हमारा एक कदम यानि कर्मलोक और परलोक दोनों को बनाने वाला हो-उर्मिला दीदी

पांच दिवसीय सत्यनारायण कथा के आध्यात्मिक रहस्य एवं तनाव मुक्ति शिविर का शुभारंभ
धमतरी । ब्रह्माकुमारीज धमतरी तत्वावधान में 23 नवम्बर से 27 नवम्बर तक पांच दिवसीय सत्यनारायण कथा के आध्यात्मिक रहस्य एवं तनाव मुक्ति शिविर का शुभारंभ किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में विधायक रंजना साहू, पूर्णिमा साहू अध्यक्ष जनपद पंचायत कुरूद, ब्रह्माकुमारी सरिता दीदी एवं मुख्य वक्ता ब्रह्माकुमारी उर्मिला दीदी संपादिका ज्ञानामृत पत्रिका माउंट आबू (राजस्थान) थीं।
पांच दिवसीय शिविर के शुभारंभ सत्र में ब्रह्माकुमारी उर्मिला दीदी ने सत्यनारायण कथा का आध्यात्मिक रहस्य स्पष्ट करते हुए कहा कि इस कथा को रोग शोक का नाश करने वाला, धन धान्य की प्राप्ति कराने वाला, तनाव व पापों से मुक्त कर जीवन मुक्ति दिलाने वाला कहा जाता है। यह कथा समाज के छोट, बड़े सभी वर्गों को अपने में समाए हुए भेदभाव रहित, समभाव प्रदान करने वाला है। इस कथा में सबसे आश्चर्य की बात है कि कहीं भी सत्यनारायण की अथवा उनके जीवन से जुड़़ी किसी भी बात और घटना का वर्णन नहीं है। सत्यनारायण कथा को पांच भागों में सुनाया जाता है। कथा का प्रत्येक भाग वर्तमान मानव जीवन को कैसे श्रेष्ठ बनाएं, इसका संदेश सभी को प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि कथा का प्रथम भाग हमें संतुलित जीवन जीने की शिक्षा देता है। हमारा एक कदम यानि कर्मलोक और परलोक दोनों को बनाने वाला हो। मनुष्य अपने इस लोक को बनाने में सारा जीवन लगा देता है और परलोक वह खाली हाथ जाता है। कथा का द्वितीय भाग हमें पुण्य कर्म, श्रेष्ठ कर्म करते बनिया प्रवृत्ति से सावधान रहने के लिए कहता है कि अच्छे कार्यों को कभी कल पर न टालें और बहाना न बनाएं। आंखों में धन सम्पत्ति के लालच की पट्टी बंधी होगी तो कभी परिवार का स्नेह, प्रेम और त्याग का अनुभव नहीं कर सकंेगे।
उर्मिला दीदी ने कहा कथा का तृतीय भाग हमें लौकिक धन और पारलौकिक धन के महत्व को बताता है। बुढ़ापे में जब व्यक्ति का शरीर साथ नहीं देता तब वह चाह कर भी पारलौकिक धन की कमाई नहीं कर सकता। ईश्वर के घर मंसा, वाचा, कर्मणा तीनों की गणना होती है। इस जहान मेंं वही व्यक्ति श्रेष्ठ है जो विपरीत परिस्थिति में विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति के साथ निभाकर चलते हुए अपने श्रेष्ठ धर्म कर्म के मार्ग को न छोडें। कथा के चतुर्थ हिस्से में सत्यता के महत्व को स्पष्ट किया गया है। जब हम ईश्वर से सत्य और पाप कर्म छिपाते है तो ईश्वर से दूर हो जाते हैं। दु:ख व अशांति के पात्र बन जातेे है। धर्म और कर्म का संतुलन ही जीवन को लीलामय बनाता और उसका ही गायन पूजन होता है। पांचवे भाग में कथा प्रसाद का महत्व बताया गया है। प्रसाद की तरह हमारी वाणी भी मीठी मधुरता और नम्रता से भरपूर होना चाहिए। जो व्यक्ति इस मधुरता रूपी प्रसाद मात्र को भी जीवन में ग्रहण कर लेता है, उसके जीवन का कल्याण हो ही जाता है। वास्तव में श्री सत्यनारायण सतयुगी, स्वर्णिम भारत का प्रथम महाराजा है जो एक धर्म, एक भाषा, एक कुल, एक मत का प्रतिनिधित्व करते हंै और सम्पूर्ण पवित्रता की धारणा से सम्पन्न हंै। सर्वआत्माओ के पिता निराकार परमात्मा शिव द्वारा कलियुग के अंतिम समय में साधारण रूप में इस धरा पर आकर सम्पूर्ण मानव जाति को श्रेष्ठ आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। जिस ज्ञान और सहज राजयोग के माध्यम से नर नारायण एवं नारी लक्ष्मी पद को प्राप्त करते हैं। इस अवसर पर आमंत्रित मुख्य अतिथियों ने भी अपनी शुभकामनाएं प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन कामिनी कौशिक ने किया। 24 से 27 नवम्बर तक यह शिविर दो सत्रों में प्रात: 7 से 8:30 बजे तक एवं संध्या 7 से 8: 30 तक धनकेशरी मंगल भवन में चल रहा है।

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