सफल हुआ 50 सालों का संघर्ष : गंगरेल जलाशय के विस्थापितों को मिला हाई कोर्ट से न्याय

पट्टे के माध्यम से भूमि आबंटन की कार्रवाई शुरू कराने न्यायालय ने दिए निर्देश
बिलासपुर।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत गंगरेल डैम धमतरी से प्रभावित गंगरेल प्रभावित समिति ने उच्च न्यायालय में लंबी लड़ाई के बाद पुनर्स्थापन के लिए रिट याचिका दायर की थी। जिस पर उच्च न्यायालय की एकल बेंच ने प्रभावितो के पक्ष में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को विस्थापितों के लिए जमीन आबंटन की कार्रवाई शुरू करने निर्देशित किया है।
याचिकर्ताओं ने मांग की थी कि 1972 से हम सब परिवार विस्थापित है। जब डैम का निर्माण हो रहा था तब हमारी जमीन राज्य सरकार ने अधिग्रहित कर ली थी और बहुत ही कम मुआवजा दिया गया था। हमे भूमि के बदले भूमि देने की लिखित आश्वासन दिया गया था, जिसके तहत सिर्फ 178 लोगो को जमीन दी गयी और जोगिदिह ग्राम बसाया गया। बाकी 8 हजार परिवार को कुछ नही मिला जो धमतरी, दुर्ग, कांकेर के थे। लगातार मांग आंदोलन करने बाद 2004 से 2011 तक फिर आश्वासन दिया गया पुनः कुछ लोगो को जमीन दी गयी। अंततः समिति ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से उच्च न्यायालय में याचिका लगाकर मांग की कि जैसे करीब 200 लोगो को पुनर्स्थापन के तहत जमीन और सुविधाओं का विस्तार कर दिया गया, समिति के सभी सदस्यों को मिलना चाहिए। 13 साल के लंबी लड़ाई के बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि 3 माह के भीतर सभी समिति के सदस्यों को जमीन उनकी जरूरत को ध्यान रखकर प्राथमिकता के आधार पर दे और उनको दें जो आज तक भूमिहीन है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह कहा कि आवंटन के दौरान 2004-05 से 2009-10 तक की अवधि राज्य द्वारा जांच संस्थान के अधीन है। परंतु रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है। इसलिए, याचिकाकर्ता के सदस्य भी भूमि के आवंटन के संदर्भ में उचित विचार के हकदार हैं जिन्हे एक ही लाइन पर जमीन से बेदखल कर दिया गया है। 2004-05 और 2009-10 की अवधि के बीच आवंटित भूमि के लिए आगे बढ़ रहा भूमि आवंटन के लिए मामलों पर याचिकाकर्ता-सोसायटी को कलेक्टर के कार्यालय द्वारा शुरू करने की आवश्यकता है। दुर्ग, धमतरी और कांकेर में पट्टे के माध्यम से भूमि के आवंटन के लिए कार्यवाही शुरू करने के आदेश संबंधित कलेक्टर सक्षम प्राधिकारी को दें।

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