(अर्जुन झा)
। निजी ईंट भट्ठों में सरकारी सफेद नमक से ईंटों को लाल करने का खेल खुलेआम चल रहा है। सरकारी राशन दुकानों से उपभोक्ताओं को मुफ्त में दिया जाने वाला अमृत नमक जहां राशन दुकान संचालकों के लिए अवैध कमाई का जरिया बन गया है, वहीं ईंट भट्ठे चलाने वाले लोगों के लिए सच में अमृत तुल्य हो गया है। मुफ्त के नमक को ईंट भट्ठा मालिकों के पास थोक में बेचा जा रहा है। इस अवैध कारोबार की तरफ खाद्य विभाग और प्रशासनिक अमले का ध्यान नहीं जा रहा है। यह आश्चर्य की बात है।
आम धारणा है कि इंटें जितनी अधिक लाल होती हैं, वह उतनी ही ज्यादा मजबूत होती हैं। इसी धारणा के चलते लोग भट्ठों से लाल ईटों की ज्यादा खरीदी करते हैं। सुर्ख लाल इंटें थोड़ी महंगी बिकती हैं। ईंट भट्ठा संचालकों की कमाई बढ़ जाती है। लोगों की इस धारणा का बेजा लाभ उठाते हुए इंद्रावती नदी के किनारे संचालित कुछ ईंट भट्ठों के मालिक ईंटों को ज्यादा लाल करने के लिए कच्चे ईंटों को भट्ठों की आग में पकाते समय राशन दुकानों से मुफ्त वितरीत किए जा रहे सरकारी अमृत नमक का छिड़काव करने लगे हैं। बताया जाता है कि नमक से पकाई जाने वाली ईंटें देखने में बाहर से तो लाल जरूर नजर आती हैं, लेकिन अंदर से कच्ची ही रह जाती हैं। मतलब यह कि ऐसी ईंटें जरा भी मजबूत नहीं रहती हैं। लोगों को राशन दुकानों से मुफ्त में नमक दिया जाता है, अगर नमक का पैकेट जरा भी कटा फटा होता है, तो उपभोक्ता मुफ्त में मिलने के बावजूद उस पैकेट को नहीं ले जाते। इसके चलते राशन दुकानों में हर महीने काफी मात्रा में नमक इकट्ठा हो जाता है। सूत्रों ने बताया कि इंद्रावती नदी के किनारे ईंट भट्ठों का संचालन करने वाले कुछ लोग ईंटों को लाल करने के लिए राशन दुकानों से प्राप्त नमक का छिड़काव करने लगे हैं। बताया गया कि ईंट भट्ठों में नमक छिड़कने से कुछ समय के लिए आग की लपटें तेज हो जाती हैं। इसलिए ईंटों का ऊपरी हिस्सा लाल हो जाता है और अंदर से कच्चा रह जाता है। इन्हीं ईंटों को पूरी तरह से पका हुआ तथा मजबूत बताकर भवन निर्माताओं के पास खपाया जा रहा है। राशन दुकान संचालक मनमानी दरों पर इस नमक को बेचने में लगे हैं।
मुफ्त नमक लेना कर्ज लेने जैसा
आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके बीच यह भ्रान्ति फैली हुई है कि किसी से भी मुफ्त में नमक लेना कर्जा लेने के समान होता है। इसीलिए पहले जब किसी व्यक्ति के घर में नमक खत्म हो जाता था, तो काम चलाने के लिए संबंधित व्यक्ति पास पड़ोस के घर से नमक मांग लिया जाता था। तब देने वाला व्यक्ति लेने वाले व्यक्ति के हाथ में नमक को सीधे न देकर कागज अथवा पेड़ के पत्ते में डालकर उसे जमीन पर रख देता था। लेने वाला व्यक्ति उसे उठाकर ले जाता था। बाद में लेने वाला व्यक्ति नमक जरूर लौटा देता था, ठीक उसी तौर तरीके के साथ। बस्तर समेत छत्तीसगढ़ के अनेक भागों में आज भी यह परंपरा चली आ रही है। यही वजह है कि लोग सरकारी राशन दुकानों से नमक मुफ्त में मिलने के बाद भी नहीं नहीं ले जाते। इसके चलते भी राशन दुकानों में नमक जाम हो जाता है। इसका फायदा अब ईंट भट्ठा चलाने वाले लोग उठा रहे हैं। पहले यही ईंट भट्ठा संचालक खड़े नमक का इस्तेमाल करते रहे हैं। चूंकि स्वास्थ्यगत कारणों और विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइड लाईन के चलते खड़ा नमक का उत्पादन लगभग बंद हो गया है और अगर बाजार में कहीं मिलता भी है, तो थोड़ा ऊंचे दाम पर। जलाऊ लकड़ी और धान भूंसा भी महंगे हो चले हैं। ईंटों को लाल होते तक पकाने के लिए ज्यादा लकड़ी और भूंसे की जरूरत पड़ती है। इससे ईंटों की निर्माण लागत काफी बढ़ जाती है। व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता के इस युग में कम लागत में उत्पाद तैयार कर ज्यादा लाभ कमाने की होड़ चल रही है। इसके कारण नमक का प्रचलन ईंट पकाने के लिए काफी बढ़ गया है।
फिर ईमारत बुलंद कैसे होगी ?
नमक के प्रताप से पकाई जाने वाली ईंटें सुर्ख लाल जरूर हो जाती हैं, लेकिन अंदर से अधपकी ही रह जाती हैं। उनका बाहरी हिस्सा ही पक पाता है। ऐसी कमजोर ईंटों से बनाई जाने वाली ईमारत कितनी बुलंद होती होगी, इसका अंदाजा लगाना कोई बड़ी बात नहीं है। रिहायशी मकानों, सामुदायिक भवनों, शाला भवनों, आंगनबाड़ी केंद्र भवनों, दुकानों, नालियों, शौचालयों, पानी टंकियों, अस्पताल भवनों, विश्राम गृहों, पुल पुलियों आदि के निर्माण में इन्हीं अधपकी ईंटों का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। सरकारी निर्माण एजेंसियां भी आंख मूंदकर इस तरह की गुणवत्ता रहित ईंटों का उपयोग करने में जरा भी गुरेज नहीं कर रही हैं। ईंटों और अन्य निर्माण सामग्री की खरीदी में कमीशन के खेल के चलते संबंधित विभागों के अधिकारी निर्माण सामग्री की गुणवत्ता से समझौता करने में जरा भी नहीं हिचकते। इस तरह अधपकी ईंटों से बनने वाले भवन ज्यादा दिन टिक नहीं पाएंगे और बड़ी अनहोनी के कारण बन जाएंगे।