संसद के विशेष सत्र में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का विधेयक भी होगा पेश, इस पर इतना क्यों भड़का है विपक्ष

नई दिल्ली
 केंद्र सरकार की ओर से 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। इसे लेकर जारी एजेंडे में 4 बिलों का जिक्र किया गया है। इनमें सबसे अहम और विवादित बिल ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) विधेयक, 2023’ भी शामिल है। बीते अगस्त में राज्यसभा में विधि व न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस बिल को पेश किया था। इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में चीफ जस्टिस के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक 2023 के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति की ओर से की जाएगी। विधेयक के मुताबिक, प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होंगे और समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और प्रधानमंत्री की ओर से नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे। अगर लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है तो सदन में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष माना जाएगा।

कैबिनेट सचिव करेंगे खोज समिति का नेतृत्व
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के चयन के लिए प्रधानमंत्री नीत पैनल को अधिकार होगा कि वह उन नामों पर भी विचार कर सकता है, जिनका चयन कैबिनेट सचिव के नेतृत्व वाली खोज समिति ने नहीं किया हो। संसद में हाल ही में पेश एक विधेयक में यह बात कही गई है। खोज समिति का नेतृत्व कैबिनेट सचिव करेंगे। इसमें 2 अन्य सदस्य भी होंगे जो सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे और उन्हें चुनाव से जुड़े विषयों का ज्ञान व अनुभव होगा। यह खोज समिति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर विचार के लिए 5 नामों को सूचीबद्ध करेगी। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति उन लोगों में से होगी जो भारत सरकार में सचिव स्तरीय पद पर या समान रैंक के पद पर हों।

चुनाव आयोग को कठपुतली बनाने का प्रयास: विपक्ष
अब बात अगर चुनाव आयुक्त से जुड़े इस विधेयक को लेकर विवाद की करें तो वो CJI को लेकर है। दरअसल, अबतक चयन समिति में देश के चीफ जस्टिस भी होते थे। लेकिन नए बिल के पास होने के बाद कमेटी में मुख्य न्यायाधीश नहीं होंगे। इसे लेकर विपक्षी दलों का आरोप है कि यह चुनाव निकाय को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास है। आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया, ‘प्रधानमंत्री मोदी भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। नियुक्त होने वाले निर्वाचन आयुक्त BJP के प्रति वफादार होंगे। वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह 2024 के चुनाव में धांधली की दिशा में स्पष्ट कदम है।

हर मंच पर करेंगे इसका विरोध: कांग्रेस
कांग्रेस नेताओं ने सभी लोकतांत्रिक ताकतों से प्रस्तावित कानून का विरोध करने की अपील की थी। मुख्य विपक्षी दल का सवाल था कि क्या बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस भी विधेयक का विरोध करने के लिए हाथ मिलाएंगे। कांग्रेस महासचिव (संगठन) के सी वेणुगोपाल ने सरकार पर निशाना साधा और इसे निर्वाचन आयोग को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास बताया। वेणुगोपाल ने एक्स पर कहा, ‘एससी के मौजूदा फैसले के बारे में क्या कहना है जिसके तहत एक निष्पक्ष समिति की आवश्यकता है? प्रधानमंत्री को पक्षपाती निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है? यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है। हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे।’