नई दिल्ली
संसद के भीतर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ हालांकि एकजुट नजर आ रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान इसमें कई टकराव स्पष्ट रूप से दिख सकते हैं। वामपंथी दलों ने जो रुख अख्तियार किया है, उसके तहत उनका स्पष्ट मानना है कि वे केरल में अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ मुकाबले में उतरेंगे। वामपंथी दलों के इस रुख से साफ है कि इन दो राज्यों में इंडिया गठबंधन के दलों के बीच भी परस्पर मुकाबला होना तय है।
केरल में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों आईयूएमएल तथा केसी (एम) ने 18 सीटें जीती थी, जबकि शेष दो सीटें वामदलों सीपीएम और आरएसपी को मिली। सीपीआई कोई सीट नहीं जीत पाई। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में मुख्य मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हुआ। तृणमूल 22, भाजपा 18 तथा कांग्रेस दो सीटें जीतने में सफल रही, जबकि वाम दलों को कोई सीट नहीं मिली। हालांकि उनका वोट प्रतिशत कांग्रेस के छह फीसदी की तुलना में कहीं अधिक 8 फीसदी के करीब रहा। केरल में पिछले लोकसभा चुनाव में वामदलों का साझा वोट प्रतिशत करीब 35 फीसदी के करीब रहा।
कांग्रेस से सीधी लड़ाई
वाम दलों का मानना है कि केरल में कांग्रेस से सीधी लड़ाई है इसलिए वहां लोकसभा चुनावों में सीट शेयरिंग का सवाल ही पैदा नहीं होता है, क्योंकि इससे राज्य की राजनीति प्रभावित होती है। यह बात ‘इंडिया’ की बैठकों में भी वामदल कह चुका है। पश्चिम बंगाल में भी वामदल अपने को खड़ा करने की कोशिश में लगे हैं तथा केरल यूनिट की तरफ से भी दबाव है कि किसी भी सूरत में चुनाव में तृणमूल के साथ खड़े नहीं दिखना है। इसलिए इन दो राज्यों में वामदल इंडिया गठबंधन के दलों के साथ ही मुकाबले में उतरने के लिए तैयार हैं।
चुनाव पूर्व गठबंधन के पक्ष में नहीं
दरअसल, वामपंथी दल शुरू से ही चुनाव पूर्व गठबंधनों के बहुत ज्यादा पक्षधर नहीं रहे हैं, लेकिन मौजूदा हालात में भी उनका मानना है कि इस प्रकार के गठबंधन राज्यवार स्थितियों के अनुकूल होने चाहिए। वामपंथियों की राय में चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए गठबंधन करना कहीं बेहतर है। वे इसके लिए 2004 के फार्मूले को आदर्श मानते हैं।
तब वामदलों ने 61 सीटें जीती थीं, जिनमें से 57 सीटें ऐसी थी जिन पर उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराया था। बाद में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर केंद्र में यूपीए सरकार बनी थी। यानी चुनाव में कौन किसके खिलाफ लड़ रहा है, इसे वे विपक्षी एकता के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं मान रहे।