कुमार कौशलेन्द्र
सूदखोरों और महाजनी प्रथा के ख़िलाफ़ विप्लव का बिगुल फूँक कर शिबू सोरेन ने अपने जीवन काल में ही दिसोम गुरु का दर्जा हासिल कर लिया. जहां तक मेरी जानकारी है – अविभाजित बिहार और झारखंड में जो जन स्वीकार्यता का कीर्तिमान तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो ने हासिल किया उसके इर्द-गिर्द अबतक कोई राजनेता पहुँच नहीं पाया. गुरू जी के बारे में जितना जाना और समझा उसे जब फिल्मों के परिप्रेक्ष्य में देखता हूँ तो मुझे ‘नायक’ फिल्म के अभिनेता अनिल कपूर में शिबू सोरेन की विपल्वी छवि दिखती है.
सही मायनों में कहें तो अपने आचरण, बेबाक बोलचाल और दो टूक अक्खड़ मिज़ाज के कारण गुरु जी ताउम्र विपल्वी जननेता ही बने रहे और पेशेवर बन चुके राजनीतिज्ञों की भांति राजनीतिक हानि लाभ का गणित न तो उन्हें समझ में आया और ना ही उन्होंने उसकी परवाह की.
हेमंत जी आप को बेहतर याद होगी वो 30 जुलाई 1995 की तारीख जब JAAC अर्थात् झारखंड क्षेत्रीय स्वायत्तशासी परिषद् का झुनझुना पृथक झारखंड गठन और विकास कवायद के नाम पर थमाया गया था. राजनीति का वो कुरूप चेहरा उस वक्त के आपके युवा मानस पटल पर निश्चित ही अंकित हुआ होगा जब आपके नायक पिता को राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार बना कर तिहाड़ जेल में प्रताड़ित किया जा रहा था और उस दौर के कष्ट का वो दौर भी आप नहीं भूले होंगे जब आपके पिता और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के जननायक वाले आभामंडल से उर्जा पाकर राजनीति की सीढ़ियों पर चढ़कर कुर्सी पाने वाले लोग आपके परिवार को दुर्दशा के हालात में बिलकुल अकेला छोड़ जैक एंड जील कर रहे थे. उस षड्यंत्र के रणनीतिकार और सत्ता की मलाई काटने वालों की सूची मैं उजागर करूँ अथवा नहीं आपके जेहन में जरूर दर्ज होगी.
उपरोक्त दावा मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आपके अग्रज दादा स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जी, जिन्हें आपके पिता शिबू सोरेन विप्लव काल के कष्टों का साक्षी कहते थे के सानिध्य में मुझे झारखंड की तत्कालीन राजनीति के उस विद्रुप चेहरे का साक्षात्कार हुआ था जो मेरे पत्रकारिता जीवन की अहम थातियों में शामिल हो गया है. आपके दादा दुर्गा जी को पीठ पर बोदरा कर आपकी माता जी विप्लवी नायक शिबू सोरेन के साथ जंगल-जंगल भटकती रहीं और जनचेतना का अलख जगाया. उसी का सुपरिणाम है 1969 में सोणत् संथाल समाज से शुरू होकर 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के रूप में राजनीतिक पटल पर उभरी आपकी पार्टी की ये वर्तमान बुलंदी.
भूले नहीं होंगे आप राजनीतिक विश्लेषकों की उन टिप्पणियों को, जो अखबारों की सुर्खियां बन कभी सांसद रिश्वत प्रकरण, कभी चीरुडीह नरसंहार प्रकरण, कभी शशिनाथ प्रकरण, कभी सूरज मंडल की विदाई व अलग दल गठन और न जाने कितने प्रकरणों को आधार बनाकर आपके पिता और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और झामुमो के राजनीतिक अवसान का एलान किया करते थे.
आपके अग्रज दुर्गा जी के असामयिक निधन के उपरांत झामुमो की राजनीति में आपके अवतरण और उत्तराधिकार योग्यता पर सवालों से रंगे पत्र-पत्रिकाओं व अन्य मीडिया की खबरें भी आपके जेहन में जीवंत ही होंगी.
