घर के पीछे सुंदर सी बाड़ी, हर घर साकार हो रही बाड़ी

जलबिन्दु निपातेन, क्रमशः पूर्यते घटतः। यह सुभाषित श्लोक हम अक्सर सुनते हैं। यह श्लोक कहता है कि बूंद-बूंद सहेजने पर घड़ा भी भर जाता है अर्थात असंभव चीजें भी घटित होती हैं। हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे ही विपुल संसाधन मौजूद हैं लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे भटकाव की वजह से अनेक सुंदर परंपराएं विलुप्त हो गईं। छोटी-छोटी भूमि को सहेज कर बड़ा कार्य किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले बाड़ियाँ होती थीं। घर के पिछवाड़े बाड़ियाँ, अक्सर कुँआ भी आसपास होता था। इन बाड़ियों को पानी वहीं से मिल जाता। धीरे-धीरे बाड़ियों का चलन घटता गया, जहाँ बाड़ियाँ थीं उनमें अधिकांश जगहों पर झाड़झंखाड़ उग गये या निष्प्रयोजित भूमि पड़ी रही। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना के माध्यम से इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए लोगों को प्रेरित किया।
अब सामूहिक बाड़ियों के साथ ही लोग घरेलू बाड़ियों की ओर भी रुख कर रहे हैं। हर घर में बाड़ियां आरंभ होने से सब्जी एवं फलों का क्षेत्राच्छादन काफी विस्तृत होगा। यह न केवल घर की जरूरतों के लिए अपितु गाँव और नजदीकी शहरों की जरूरत के लिए भी उपलब्ध होगा। बाहर की बड़ी मंडियों से सब्जी मंगाने पर मध्यस्थों के बड़े नेटवर्क की वजह से सब्जी की कीमत काफी बढ़ जाती है साथ ही अधिकांश सब्जी भी रासायनिक खाद वाली होती है। गाँवों में बाड़ियों में जैविक खाद का उपयोग हो रहा है। जैविक खाद के उपयोग से उत्पादित होने वाली सब्जी स्वादिष्ट भी होती है। सबसे बड़ी बात यह होती है कि रासायनिक खादों का दुष्प्रभाव बाड़ी से उत्पादित इन सब्जी पर नहीं पड़ता। ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण को दूर करने में भी यह बाड़ियाँ बेहद कारगर हो रही हैं। बाड़ी से होने वाले उत्पादन से अपने घरेलू सब्जी की जरूरत वे पूरी कर रही हैं।
सब्जी के उत्पादन से इसका खर्च बचता है। पोषण स्तर के रूप में लाभ मिलता है। सामूहिक बाड़ियों के माध्यम से भी समूह बड़ी मात्रा में सब्जी उगा रहे हैं। इसकी विशेषता यह है कि ये सब्जी की विविध प्रजाति उगा रहे हैं। शासन की मदद से सब्जी के उत्पादन में नई टेक्नालाजी का सहारा भी ले रहे हैं। ग्राम फेकारी का उदाहरण लें, यहाँ की स्व-सहायता समूह की महिलाएं लगभग तीन एकड़ में बैंगन की सब्जी उगा रही हैं। उनकी बैंगन की प्रजाति कल्याणी प्रजाति की है। इसके लिए उन्होंने ड्रिप सिस्टम वगैरह बनाया है।
गौठानों को विकसित करने एवं गोधन न्याय योजना के प्रोत्साहन से लाभ यह मिला है कि कंपोस्ट खाद अब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। सब्जी उत्पादक जो किसान दीर्घकाल के लिए अपनी मिट्टी की गुणवत्ता को बचाये रखना चाहते हैं। वे गोबर खाद की ओर बढ़ रहे हैं। गोबर खाद के उपयोग से तैयार होने वाली बाड़ियों की सब्जी में अलग तरह का ही स्वाद आ रहा है जिसकी वजह से इसकी अच्छी डिमांड आ रही है।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर बाड़ी उत्पादकों को प्रोत्साहन देने उद्यानिकी विभाग के अधिकारी निरंतर सजगता से मानिटरिंग कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से इन बाड़ियों का दायरा बढ़ रहा है।

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