नई दिल्ली। यूक्रेन-रूस युद्ध से पैदा हुए संकट से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत (India) भी अछूता नहीं रह सकता. लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी एक्टिव मोड में आ चुके हैं. उन्होंने बड़ी पहल करते हुए खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) से फोन पर बातचीत की और शांति की दिशा में कदम बढ़ाने को कहा. पीएम मोदी और पुतिन के बीच करीब 20 मिनट तक बातचीत हुई।
पीएम मोदी ने पुतिन से फोन पर क्या कहा?
पीएम मोदी और पुतिन के बीच इस बातचीत में युद्ध शुरू होने के बाद के हालात पर चर्चा हुई. विदेश मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, इस बातचीत में राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम मोदी को यूक्रेन से जुड़े हाल के घटनाक्रम के बारे में पूरी जानकारी दी. तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि रूस और नाटो समूह के बीच विवाद को सिर्फ ईमानदार बातचीत के माध्यम से ही सुलझाया जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने हिंसा को तत्काल खत्म करने की अपील की और राजनयिक स्तर की वार्ता के रास्ते पर लौटने के लिए सभी पक्षों से ठोस प्रयास करने का आह्वान किया है।
पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से जो बातचीत की, उसका आधार दिल्ली में यूक्रेन की ओर से की गई एक इमोशनल अपील भी थी, जिसमें यूक्रेन के राजदूत ने भारत और रूस के बेहतर संबंधों की याद दिलाते हुए पीएम मोदी से बातचीत करने और टेंशन खत्म कराने की अपील की. इसके कुछ घंटे बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक की, जिसमें राष्ट्रपति पुतिन के साथ टेलीफोन पर बात करने का फैसला लिया गया।
पुतिन ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों को बाहर निकालने का दिया भरोसा
पीएम मोदी ने पुतिन से शांति बहाल करने की अपील की तो साथ ही यूक्रेन में भारतीय नागरिकों, खास तौर पर वहां फंसे छात्रों की सुरक्षा के संबंध में भी भारत की चिंताओं से पुतिन को अवगत कराया. इसके बाद पुतिन ने यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को सकुशल बाहर निकालने के लिए अपने अधिकारियों को आदेश जारी करने का भरोसा भी दिया है।
दो नेताओं की इस बातचीत का ब्यौरा रूस की तरफ से भी दिया गया है. रूसी राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बात की. राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम मोदी को बताया कि यूक्रेन पर हमला क्यों करना पड़ा. पुतिन ने पीएम मोदी को बताया कि डोनबास के आम नागरिकों पर कीव से चलने वाली सरकार ने आक्रामक कार्रवाई की. मिंस्क समझौते का उल्लंघन भी किया गया और इसके अलावा यूक्रेन में अमेरिका और नाटो की मदद से सामरिक तौर पर जो गतिविधियां चल रही थीं. इन सबकी वजह से ही रूस को सैन्य कार्रवाई का फैसला लेना पड़ा।