ढ़ाई साल में विभागों से सामंजस्य नहीं बना पाई डायल-112

फायर ब्रिगेड सहित हेल्थ रिस्पांस में पीछड़ रहा
रायपुर।
छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 साल के लिए ट्रायल पर डायल-112 (एक्के नम्बर सब्बो बर) की सेवा शुरु की थी, इसका उद्देश्य एक ही नंबर के माध्यम से पुलिस, फायर और एम्बुलेंस जैसी सुविधाओं को शामिल करना था, लेकिन अब डायल-112 की सेवा शुरू हुए ढ़ाई साल होने जा रहे हैं। इस ढ़ाई साल के बाद भी डायल-112 पुलिस कमांड के अलावा अन्य दूसरे विभागों के कॉल्स में पिछड़ती जा रही है। इसके साथ ही फायर ब्रिगेड व एम्बुलेंस जैसी सेवा के लिए डायल-112 अपने निर्धारित समय में रिस्पांस नहीं कर पा रही है।
पुलिस के योजना एवं प्रबंधन शाखा के विशेष डीजी आरके विज ने बताया कि डायल-112 को प्रदेश में शुरू हुए लगभग ढ़ाई साल होने जा रहे हैं। इन ढ़ाई वर्षों में डायल-112 ने प्रदेश में क्वीक रिस्पांस के समय में कमीं लाई है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में डायल-112 को महासमुंद जिले में आगजनी की सूचना मिली, डायल-112 ने इसकी जानकार रायपुर फायर ब्रिगेड को दी।
चूंकि प्रदेश के 5 जिलों में फायरबिग्रेड का संचालन अब नगर सेना कर रही है। ऐसे में इसकी महती जिम्मेदारी पुलिस विभाग की हो जाती है कि स्थानीय आधार पर फायर फाइटर्स की जरुरतें पूरी हो और सुविधाएं जल्द मुहैय्या कराई जा सके। अब डायल-112 से कमांड के बाद यदि रायपुर से फायर-फाइटर महासमुंद भेजा जाएगा तो उस आगजनी का क्या होगा, इसमें दो ही विकल्प हैं या तो आग बेतरतीब फेल जाएगा या फिर बुझ जाएगा।
अब यदि आग बुझ जाता है तो आने-जाने सहित विभिन्न प्रकार की विभागीय क्षति का जिम्मेदार कौन होगा। इसकी जवाबदेही भी प्रशासन ने अब तक तय नहीं की है।
हाल ही में रायपुर के खमतराई क्षेत्र में एक अगरबत्ती कारखाना में आगजनी हुई ये आग लगभग 5 दिनों तक जलती ही रही। इसे बुझाने रायपुर शहर का फायर अमला दिन-रात मुस्तैद होकर आग बुझाने में लगा रहा। अब इस आग को बुझाने जब कारखाना के मालिक को दीवाल तुड़वाने कहा गया तो उसने साफ इंकार कर दिया और आग पर काबू पाने में 5 दिन लग गए। इस दौरान एसडीआरएफ का बल मौके पर तो रहा, लेकिन तमाश बिन बने देखता रहा। न तो फायर फाइटिंग कर रहे लोगों की मदद की और न ही आग बुझाने में के लिए आवश्यक उपकरण मुहैय्या कराए।
यहां सबसे बड़ी बात यह है कि फायर अफसर तक नदारत रहे। उन्होंने आगजनी की ओर पलटकर भी देखना मुनासिफ नहीं समझा, लेकिन इन सब में गलती अफसरों की नहीं बल्कि व्यवस्था की है। व्यवस्था के अनुसार यदि कार्य सम्पादित किए जाएं तो बेहतर नतीजे सामने आएंगे।
यहां यह बताना भी जरुरी है कि इसी आगजनी की वजह से मुख्यमंत्री को कुर्मी समाज के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद बीरगांव सेे हेलीकाप्टर की बजाए सड़क मार्ग से लौटना पड़ा।
इस सब पर जब डीजी विज से चर्चा की गई तो उन्होंने साधारण तौर पर कह दिया कि ये दिगर विभाग का काम है। दिगर विभाग को डायल-112 सिर्फ कमांड ट्रांसफर कर सकता है।
यदि डायल-112 के कमांड पर समयबद्ध कार्य सम्पादित न हो तो डायल-100 ही ठीक है। कम से कम उसमें सरकार के करोड़ों रुपए पानी की तरह बर्बाद तो नहीं होते।

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