायरिंग नहीं हुई। इसे अटल जी के शासनकाल की एक बड़ी कामयाबी माना जाता है।
घाटी में भी थे अटल जी के फैन
अटल बिहारी वाजपेयी एक अलग नजरिए के साथ कश्मीर की समस्या को हल करना चाहते थे। उन्होंने साल 2004 की शुरुआत में कश्मीरी अलगाववादियों से भी मुलाकात की थी। अलगाववादी नेता भी वाजपेयी जी के कायल थे। अब्दुल गनी भट ने एक बार कहा था कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी 2004 के चुनाव में न हारे होते तो कश्मीर में हालात आज कुछ और होते। वहीं, पीडीपी के नेता वाहीद उर रहमान का कहना था कि वाजपेयी जी ने कश्मीरियों से यह बताकर कि इस घाटी के मालिक वही लोग हैं, उनका दिल जीत लिया था।