राम बिना आराम कहां है

तारन प्रकाश सिन्हा

यह निर्विवाद ऐतिहासिक तथ्य है कि, छत्तीसगढ़ ही प्राचीन दक्षिण कोसल है। यह भी सत्य है कि वर्तमान बस्तर ही प्राचीन दण्डकारण्य है। यही दो प्राचीन नाम रामकथा के दो ऐसे बिंदु है, जिसमें से एक से उसका उद्गम होता है और दूसरे से वह अपने चरम की ओर अग्रसर होती है।
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार राजा दशरथ के समय में दो कोसल थे। एक कोसल था, जो विंध्य पर्वत के उत्तर में था, जिसके राजा दशरथ ही थे। दूसरा कोसल विंध्य के दक्षिण में था, जिसके राजा भानुमंत थे, दशरथ ने इन्हीं भानुमंत की पुत्री से विवाह किया था जो कौशल्या कहलाई। भानुमंत का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उनका राज्य भी दशरथ ने ही प्राप्त किया। इस तरह दोनों कोसल संयुक्त हो गए। राम का जन्म कौशल्या की कोख से उसी संयुक्त कोसल में हुआ, कालांतर में उन्होंने इसी संयुक्त कोसल के राजा हुए।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जब कहते है कि यहां के कण-कण में राम बसे हुए हैं, तब उनका यह कथन दार्शनिक और आध्यात्मिक तथ्यों से कहीं ज्यादा ऐतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक तत्वों की ओर ईशारा कर रहा होता है।
छत्तीसगढ़ न केवल राम-जन्म की पृष्ठ-भूमि है, बल्कि उनके जीवन-संघर्षो की साक्षी भी है। उन्होंने अपने 14 वर्षो के वनवास में से ज्यादातर समय यहीं पर बिताए। वे वर्तमान छत्तीसगढ़ की उत्तरी-सीमा, सरगुजा से प्रविष्ट होकर दक्षिण में स्थित बस्तर अर्थात् प्राचीन दण्डकारण्य तक पहुंचे थे। राम ने जिस मार्ग से यह यात्रा की, उन्होंने जहां प्रवास किया, पुराणों में उल्लेखित उनके भौगोलिक साक्ष्य आज भी विद्यमान है।
करीब डेढ़ साल पहले छत्तीसगढ़ की नयी सरकार ने अपनी जिन प्राथमिकताओं की घोषणा की थी, उनमें प्रदेश का सांस्कृतिक पुर्नउत्थान शीर्ष पर था। सरकार की यह सोच रही है कि मूल्य-विहीन विकास न तो मनुष्यों के लिए कल्याणकारी हो सकता है और न ही प्रकृति के लिए। इसलिए छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परंपराओं में शामिल मूल्यों को सहेजने उन्हें पुर्नस्थापित करने का काम शुरू किया गया। पूरी दुनिया जिस राम कथा को मानवीय मूल्यों के सबसे बड़े स्त्रोत के रूप में जानती-मानती आयी है। छत्तीसगढ़ का यह सौभाग्य है कि यहीं पर उसका उद्गम है और यहीं पर वह प्रवाहित होती है।
सरगुजा से लेकर बस्तर तक राम गमन मार्ग में बिखरे पड़े साक्ष्यों को सहेजना छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक मूल्यों को ही सहेजना है। इसलिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इस पूरे मार्ग को नए पर्यटन-सर्किट के रूप में विकसित करने की योजना तैयार करवायी है। 137.45 करोड़ रूपए की लागत वाली उनकी इस महत्वाकांक्षी परियोजना में कोरिया जिले का सीतामढ़ी-हरचैका, सरगुजा का रामगढ़, जांजगीर का शिवरीनारायण, बलौदाबाजार का तुरतुरिया, रायपुर का चंदखुरी, गरियाबंद का राजिम, धमतरी का सिहावा, बस्तर का जगदलपुर और सुकमा का रामाराम शामिल है।
नए पर्यटन-सर्किट का कार्य रायपुर जिले के चंदखुरी से शुरू हो चुका है। यहीं वह स्थान है जहां भगवान राम की माता कौशिल्या का जन्म हुआ था, जहां भानुमंत का शासन था। चंदखुरी में स्थित प्राचीन कौशिल्या माता मंदिर के मूल स्वरूप को यथावत रखते हुए, पूरे परिसर के सौदर्यीकरण और विकास के लिए लगभग 16 करोड़ रूपए की योजना के लिए दिसम्बर माह में भूमि पूजन हो चुका है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने बीते जुलाई माह के अंतिम सप्ताह में सपरिवार चंदखुरी जाकर मंदिर के दर्शन किए और इस स्थल को उसके महत्व और गरिमा के अनुरूप विकसित करने के निर्देश दिए है।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं)

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