नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी है कि देश के उच्च शिक्षा के केंद्रीय संस्थानों में आरक्षित श्रेणी के कितने-कितने पद ख़ाली हैं। शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को लोकसभा में बताया कि उच्च शिक्षा वाले केंद्रीय संस्थानों में अन्य पिछड़ी जाति यानी ओबीसी के लिए आरक्षित अध्यापकों की आधी से ज़्यादा सीटें ख़ाली हैं तो वहीं एससी-एसटी यानी अनुसूचित जाति और जनजाति श्रेणी में 40 फ़ीसदी सीटें ख़ाली हैं।
तीन कांग्रेस सांसदों ने इस पर उनसे सवाल पूछा था, जिसका उन्होंने जवाब दिया।
इनसे अलग प्रबंधन के लिए बेहद प्रसिद्ध भारतीय प्रबंधन संस्थान यानी आईआईएम में 60 फ़ीसदी से अधिक ओबीसी और एससी श्रेणी के पद ख़ाली हैं। वहीं, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 80 फ़ीसदी से अधिक आरक्षित पदों पर कोई नियुक्ति नहीं हुई है।
इसका अर्थ है कि एसटी के लिए आरक्षित 24 पदों में से सिर्फ़ पाँच पर नियुक्ति हुई है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने केवल ग़ैर-अध्यापक पदों का आँकड़ा मुहैया कराया है। ऐसा माना जा रहा है कि आईआईटी और आईआईएम अपने यहाँ शिक्षकों के कोटे की सीमा में छूट देने की सिफ़ारिश कर रहा है।
00 प्रोफ़ेसर के पद हैं सबसे अधिक ख़ाली
कांग्रेस सांसद एन। उत्तम कुमार रेड्डी के सवाल के जवाब में शिक्षा मंत्री निशंक ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसर के पद सबसे अधिक ख़ाली हैं।
42 विश्वविद्यालयों में एसटी के लिए आरक्षित 709 असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पदों में से 500 भर चुके हैं। अगर प्रोफ़ेसरों के पद की बात करें तो एसटी के लिए आरक्षित 137 पदों में से सिर्फ़ 9 ही भरे हैं। इसका अर्थ हुआ कि 93% अब भी ख़ाली हैं।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों के 1,062 प्रोफ़ेसर में 1% से भी कम लोग एसटी समुदाय से आते हैं।
इसी तरह से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षित असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के 2,206 पदों में से 64 फ़ीसदी ही भरे हैं।
वहीं, प्रोफ़ेसर के 378 पदों में से पाँच फ़ीसदी से भी कम पर नियुक्तियां हुई हैं।
00 सभी स्तर पर लागू होगा ओबीसी आरक्षण
इतने अधिक पद ख़ाली होने के बावजूद निशंक ने अपने लिखित जवाब में यह भी दावा किया कि अब द सेंट्रल एजुकेशनल इंस्टिट्यूशंस (रिज़र्वेशन इन टीचर्स कैडर) अधिनियम 2019 के लागू होने के बाद हर स्तर पर ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था की जा चुकी है।
दूसरे जवाब में शिक्षा मंत्री निशंक ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय और यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) लगातार ख़ाली पदों पर नज़र रखता है। हालांकि, निशंक ने ख़ाली पदों के लिए विश्वविद्यालयों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया।
उन्होंने कहा, केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर ख़ुद ही पदों को भरने की ज़िम्मेदारी है क्योंकि वे संसद के ज़रिए पारित क़ानून के तहत एक स्वायत्त निकाय हैं।
जून 2019 में यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर छह महीनों के अंदर सभी पदों को भरने को कहा था और चेतावनी दी थी कि अगर उसके निर्देश की अवहेलना हुई तो उनकी ग्रांट रोकी जाएगी।
लोकसभा में सोमवार को पेश किए गए डेटा के अनुसार, 42 विश्वविद्यालयों में जो 6,074 पद ख़ाली हैं उनमें से 75 फ़ीसदी आरक्षित श्रेणी के हैं।