वॉशिंगटन। ट्रंप प्रशासन की अति प्रतिबंधात्मक नीतियों के चलते एच-1बी आवेदनों को खारिज किए जाने की दर 2015 के मुकाबले इस साल बहुत अधिक बढ़ी हैं। एक अमेरिकी थिंक टैंक की तरफ से किए गए अध्ययन में यह भी सामने आया है कि नामी-गिरामी भारतीय आईटी कंपनियों के एच-1बी आवेदन सबसे ज्यादा खारिज किए गए हैं। ये आंकड़ें उन आरोपों को एक तरह से बल देते हैं कि मौजूदा प्रशासन अनुचित ढंग से भारतीय कंपनियों को निशाना बना रहा है।इस अध्ययन के मुताबिक 2015 में जहां 6 प्रतिशत एच-1बी आवेदन खारिज किए जाते थे, वहीं मौजूदा वित्त वर्ष में यह दर बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई है। यह रिपोर्ट अमेरिका की नागरिकता एवं आव्रजन सेवा यानी यूएससीआईएस से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है।उदाहरण के लिए 2015 में अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल और गूगल में शुरुआती नौकरी के लिए दायर एच-1बी आवेदनों में महज एक प्रतिशत को खारिज किया जाता था। वहीं 2019 में यह दर बढ़कर क्रमश: 6, 8, 7 और 3 प्रतिशत हो गई है। हालांकि एप्पल के लिए यह दर 2 प्रतिशत ही बनी रही। रिपोर्ट में कहा गया कि इसी अवधि में टेक महिंद्रा के लिए यह दर 4 प्रतिशत से बढ़कर 41 प्रतिशत हो गई, टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज के लिए 6 प्रतिशत से बढ़कर 34 प्रतिशत, विप्रो के लिए 7 से बढ़कर 53 प्रतिशत और इंफोसिस के लिए महज 2 प्रतिशत से बढ़कर 45 प्रतिशत पर पहुंच गई।इसमें कहा गया कि एसेंचर, केपजेमिनी समेत अन्य अमेरिकी कंपनियों को आईटी सेवाएं या पेशेवर मुहैया कराने वाली कम से कम 12 कंपनियों के लिए अस्वीकार्यता दर 2019 की पहली 3 तिमाही में 30 प्रतिशत से अधिक रही। इनमें से ज्यादातर कंपनियों के लिए यह दर 2015 में महज 2 से 7 प्रतिशत के बीच थी।रोजगार जारी रखने के लिए दायर एच-1बी आवेदनों को खारिज किए जाने की भी दर भारतीय आईटी कंपनियों के लिए सबसे ज्यादा थी। दूसरी तरफ अमेरिका की नामी कंपनियों में नौकरी जारी रखने के लिए दायर आवेदनों को खारिज किए जाने की दर कम रही।रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन का मुख्य लक्ष्य यह रहा है कि सुशिक्षित विदेशी नागरिकों के लिए अमेरिका में विज्ञान एवं इंजीनियरिंग क्षेत्र में नौकरी करना ज्यादा मुश्किल बनाया जाए।