बस्तर में देशी शराब के लिए बदनाम महुआ औषधिय गुणों व पूजा अनुष्ठान में बहुपयोगी

जगदलपुर। बस्तर संभाग में एक अनुमान के अनुसार एक लाख क्विटंल से भी अधिक मंहुआ का संग्रहण किया जाता है। वनोपज मंहुआ से स्थानिय जनजातिय समुदाय इसका उपयोग देशी शराब बनाने में ज्यादा करते हैं, सीमित मात्रा में मंहुआ के देशी शराब बनाने एवं उपयोग करने की बस्तर में छूट प्राप्त है, इसीलिए बस्तर में मंहुआ देशी शराब के नाम से बदनाम है, लेकिन आयुर्वेद में मंहुआ औषधिय गुणों की खान है। बस्तर के जनजातिय समुदाय और वनोपज मंहुआ दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, जनजातिय समुदाय में जन्म से लेकर मृत्यु तक मंहुआ वृक्ष के फल फूल व पत्तियों का विशेष महत्व होता है, महुआ के बिना समाज की शादी विवाह जैसी कई परंपराएं अधूरी होती है। इस वृक्ष के बहुपयोगी होने के कारण जनजातीय समाज इस वृक्ष को पवित्र मानता है। देवी-देवता की पूजा में इसके पत्तों का उपयोग करता है। आदिवासी समाज इस वृक्ष पर न तो कभी चढ़ता है और न ही कभी काटता है, ना ही इस वृक्ष के पास शौच ही किया जाता है।
महुआ वृक्ष की पत्तियां साल भर हरी रहती हैं, इसीलिये इसे हरियाली का प्रतीक माना गया है। हिंदू समाज में वैदिक रीति से और सामाजिक रीति से होने वाले विवाह में मंडपाच्छादन में गांव के पुजारी द्वारा एक डगाली इस वृक्ष की भी गाड़ी जाती है। बस्तर के जनजाति समुदाय के साथ ही हर समाज, हर वर्ग की शादियों में मण्डपाच्छादन के समय इसकी एक न एक डगाल जरूर गाड़ी जाती है। कमरछट (हलशष्टी) पूजा विधान में लाई के साथ महुआ मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है। वहीं आयुर्वेद में मंहुआ के एंटी-माइक्रोबियल गुण इंफेक्शन से निजात दलिाने में सहायक है। आंत से जुड़ी बीमारियों और डायरयिा में इसके पेड़ की छाल से तैयार काढ़ा आराम पहुंचाता है। मसूड़ों में हल्की सूजन और खून आने पर महुआ की छाल के अर्क व छाल के अर्क के साथ गरारे करना टॉन्सिल में भी कारगर है। डायरिया में छाल का सत्व आराम पहुंचाता है। पेड की छाल में पाया जाने वाला टैनिन नामक कैमकिल घाव सुखाने में मदद करता है। आयुष चिकित्सक डॉ. चंद्रभान वर्मा के अनुसार महुआ के बीज में बड़ी मात्रा में पाया जाने वाला तेल प्रोटीन से भरपूर होता है। महुआ के बीज से मिलने वाले फैट में औषधीय गुण होते हैं। इसके तेल से त्वचा रोगों और शरीर के दर्द में मालिश सहित त्वचा रोग, गठिया, सिरदर्द, रेचक और बवासीर में भी लाभकारी है।
इन दिनों बस्तर के वनांचल में इसके पेड मंहुए के फूलों से लदे हुए हैं, वनांचल मंहुआ के फूलो की खुशबू से महक रहा है। महुआ फूल संग्रहण के लिए ग्रामीण अल सुबह ही जंगलों की ओर रुख कर रहे हैं। ताकि अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ से गिरते महुआ फूल संग्रहित कर सके। ग्रामीण के एक-एक फूलों को संग्रहित कर घर के आंगन में लाकर सप्ताह भर तक अच्छी तरह सूखाते हैं। अपनी आवश्यकता के अनुरूप बेचकर आर्थिक आय प्राप्त करते हैं। सदियों से वनांचल के लोगों के लिए महुआ फूल एक अतिरिक्त आय का जरिया है। महुआ के पेड़ से लेकर फूल, छाल व पत्ते तक सभी उपयोगी है। अलग-अलग बीमारियों के अनुरूप जनजाति समुदाय मंहुआ को औषधि के रूप में उपयोग करता है।
महुआ संग्रहण में जुटे ग्रामीण बुधवारी बाई, शंकर, मंगलू नेताम के अनुसार ग्रामीणों के लिए महुआ पेड़ उनके लिए वरदान की तरह है। महुआ के लकडी, पत्ते, फूल, फल सबका उपयोग होता है। उन्होंने बताया कि 08 से 10 बोरा तक महुआ एकत्र कर लेते हैं, बजार में नया महुआ 28 से 30 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है, आधे महुआ को समय-समय पर बेचकर बाजार अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करते हैं। आधे को घर में सुरक्षित रखते हैं, जिसका देवी-देवताओं को अर्पित करने तीज त्यौहार घर में मेहमान आदि के लिए शराब बनाने में उपयोग होता है।

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