कोरबा। भाईदूज पर मंगलवार को बहनों ने भाई माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारी। इस दौरान बहनों ने कामना किया कि उनके भाईयों का जीवन सफलताओं भरा हो और सुखमय हो।
दिवाली पर्व पर सोमवार को गोवर्धन पूजा के बाद अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष के द्वितीया को भाईदूज का पर्व मनाया गया। भाईदूज बहनों के प्रति भाईयों के प्रेम और विश्वास का पर्व है। इस दिन भाई बहनों के घर पहुंचे। आरती की थाल सजाकर बहनों ने भाईयों के माथे पर तिलक लगाया और उनकी आरती उतारकर लंबी उम्र की कामना की। इस मौके पर भाईयों ने भी बहनों को आकर्षक उपहार भी दिए। पर्व मनाने के पीछे प्रचलित कथा अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी छाया थी। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी और उसकी दिली इच्छा थी कि यमराज उसके घर पहुंचे। यमुना ने एक दिन यमराज को अपने घर आने के लिए वचनबद्ध तो हो गए लेकिन यमराज प्राणों के हरने वाले होने से किसी के घर जाने से संकोच कर रहे थे। मगर उन्होंने सोचा कि बहन जिस प्रेम व स्नेह से उसे बुला रही है, उसका पालन करना भी उसका धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। कार्तिक् शुक्ल पक्ष के द्वितीया को यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना के आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया। इस पर यमुना ने आज के दिन जो भी बहनें अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यह वर मांगा। इस पर यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक चले गए। इसी दिन से भाईदूज पर्व मनाने की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भाई अपने बहन के घर जाकर उसके हाथों से टीका लगवाते हैं वे सभी प्रकार के भय से दूर रहते हैं। इस दिन यमराज व यमुना का पूजन भी किया जाता है।