रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर क्या बोल रहा पाकिस्तानी मीडिया?

नईदिल्ली

अयोध्या के राम मंदिर में सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई। पीएम मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ समेत कई अन्य ने गर्भ गृह में मौजूद रहकर पूजा-अर्चना की। अयोध्या में राममय माहौल के बीच पाकिस्तान में भी अयोध्या का जिक्र हो रहा है। प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पाकिस्तानी मीडिया ने प्रोपेगैंडा फैलाना शुरू कर दिया है।

पाकिस्तानी अखबार द डॉन की वेबसाइट पर जावेद नकवी नामक लेखक ने आर्टिकल लिखा है जिसका शीर्षक है, ''हिंसा की आशंका के बीच भारत के अयोध्या मंदिर में कड़ी सुरक्षा।'' इसमें अखबार प्रोपेगैंडा फैलाते हुए अयोध्या को लेकर लिखता है कि वहां के मुस्लिम निवासियों का कहना है कि उन्होंने हिंसा के डर से अपने बच्चों और महिलाओं को पड़ोसी शहरों में रिश्तेदारों के पास भेज दिया है। 6 दिसंबर 1992 को, एक भीड़ ने अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को यह दावा करते हुए ढहा दिया था कि मुसलमानों ने इसे एक प्राचीन मंदिर के स्थान पर बनाया गया। मस्जिद विध्वंस को हिंदुत्व समर्थकों द्वारा विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, जबकि मुसलमानों के लिए यह आतंक का दिन था।

लेख में आगे लिखा गया, ''एक स्थानीय मुस्लिम संगठन ने स्थानीय अधिकारियों को एक याचिका दायर कर बड़ी मुस्लिम आबादी वाले इलाकों के साथ-साथ अयोध्या के अन्य हिस्सों में कड़ी सुरक्षा और निगरानी की मांग की।'' वहीं, न्यूजलॉन्ड्री के एक इंटरव्यू के हवाले में आर्टिकल में कहा गया है कि देवबंद मुस्लिम मदरसा के अध्यक्ष अरशद मदनी ने इसी तरह की आशंका व्यक्त की है और कहा कि वह चाहते हैं कि हिंदू और मुस्लिम सौहार्दपूर्वक रहें।

आर्टिकल के अनुसार, अयोध्या शहर में रहने वाले मुसलमानों का कहना है कि वे उत्तर प्रदेश सरकार के बार-बार आश्वासन के बावजूद चिंतित हैं कि वह अभिषेक समारोह की तारीख और उसके बाद, भक्तों की संभावित आमद के बावजूद क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखेगी। पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित इस आर्टिकल में दावा किया गया है कि अयोध्या में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उप-समिति के अध्यक्ष मोहम्मद आज़म कादरी ने कहा कि कुछ मुसलमानों ने अपने बच्चों और परिवार की महिला सदस्यों को लखनऊ, बाराबंकी या आसपास के अन्य जिलों में रिश्तेदारों के घर भेज दिया है। हमने उन्हें समझाने की कोशिश की क्योंकि प्रशासन ने सुरक्षा की गारंटी दी थी, लेकिन 1990 और 1992 की सांप्रदायिक घटनाओं का डर कई लोगों के लिए भूलना मुश्किल है।

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