पाकिस्तान में प्रधानमंत्री और सेना के संबंध कभी अच्छे नहीं रहे, शहबाज भी फंसे

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में कोई भी प्रधानमंत्री संवैधानिक रूप से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। साथ ही कोई भी सेना प्रमुख लंबे समय तक नागरिक शासकों के साथ अच्छे संबंध नहीं बना पाया। 1988 में इस्लामिक सैन्य तानाशाह जनरल जियाउल हक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मुहम्मद खान जुनेजो को बर्खास्त कर दिया और आठ संशोधन के तहत संसद को भंग कर दिया। यह वो संवैधानिक प्रावधान है जिसने राष्ट्रपति को एकतरफा असेंबली को भंग करने और निर्वाचित सरकारों को हटाने की अनुमति दी। रिकॉर्ड बताते हैं कि देश के कई प्रधानमंत्रियों का यही हश्र हुआ। उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में सुरक्षा प्रतिष्ठान के हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठाई क्योंकि उनका मानना ​​​​है कि जब देश की सर्विस करने की जिम्मेदारी दी गई तो उनके पास पूरा अधिकार होना चाहिए।
सेना की हर क्षेत्र में मजबूत पकड़
तीन बार के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से लेकर दो बार की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो तक और लगातार सबसे लंबे समय तक पूर्व प्रधानमंत्री रहे यूसुफ रजा गिलानी से लेकर जमाली तक, सभी की इस बात पर सहमति थी कि सेना की हर क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। विशेषकर राजनीति में, वो भी तब कि जब वे सीधे देश पर शासन नहीं कर रहे थे।
इमरान खान इस विरोधी खेमे में शामिल
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान इस विरोधी खेमे में शामिल होने वाले नवीनतम हैं। गुरुवार को एक जनसभा में इमरान ने कहा कि प्रतिष्ठान का कहना है कि यह तटस्थ है, लेकिन लोग अभी भी इसकी ओर देख रहे होंगे क्योंकि वे जानते हैं कि सत्ता कहां है। वहीं, एक बड़े राजनीतिक नाटक के बाद सत्ता में आने वाली शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का यह हाल है। शरबाज सरकार ने भी पाकिस्तान के सर्वशक्तिमान सैन्य प्रतिष्ठान के साथ गंभीर मतभेद हो गए हैं।

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