विश्व महिला दिवस पर विशेष : आरोपी को ईनाम, शिकायतकर्ता हलाकान

(शिक्षा विभाग की प्रताड़ना झेल रही एक महिला प्राचार्या की व्यथा)

रायपुर। हर साल की तरह इस साल भी आज विश्व महिला दिवस मनाया जा रहा है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या समाज और कार्यक्षेत्र में महिलाओं की दशा में कितना सकारात्मक बदलाव आया है। व्यवस्था में पुरुषवादी सोच का शिकार आज भी अनेक महिलाएं हो रहीं हैं। इसका एक जीवंत उदाहरण हैं रायपुर के पंडित गिरजा शंकर मिश्र शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की निलंबित प्राचार्या ऋतु सुरंगे। श्रीमती सुरंगे उस व्यवस्था की शिकार हैं जिसमें शिकायतकर्ता को ही अनेक मामलों में लपेटकर आरोपी को बचाया गया। केवल इतना ही नहीं आरोपी को पदोन्नति देकर उसे उपकृत भी किया गया। मामला राज्य महिला आयोग में भी है लेकिन वहां से भी अबतक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी।

श्रीमती सुरंगे ने उक्त स्कूल में प्राचार्या रहने के दौरान वर्ष 2019 में अपने एक व्याख्याता नंदकुमार श्रीवास की सेवा पुस्तिका में एक बड़ी गड़बड़ी पाई। सेवा पुस्तिका में श्रीवास की जन्मतिथि 1965 दर्ज है जबकि उनके आठवीं और ग्यारहवीं के प्रमाणपत्र में अलग-अलग जन्मतिथियों का उल्लेख है। जब उन्होंने अपने स्तर पर जांच की तो श्रीवास की जन्मतिथि 1962 पाई गई। इसकी शिकायत उन्होंने विभाग के उच्च अधिकारियों से की और फिर से जांच की गई तब भी यह पाया गया कि श्रीवास की जन्मतिथि 1962 है, जबकि उनकी सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि 1965 है। इतना ही नहीं श्रीवास के आधार कार्ड और पेन कार्ड में भी उनकी जन्मतिथि 1965 ही दर्शाया गया है।

विभागीय जांच में जन्मतिथि में गड़बड़ी मिलने के बाद संचालक लोक शिक्षण द्वारा आदेश जारी कर प्राचार्या को श्रीवास की सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि सुधार करते हुए 1962 करने के निर्देश दिए। लेकिन प्राचार्या ने नियमों का हवाला देते हुए इसके जवाब में कहा कि यह न्यायालयीन प्रक्रिया है। इस संबन्ध में सचिव ही आदेश निकाल सकते हैं, संचालक का आदेश मान्य नहीं है। उनकी यही बात पुरुषवादी व्यवस्था को इस कदर चुभी की न केवल उनकी दो वेतन वृद्धि रोक दी गई बल्कि उन्हें छह माह के भीतर दो बार निलम्बित किया जा चुका है। गौर करने वाली बात यह है कि जिस व्याख्याता पर आरोप लगे और उम्र में गड़बड़ी पाई गई वह आज उस स्कूल का प्रभारी प्रचार्य है, वहीं शिकायतकर्ता दर दर भटकने के लिए मजबूर है।

बिना आरोप पत्र के किया निलम्बित

एक व्याख्याता की फर्जी का उम्र का मामला उजागर करना श्रीमती सुरंगे को काफी महंगा पड़ा। उनपर आरोप लगाए गए कि उन्होंने कोरोना काल में छात्रों से फीस वसूली और स्कूल की शालेय पत्रिका का प्रकाशन नहीं किया। निलम्बित प्राचार्य के मुताबिक पत्रिका का प्रकाशन विधिवत हुआ है और छात्रों के बीच बंटवाई भी गयी है। वहीं फीस लेने के सम्बंध में उनका कहना है कि फीस लेने के पहले 18 जून 2020 को उन्होंने तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी जी आर चन्द्राकर से अनुमति ली थी और फीस का पैसा स्कूल के खाते में जमा हुआ। तद्पश्चात 2 सितम्बर 2020 को लोक शिक्षण संचालनालय से एक आदेश जारी हुआ जिसमें फीस न लेने का आदेश था। इस आदेश के बाद प्राचार्या ने 18 सितम्बर को स्कूल स्टॉफ के साथ बैठक किया और यह निर्णय लिया गया कि वसूली गई फीस वापसी के लिये पालकों को सूचित किया जाएगा, साथ ही नोटिस बोर्ड पर सूचना भी चस्पा की जाएगी और फिर पालकों को फीस लौटा दी गईं।बावजूद इसके श्रीमती सुरंगे को फीस लेने और पत्रिका न छापने के मामले में 4 सितम्बर 2021 को निलंबित कर दिया गया, लेकिन आरोप पत्र नहीं दिया गया। तीन महीने बाद उन्होंने फिर से ज्वाइनिंग दी लेकिन उन्हें चार्ज नहीं दिया गया। इसके बाद 25 जनवरी 2022 को आरोप पत्र के साथ एक दूसरा आदेश निकलते हुए उन्हें उसी मामले में फिर से निलंबित कर दिया गया। विभाग के उच्च अधिकारियों के रवैये से परेशान पीड़िता ने आखिरकार इस मामले में उच्च न्यायालय और राज्य महिला आयोग की शरण ली है।

उम्र में गड़बड़ी से शासन को करीब 36 लाख की चपत

व्याख्यता से प्रभारी प्राचार्य बने नन्दकुमार श्रीवास की सेवा पुस्तिका में अब भी उनकी जन्मतिथि 1965 ही दर्ज है, जबकि विभाग ने अपनी जांच में उसे 1962 पाया है। अगर सेवा पुस्तिका में उनकी उम्र में सुधार नहीं हुआ तो उनकी सेवा तीन साल और मानी जायेगी और करीब 36 लाख रुपये का अतिरिक्त व्यय शासन पर आएगा। इसके अलावा आठवीं और ग्यारहवीं के दो-दो अलग-अलग जन्मतिथि के प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के सम्बंध में उनपर आपराधिक मामला भी बनता है, लेकिन विभाग ने इतने महत्वपूर्ण साक्ष्य को नजरअंदाज कर दिया।

मुझे यह मामला आपके द्वारा पता चल रहा है। मैं इस मामले में पहले पूरी जानकारी लेता हूं, उसके बाद ही कोई जानकारी दे पाऊंगा।

  • सुनील जैन, संचालक लोक शिक्षण

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