आकाशवाणी रायपुर की काव्य संध्या में हुआ 3 भाषाओं का संगम

रायपुर

आकाशवाणी रायपुर द्वारा जी-20 के अंतर्गत रायपुर के रंग मंदिर में आयोजित काव्य संध्या में अंचल के कवियों ने प्रकृति, जीवन दर्शन और अनेकता में एकता के संदेश के साथ हिंदी, छत्तीसगढ़ी और उर्दू रचनाओं से काव्य प्रेमियों को साहित्य सृजन की धाराओं से आप्लावित किया। दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। स्वागत उद्बोधन में आकाशवाणी रायपुर के कार्यक्रम प्रमुख लखन लाल भौर्य ने आकाशवाणी के सभी श्रोताओं और उपस्थित दर्शकों को आकाशवाणी के आयोजनों के प्रति लगाव को हमेशा से बनाए रखने की कामना की।

आकाशवाणी परिवार के सदस्यों ने आमंत्रित कवियों का स्वागत किया। सबसे पहले युवा कवि भरत कुमार ने बढ़ती सुविधाओं और घटती सक्रियता पर चिंता व्यक्त करते गांव की शहरों से तुलना करते हुए अपनी कविताओं को श्रोताओं तक पहुंचाया। किशोर तिवारी ने छत्तीसगढ़ी में कहा कि भिनसरहा घर मोहाटीला बहार के तो देख, गऊ माता बर दाना-पानी ला डर के तो देख। इरफानुद्दीन ने उर्दू शायरी में बेमिसाल पेशकश सुनाई- कहानी में कहानी ढूंढता है मोहब्बत की निशानी ढूंढता है, जवानी में वह बचपन ढूंढता था बुढ़ापे में जवानी ढूंढता है। अजय सोनवानी फरमाते हैं- राजधर्म हेतु निजपुत्र का चढ़ाना शीश, ऐसी पन्ना धाय बलिदानी को नमन है, शील रक्षा हेतु जलती अग्नि में कूद गई ऐसी वीर पद्मावती को नमन है। दीप दुर्गवी ने छत्तीसगढ़ी में कहा- सुख के डेना ल फहराबो रे, मोर मन मंजुरा बादल के भरोसा मां हमर खेत परय नाहीं परिया, गांव-गांव म नहर आगे लहकत बाली लहरिया। शायर सुखनवर हुसैन फरमाते हैं- फासला दिल का मिटना चाहिए, बीती बातों को भूलना चाहिए, वह अगर दिल से बुलाते हैं हमें, दिल यह कहता है कि जाना चाहिए। शरद कोकास ने अपनी कविता प्रस्तुत की- अनकही कि वह कहता था, कि वह सुनती थी।

कवि रमेश विश्वहार ने कहा- रुखराई काट-काट जंगल उजारे, कांटे के बेरा थोर कन नहीं बिचारे कवियित्री नीलू मेघ फरमाती है- आओ जहनों की खिड़कियां खोलें, प्यार की बंद मुटिठयां खोलें, रेत पर क्यों उदास बैठा है, आज समंदर की सीपियां खोलें। कवि मीर अली मीर ने अपनी छत्तीसगढ़ी कविता कुछ यूं प्रस्तुत की- कल बलागे हो ही नई ते कल्हरत हो ही, कोन्हो सिरतोन के कलजुग हां हो ही इहां। काव्य संध्या का संचालन कर रहे कवि डॉक्टर मानिक विश्वकर्मा ने अपनी कविता प्रस्तुत की- दृष्टि सब पर सामान रखता हूं ,दिल में सारा जहां रखता हूं, हिंदू-मुस्लिम बसे मेरे अंदर, मन में गीता कुरान रखता हूं। काव्य संध्या के अंत में शायर अब्दुल सलाम कौसर ने फरमाया- मैं चंचल एक नार सहेली, पूछ सके तो बूझ पहेली, पृथ्वी का वरदान कौन है पुरुषों का अभिमान कौन है। शुरू से अंत तक तालियों की गडगड़ाहट के साथ श्रोताओं ने कवियों का उत्साहवर्धन किया। आरंभिक उद्घोषणा वरिष्ठ उद्घोषक के परेश द्वारा की गई आकाशवाणी रायपुर के केंद्र अध्यक्ष वी. राजेश्वर ने आभार व्यक्त किया।