राजस्थान CM पद का दावेदार जब एक वोट से हारा?

जयपुर.

विधानसभा चुनाव को लेकर राजस्थान में सियासी महौल गरमाना शुरू हो चुका है। वोट मांगने के लिए नेताओं का देवों के दर और जनता के घर जाना शुरू हो चुका है। कहा जाता है कि प्रजातंत्र में एक-एक वोट कीमती होता है। इसका असल डेमो राजस्थान में ही देखा गया। यह बात राजस्थान के दिग्गज कांग्रेस नेता सीपी जोशी से बेहतर और कौन जान सकता है। जो 2008 के विधानसभा चुनाव में नाथद्वारा सीट पर मात्र एक वोट से हार गए और उसके साथ ही उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी भी खिसक गई।

कांग्रेस ने यह चुनाव जोशी के नेतृत्व में ही लड़ा और जीता। ऐसे में आमधारणा बन गई थी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो जोशी ही मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन, एक वोट ने सारा खेल बिगाड़ दिया। साथ ही यह हर मतदाता के लिए भी एक सबक भी है कि अगर, वो अपनी पसंद के नेता को जिताना चाहता है तो उसे मतदान करने जरूर जाना चाहिए। इस रोचक सियासी किस्से के साथ अब राजस्थान में 20 साल की 10 बड़ी राजनीति घटनाएं जानिए।

इन घटनाओं ने बटोरीं सुर्खियां…
– 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता और वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी मात्र एक वोट से हारे।
– 2008 में बनी गहलोत सरकार में शामिल निर्दलीय मंत्री गोलमा देवी ने संविधान की शपथ नहीं ली। उन्होंने कहा- मैं गोलमा देवी बोल रही हूं।
– विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा दोनों को इतिहास का सबसे बंपर बहुमत। 1998 चुनाव में कांग्रेस को 153 तो 2013 चुनाव में भाजपा को  163 सीटें।
– महिलाएं शिखर पर। वसुंधरा राजे दो बार मुख्यमंत्री। शासन के तीनों सर्वोच्च  पदों पर महिलाएं। राष्ट्पति प्रतिभा पाटिल, विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे।
– भाजपा में बड़ा बदलाव। दो बार पूर्ण बहुमत से सरकार। ब्राह्मण-बनियों की शहरी पार्टी के परंपरागत ढांचे से निकलकर गांव, ओबीसी और दलित-पिछड़ों की ओर बढ़ा झुकाव।
– आरक्षण के चिराग से निकला जातिवाद का जिन्न। 1999 के लोस चुनावों से पहले जाटों को ओबीसी में लेने की प्रधानमंत्रीं वाजपेयी की घोषणा के बाद आरक्षण के मुददे को लेकर जातिवादी राजनीति हावी। नतीजा सबसे हिसंक गुर्जर आंदोलन।
– नया विधानभा भवन बना। विधान परिषद की जगी आस। राजाओं के गलियारे यानि सवाई मानसिंह टाउहॉल से बाहर निकला लोकतंत्र।
– भैरोंसिंह शेखावत, परसराम मदेरणा, शिवचरण माथुर, चंदनमल बैद, और नवलकिशोर शर्मा सरीखे पॉलिटिकल जॉइन्ट्स की पीढ़ी का जाना।
– 2003 के विधासभा चुनावों से सरकार के अंग कर्मचारियों का सक्रिय राजनीति में शामिल होना।
– नए विधान सभा भवन पर अंधविश्वास का साया। आत्माओं का प्रकोप। नहीं रहते कभी पूरे 200 विधायक। तंत्र-मंत्र के लिए विधानसभा परिसर में ओझाओं को भी बुलाया गया।