…..और समे लाल के जीवन में पसरा करोना का अमावस

बिलासपुर। सरकारी अस्पताल में समे लाल ने इस उम्मीद से ऑख का ऑपरेशन कराया कि उसके जीवन में ये नई सुबह लेकर आएगा पर ऐसा हो न सका। करोना की तालाबंदी ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। आपरेशन से पहले जो थोड़ी-बहुत रोशनी थी वो भी बुझ गया अब उसके जीवन में खालिस अंधेरा पसरा है।
जीवन के पचास बसंत पार कर चुके पंडो आदिवासी समे लाल की अपनी सही उम्र का पता नहीं है जंगल में पहाड़ी पर हाथीलोटा नाम के गांव में उसका ठिकाना है जहां अपने ही जैसे तीस-पैंतीस परिवार के साथ रहते है। जो छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पाली ब्लॉक के ग्राम पंचायत इरफ में आता है। गर्म कपड़े और दवाएं मिलने की उम्मीद में तीन-चार कोस यानी करीब दस किलो मीटर पहाड़ी रास्तों से चलकर वो पत्नी के साथ ग्राम पंचायत इरफ के ही शासकीय प्राथमिक शाला कटहीपारा पहुंचा था जहां उसने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से अपनी पीड़ा बताई। समाजसेवी स्वास्थ्य कार्यकर्ता जो जीवन रक्षक और प्राथमिक उपचार की दवाएं लेकर इन अति पिछड़े आदिवासी समाज के बीच पहुंचे थे के पास न तो उसके दर्द की दवा थी और न उसके सवालों के जवाब।
मजदूरी, वनोपज और सरकारी राशन से समे लाल के परिवार की आजीविका चलती थी बच्चे बड़े हो गए शादी कर परिवार बढ़ा लिया और अलग रहने लगे। पत्नी का साथ है तो जीवन की गाड़ी आगे बढ़ रही है। समे लाल कहते है उसके आखों की रोशन धीरे-धीरे खत्म हो रही थी, देखने और काम करने में दिक्कत होने लगी तो परिजन इसका इलाज कराने के लिए जिला मुख्यालय कोरबा के सरकारी अस्पताल लेकर गए। जहां जांच के बाद उसकी आंख का आपरेशन किया गया।
ऑपरेशन के बाद चली गई रोशनी
आपरेशन के बाद छुट्‌टी देकर उसे घर भेज दिया गया। इसके बाद करोना की वजह से शुरू हुई लॉकडाउन की वजह से उसे ऑख की जांच कराने दोबारा अस्पताल जाने का मौका ही नहीं मिला। ऑपरेशन के पहले जो थोड़ा-बहुत दिखाई देता था वो भी बंद हो गया । मेहनत-मजदूरी कर कुछ कमाई कर लेने के जो श्रोत थे वो भी अब पूरी तरह खत्म हो गए है अब शासन से मिलने वाले सरकारी राशन के ईंधन से उनके परिवार की गाड़ी चल रही है परिजनों के भी हालात ऐसे नहीं है कि कुछ खर्च कर उसकी आंख का बेहतर इलाज कराने मदद कर सकें।
फीड बैक लेने नहीं आया कोई
समेलाल के मुताबिक कोरबा के सरकारी अस्पताल में आपरेशन होने के बाद छुट्‌टी मिलने के बाद वह घर लौट आया । ऑपरेशन के बाद भी आंख की रोशनी में सुधार नहीं होने पर करोना की लॉकडाउन होने की वजह से वह दुबारा जांच कराने कोरबा नहीं जा सका। वहीं स्वास्थ्य विभाग क सरकारी अमला भी आज तक कभी फीड बैक लेने नहीं पहुंचा।

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