मानसून आधारित खेती के लिए और कोशिश जरूरी

रामेश्वर गुप्ता
हमारे छत्तीसगढ़ में खरीफ की फसल धान पूरी तरह मानसून आधारित फसल है।छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में धान की व्यापक पैदावार और यहाँ की मिट्टी धान के फसल के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है।एक दूसरा पहलू ये भी है की छत्तीसगढ़ का भौगोलिक आकार एक उथले कटोरेनुमा होने के कारण भी इसे धान का कटोरा कहा जाता है। धान की फसल के लिए बहुत अधिक पानी की लगातार आवश्यकता होती है।ऐसे में मानसून की बारिश ही खेतों की प्यास बुझाती है। अनियमित मानसून,कम मानसून,वृष्टिछाया क्षेत्र,मौसमचक्र परिवर्तन इत्यादि कारणों से लगभग हर वर्ष धान की फसल प्रभावित होते रही है। कई बार देर से मानसून आना किसानों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है।ऊपर से ठीक धान के पकने के समय एक बारिश की कमी हो जाने से फसल चौपट हो जाती है।
मानसून आधारित इन फसलों के लिए बांध,जलाशय,बैराज,एनीकट,चेकडेम एक वरदान साबित हो रहा है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तो इसे आधुनिक मंदिर कहा है। वैसे तो छत्तीसगढ़ में आजादी से पहले ही अंग्रेजों के द्वारा बांध बनने शुरू हो गए थे। मनियारी नदी में लोरमी के पास खुडिया बांध 1924 में जो 1930 में बनकर तैयार हुआ,1931 में खारंग टैंक खूंटाघाट जलाशय जैसे बांध बनाये गये।आजादी मिलने के बाद सम्पूर्ण भारत के साथ अविभाजित मध्यप्रदेश में भी कई बड़े ,मध्यम बांध बनाये गये।2019 तक छत्तीसगढ़ में 8 वृहद,37 मध्यमऔर 2468 लघु सिंचाई परियोजनाओं को मूर्त रूप दिया जा चुका है। छत्तीसगढ़ के लगभग 36% खेती की सिंचाई नहरों के द्वारा इन बांधों से किया जा रहा है। वर्तमान में कई जिलों के किसान तो इन्हीं बांधों के सहारे दुहरी फसल तक ले रहे हैं।
महानदी पर बने गंगरेल बांध,दुधावा बांध,मोडमसिल्ली,रुद्री जलाशय,हसदेव नदी पर बांगों बांध, घोंघानदी पर घोंघा जलाशय, चांपी जलाशय जैसे कई छोटे बड़े बांध बनने से यहाँ के किसानों को भरपूर लाभ मिलना शुरू हुआ है। बांध से केवल सिंचाई ही नहीं,बल्कि पेयजल, पनबिजली उत्पादन,उद्योगों के लिए पानी देने का भी काम किया जा रहा है। बांगों बांध से कोरबा में पेयजल, पनबिजली और एनटीपीसी को पानी दिया जा रहा है।रतनपुर स्थित खारंग नदी पर बने खूंटाघाट जलाशय से बिलासपुर शहर को पेयजल हेतु अमृत मिशन से पानी देने का काम चल रहा है। न्यून वॄष्टि से अकाल और पानी की कमी वहीं अति वृष्टि से बाढ़ और महामारी की समस्या से मुक्ति पाने के लिए नदियों और नालों को आपस में जोड़ने की बात हो रही है। स्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के नदी जोड़ों अभियान से सूखे बांध और कम भराव वाले बांधों को अतिरिक्त पानी देने की योजना बन रही है।
ना सिर्फ बड़े बांध बल्कि छोटे छोटे जलाशय,बैराज,तालाब,चेकडेम भी अब सिंचाई के काम आ रहे हैं। बरसात में जब बड़े बांध भर जाते हैं तो ओवरफ्लो के पानी को नहरों के द्वारा छोड़कर नीचे के अन्य छोटे जलाशयों,तालाबों को भरा जाता है। बरसात के पानी को छोटे छोटे चेकडेम बनाकर रोकने से फसलों को पानी मिलने के साथ ही अन्य जीवजंतु को भी प्यास बुझाने के लिए पानी मिल रहा है।वहीं इन तालाबों और चॅकडेमों के कारण जमीन के अंदर जलस्तर भी बनाये रखने में मदद मिल रही है।
अभी भी हमारे छत्तीसगढ़ के बहुत बड़े भूभाग पर खेती मानसून के भरोसे ही होती है। मानसून के जरा सा रूठने पर इन किसानों के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट जाता है।पानी बिना खड़ी फसल सूखने के साथ ही किसानों के चेहरे भी मुरझाने लगते हैं। अभी भी जरूरत है आज के आधुनिक मंदिर बांध,बैराज,जलाशय,तालाबों,एनीकट,चेकडेमों की संख्या बढ़ाने की। मानसून आधारित फसल पानी की कमी से बर्बाद ना हो इसके लिए सरकार दीर्घकालिक योजना बनाकर काम करे। याद रखें पानी सिर्फ बचाया जा सकता है,बनाया नहीं जा सकता। पानी के हर बूंद को बचाने और सहेजने की जरूरत है।

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