मेरे बेबाक आलेख को पढ रहे सुधि पाठकों के साथ-साथ आपके मन में भी संभवतः यह विचार आ रहा होगा कि फिलहाल तो आप सूबे झारखंड में सत्तासीन बहुमत वाली सरकार के मुख्यमंत्री हैं तो मैं अपने शीर्षक ‘नायक की छवि में आईये हेमंत जी… ‘ से भटक कर इतनी भूमिका क्यों बांधता चला जा रहा हूँ. स्वभाविक भी है ऐसी धारणा ,क्योंकि वर्तमान लेखन परिपाटी में लेखनी के दो ही पहलू प्रबल हैं -चाटुकारिता की चासनी में सराबोर आलेख अथवा आलोचनात्मक बकैती.
मैं अपने शीर्षक ‘नायक की छवि में आईये हेमंत जी… ‘ से भटक कर इतनी भूमिका क्यों बांधता चला जा रहा हूँ. स्वभाविक भी है ऐसी धारणा ,क्योंकि वर्तमान लेखन परिपाटी में लेखनी के दो ही पहलू प्रबल हैं -चाटुकारिता की चासनी में सराबोर आलेख अथवा आलोचनात्मक बकैती.
आम पत्रकार हूँ, उपरोक्त दोनों फ्रेम में अनफिट भी मानता हूँ स्वयं को. खैर मुद्दे पर लौटता हूँ…. विगत् फरवरी में मैं भी दुमका की गलियों में मौजूद था. आपके नेतृत्व में पहली दफा गांधी मैदान, दुमका का जनसैलाब देखकर मुझे अपना छात्र जीवन याद आ गया, जो मैंने संत जोसेफ स्कूल गुहियाजोरी, दुमका में बतौर विद्यार्थी व्यतीत किया था. दिसोम गुरु के आह्वान पर बगैर किसी राजनेता प्रदत्त परिवहन और भोजन के जो स्वत: स्फूर्त जनसैलाब पूरी दुमका को पाट देती थी कमोबेश वही नजारा मुझे आपके नेतृत्व में आयोजित विगत् फरवरी के स्थापना दिवस रैली में भी देखने को मिला.
गुरेज नहीं मुझे यह लिखने में कि आपने झामुमो के परंपरागत समर्थकों का विश्वास हासिल कर लिया और साथ ही साथ ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा बुलंद करने वालों को पटखनी देते हुये शहरी मतदाताओं का भी विश्वास हासिल कर लिया.यह दुष्प्रचार की शिबू सोरेन की झामुमो सिर्फ आदिवासियों तक सीमटी पार्टी है हवा हो गई. एक नई जनचेतना का उदय हुआ कि हेमंत सोरेन में झारखंड के सर्वांगीण विकास का भविष्य है.
बावजूद उपरोक्त के मुझे आपमें दिखने वाली नायक की छवि कहीं गुम सी होती दिखने लगी है. नायक हेमंत में मुझे राजनीतिक दाव-पेंच के बोझ तले दबा एक कमज़ोर मुखिया दिखने लगा है. राजनीतिक घटनाक्रम और मीडिया की सुर्खियों पर मगजमारी करता हूँ तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि तमाम वैचारिक सहिष्णुता, विनम्रता और जज्बे के बावजूद तंत्र की कठपुतली बनकर सत्ता चलाने वाले मुख्यमंत्री बनते जा रहे हैं आप.
