नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल पुलिस को पांच टीवी पत्रकारों को गिरफ्तार करने से रोक दिया है, जिनके खिलाफ राज्य के मंत्रियों और टीएमसी विधायकों को कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए दिखाने के लिए स्टिंग ऑपरेशन करने के बाद पांच मामले दर्ज किये गये थे. जस्टिस आर भानुमति की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि जब पत्रकारों को 10 फरवरी को शीर्ष अदालत ने एफआईआर में अंतरिम संरक्षण दिया था, उसी दिन पुलिस द्वारा एक और प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
पीठ ने 10 फरवरी को राज्य पुलिस को पत्रकार भूपेंद्र प्रताप सिंह, अभिषेक सिंह, हेमंत चौरसिया और आयुष कुमार सिंह को एक प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार करने से रोक दिया था. पत्रकारों पर आरोप लगाया गया था कि कथित स्टिंग ऑपरेशन राजनेताओं से पैसा वसूलने के लिए किया गया था. स्टिंग ऑपरेशन का एक हिस्सा 5 जनवरी को कोलकाता में टीवी चैनलों और प्रिंट मीडिया में प्रसारित किया गया था.
अदालत द्वारा यह आदेश दिए जाने के तुरंत बाद पत्रकारों के खिलाफ दो और प्राथमिकी दर्ज की गईं. सबसे पहले उस दिन जब पीठ ने पत्रकारों को अंतरिम संरक्षण दिया और 27 फरवरी को एक और. दर्ज की गई प्राथमिकियों के खिलाफ पत्रकार सुप्रीम कोर्ट जाने को मजबूर हो गए.
ताजा याचिका में राज्य में सत्ताधारी पार्टी के मंत्रियों और नेताओं द्वारा पुलिस के दुरुपयोग की शिकायत के अलावा सीबीआई को जांच सौंपने की भी मांग की गई थी. इसके साथ ही एक अन्य पत्रकार उमेश कुमार शर्मा और बंगला भारत न्यूज चैनल के अधिकृत प्रतिनिधि अनिल विजय की गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
पत्रकारों का का पक्ष रखते हुए केवी विश्वनाथन और अपराजिता सिंह ने अफसोस जताया कि पुलिस उनके साथ प्रतिशोध की भावना के साथ काम कर रही है और उन्हें धमकी देने के लिए नई प्राथमिकी दर्ज की जा रही है.
यह कहते हुए कि 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पश्चिम बंगाल पुलिस ने जिस तरह से कार्रवाई की है और दो और प्राथमिकी दर्ज की हैं, इससे यह आशंका जायज है कि जांच में कोई ना कोई कमी है और पत्रकारों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण कार्रवाई की जा रही है. इसलिए वकीलों ने तर्क दिया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए जांच सीबीआई को सौंप दी जानी चाहिए।