एकजुट हो रहे हैं बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ रहे संगठन, युवाओं की अवैध गिरफ्तारियों पर है गुस्सा

इस्लामाबाद

 बलूचिस्तान में लोगों के गायब होने और गैर-न्यायिक हत्याओं के खिलाफ बलूच महिलाओं के नेतृत्व में एक मार्च बुधवार को इस्लामाबाद की तरफ शुरू किया गया, जिसके इस्लामाबाद के करीब पहुंचने से पहले ही पाक सरकार टूट पड़ी। इस मार्च को रोकने के लिए पाकिस्तान की कार्यवाहक काकर सरकार ने बेहद कड़ा रुख दिखाया। इस्लामाबाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को नेशनल प्रेस क्लब तक पहुंचने से रोकने के लिए जगह-जगह बैरिकेड लगाकर लठियां बरसाईं और आंसू गैस के गोले दागे। इस दौरान सैकड़ों लोगों को हिरासत में भी लिया गया। शांतिपूर्ण तरीके से हो रहे इस प्रदर्शन पर जिस तरह का रुख पाक के सुरक्षाबलों और पुलिस ने दिखाया है, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

पाकिस्तान की सरकार बलोच महिलाओं से क्यों डर रही है और वह उनको प्रदर्शन की इजाजत क्यों नहीं दे रही है। इस पर पाकिस्तानी विश्लेषक अब्दुल समद याकूब और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सुशांत सरीन ने इंडिया टुडे से बातचीत में इसकी वजह बताई है। याकूब ने कार्यवाहक सरकार की ओर से पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा, मैं बलूच लोगों के साथ मजबूती से खड़ा हूं। वे भी पाकिस्तान के समान नागरिक हैं और उनके साथ उसी तरह व्यवहार किया जाना चाहिए। शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी बेहद ठंडे तापमान में तुर्बत से इस्लामाबाद आए और उनके साथ जिस तरह से व्यवहार किया गया, वो शर्मनाक है।

'पाक नहीं मानता बलूचों को बराबर का नागरिक'
सरीन ने याकूब की इस बात पर कहा कि बलूच आबादी को पाकिस्तान में कभी भी समान नागरिक नहीं माना गया है। मुझे लगता है कि पाकिस्तानी सेना डरी हुई है। वे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों से सिर्फ इसलिए डरते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि उनसे कैसे निपटना है। उनके पास शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों से निपटने का केवल एक ही साधन है, वो है ताकत का इस्तेमाल। वह हर एक प्रदर्शन को बलपूर्वक रोकना ही जानते हैं।

बलूच यकजहती समिति ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में घोषणा करते हुए कहा, "हम बलूच नरसंहार और जबरन अपहरण के खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखेंगे। अगले कदम की घोषणा कल सोशल मीडिया के माध्यम से की जाएगी, हमारे साथ बने रहें।" बलूच यकजहती समिति द्वारा आयोजित लॉन्ग मार्च, शुरुआत में केच जिले में चार युवा बलूच व्यक्तियों की हत्या के कारण शुरू हुआ था। इसके बाद बलूच नरसंहार के विरोध में हजारों लोग सड़को पर आ गए। यह मार्च बलूचिस्तान और पंजाब के विभिन्न जिलों से गुजरा और इस्लामाबाद पहुंचने पर गंभीर क्रूरता का सामना करना पड़ा।

बलूच मानवाधिकार परिषद ने इस्लामाबाद पुलिस और पाकिस्तान की अंतरिम सरकार की "अमानवीय और क्रूर प्रतिक्रिया" पर गहरी चिंता व्यक्त की। परिषद ने पुलिस की कार्रवाई की निंदा की और उन पर बलूच कार्यकर्ताओं को पीटने और गिरफ्तार करने के साथ-साथ मार्च में भाग लेने वाले बुजुर्ग पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। बलूच मानवाधिकार परिषद ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "ये लोग अपने प्रियजनों के लिए न्याय चाहते हैं जिन्हें पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों से जबरन गायब कर दिया गया है।" परिषद ने क्रूर बल के प्रयोग की निंदा करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारी मानवाधिकारों का सम्मान करें।

याकूब ने बलूचों की न्यायेतर हत्याओं के आरोपों की जांच की मांग की है। उन्होंने कहा ये बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। याकूब ने ये भी कहा कि कोई सरकार के खिलाफ बंदूक उठाता है तो स्टेट को उनसे सख्ती से निपटना चाहिए। किसी को भी ये इजाजत नहीं दी जा सकती है कि वह बंदूक उठाकर हिंसा का सहारा ले लेकिन सरकार को भी ये महिलाओं के शांति से निकाले जा रहे मार्च पर लाठियां नहीं चलानी चाहिए।

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