यदि ऐसा नहीं तो आपके मंत्रीमंडल में वैचारिक साम्य का अनुशासन क्यों लोपमुद्रा में दिखता है? जो घोषणा नायक के दफ्तर से होनी चाहिए वह कैबिनेट में शामिल सहनायकों के मुखारविंद से होती है. आपका कोई मंत्री राजद सुप्रीमो के पैरोल की सार्वजनिक वकालत कर ऐसा माहौल बनता है मानो आपकी सरकार ने तमाम न्यायिक संस्थाओं के निर्णय को किनारे लगाने की तैयारी कर ली हो. कोई मंत्री अपने जन्मदिन पर पारा शिक्षकों के नियमितीकरण और वेतन वृद्धि की घोषणा यूँ करता है कि बस निर्णय हुआ ही समझिये.आप भोथर पड़ी राज्य लोक सेवा आयोग को धार देकर बहाली प्रक्रिया को पटरी पर लाने की कवायद करते हैं तो आपके गठबंधन सहयोगी दल का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्ति प्रक्रिया को ही संदेह के कठघरे में खड़ा कर देने और मंत्रियों की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाने से बाज नही आता. उपर से मुलम्मा देखिये- शाम में कैबिनेट बैठक के बाद खबर आती है कि कोरोना लाॅक डाउन पर आगामी निर्णय कैबिनेट ने मुख्यमंत्री पर छोडा़ और सुबह आपके मंत्रीमंडल सहयोगी के हवाले से खबर आती है कि लाॅक डाउन नहीं लगेगा.. रोजी का सवाल है…
उपरोक्त नजीर बेबाक में शामिल करने की एकमात्र मंशा यही है कि अनुशासनहीन तंत्र जनित अराजकता और प्रशासनिक विफलता का ठीकरा क्या आपके सर नहीं फूटेगा. जनता ने अपने झारखंड के भविष्य का निर्धारण करने लिये हेमंत सोरेन को सर्वाधिक सीटों के साथ विधानसभा इसलिये तो नहीं भेजा था कि उनका नायक दवाब की राजनीति की कठपुतली बन जाये.
आगे बढने से पहले स्पष्ट कर दूं कि समाजिक न्याय के नायक लालू प्रसाद की रिहाई, पारा शिक्षकों के नियमतिकरण व वेतन वृद्धि आदि से मुझे कोई रंज नहीं, किन्तु सत्ता संचालन में उजागर हो रही अनुशासनहीनता और अराजकता मुझे अच्छे संकेत देते नहीं दिख रहे. अच्छा लगता है जब आप मीडिया और आधुनिक प्रचलन वाले सोशल मीडिया का संज्ञान लेकर त्वरित कार्यवाही करते हैं किन्तु आप तंत्र की चूलें कब कसेंगे ; जो आपके हस्तक्षेप के बाद ही समस्या निष्पादन को तत्पर होता है.
मानता हूँ कि सत्तारोहण के बाद से ही आप कोरोना आपदा से जूझ रहे हैं किन्तु इस आपदा को अपने प्रबंधन कौशल से अवसर में बदलने की आपकी आंतरिक शक्ति कहाँ गुम हो गयी हेमंत जी? कभी गोपाल जी कभी लाल जी….ये तो बैठे बिठाये विपक्ष को मुद्दों की थाल परोसने वाली रसोई बन रही है.तय है कि आपके पास सलाहकारों और रणनीतिकारों की विद्वत् फौज होगी बावजूद इसके राजनीतिक व प्रशासनिक अराजकता का माहौल सर चढ़कर क्यों बोल रहा है?
याद कीजिये अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री के कार्यकाल को ,जनता ने उन्हें खास से आम सिर्फ इसी कारण बना दिया क्योंकि उनके अपने मंत्रिमंडल सहयोगी ही कदम कदम पर उन्हें खलनायक साबित करते रहे और वो चुप्पी की चादर ओढ़े रहे. उनके जमाने में भी रघुकुल रीति…, मोमेंटम और न जाने कितने मोबाईल एप्प ऐपिसोड चले और कंबल उनकी बची खुची कीर्ति भी खा गया.
गौर कीजियेगा हेमंत जी बदलाव के बयार संग सत्तासीन हुये हैं आप, लेकिन मंत्रीमंडल विस्तार में सहयोगी दल की किचकिच, तबादले में थुक्का-फजीहत और उपर से अनुशासन के दायरे से बाहर की बयानबाजी आपकी छवि को धूमिल करने के लिए काफी हैं.
सत्ता का क्या है वो तो आनी जानी है किन्तु आपकी छवि जिसे आंग्ल भाषा में ईमेज कहते हैं आपका कल तय करेगी.आप में वो माद्दा है कि पारंपरिक राजनीतिक परिपाटी से इतर नायक के रूप में राजकाज चला सकते हैं.तंत्र वही, सत्ता संचालन का मंत्र वही तो फिर हेमंत पृथक कैसे? परिपाटी बदलिये और नायक बनिये हेमंत जी पारंपरिक अभिनेता नहीं…