नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल की बजाय मोटे अनाज देने की जरूरत है। यह छोटे बच्चों तथा प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं का पोषण सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
तोमर ने मोटे अनाज वर्ष के कार्यक्रमों के प्री लांचिंग पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मौजूदगी में यह बात कही। उन्होंने कहा कि मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों का भंडार है। अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष लोगों में जागरुकता पैदा करेगा। इसका मकसद इसकी वैश्विक खपत को बढ़ावा देना, उत्पादन बढ़ाना, कुशल प्रसंस्करण एवं फसल चक्र का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना है।
उन्होंने कहा कि मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की कम खपत होती है, कम कार्बन उत्सर्जन होता है तथा यह जलवायु अनुकूल फसल है जो सूखे वाली स्थिति में भी उगाई जा सकती है। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक खाद्य प्रणाली प्रदान करता है। भारत के अधिकांश राज्य एक या अधिक मिलेट (मोटा अनाज) फसल प्रजातियों को उगाते हैं।
कृषि मंत्रालय, अन्य मंत्रालयों एवं हितधारकों के साथ मिलकर मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मिलेट के लिए पोषक अनाज घटक 14 राज्यों के 212 जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा। साथ ही राज्यों के जरिये किसानों को अनेक सहायता दी जाती है। देश में मिलेट मूल्यवर्धित शृंखला में 500 से अधिक स्टार्टअप काम कर रहे हैं। 66 से अधिक स्टार्टअप्स को सवा छह करोड़ रुपये से ज्यादा दिए गए हैं, वहीं 25 स्टार्टअप्स को भी राशि की की मंजूरी दी है।
2023 मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जाएगा
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि साल 2023 अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। इसका प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में भारत ने किया था और 72 देशों ने इसका समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि भारत में मोटा अनाज का इतिहास काफी पुराना है। सिंधु घाटी सभ्याता में भी इसका उल्लेख मिलता है।