तुष्टीकरण के लिए सामान्य वर्ग की उपेक्षा से भाजपा में मचा घमासान

जगदलपुर। जिला पंचायत बस्तर के चुनाव के बाद भाजपा के सामान्य वर्ग के नेता नाराज देखे जा रहे हैं। बस्तर संभाग अनुसूचित क्षेत्र होने के कारण यहां सामान्य वर्ग के लिए एकमात्र जगदलपुर विधानसभा है। इसके अलावा प्राय: सभी क्षेत्रों में आरक्षण की व्यवस्था होने से सामान्य वर्ग राजनैतिक क्षेत्र में वैसे भी स्थान नहीं मिलता है। सामान्य वर्ग के प्रतिनिधित्व के लिए नगरीय निकाय और पंचायत में उपसरपंच, उपाध्यक्ष, महापौर जैसे कुछ चंद पद ही सामान्य वर्ग के लोगों को मिल पाता है। ऐसी स्थिति में जब सामान्य वर्ग के दूसरे दर्जे के पदों पर भी तुष्टिकरण के लिए आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी को पार्टी के द्वारा आगे बढ़ाया जाता है, और सामान्य वर्ग के प्रत्याशी की उपेक्षा की जाती है। तब सामान्य वर्ग के नेताओं में नाराजगी होना स्वाभाविक है। यह नाराजगी कल जिला पंचायत बस्तर के उपाध्यक्ष पद को लेकर उठे विवाद के बाद खुलकर भाजपा के सामान्य वर्ग के उपेक्षित नेता सहित अन्य सामने आने लगे हैं। इसी की बानगी भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष दीप्ति पांडे के इस्तीफा के रूप में देखने को मिला है। दीप्ति पांडे भले ही अपने इस्तीफे से मुकर जावे, लेकिन भाजपा सूत्रों से मिली विश्वसनिय जानकारी के अनुसार दीप्ति पांडे का इस्तीफा उनके पति के द्वारा पार्टी के पदाधिकारियों तक पहुंचाया गया था। जिसे पार्टी के नेताओं ने ही व्हाट्सएप में वायरल किया था।
गौरतलब है कि कल जिला पंचायत जगदलपुर के कार्यालय में जिला पंचायत बस्तर के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पद का निर्वाचन होना था जिसके लिए मनीराम कश्यप के द्वारा भाजपा से बगावत कर कांग्रेस के प्रस्तावक एवं समर्थकों के हस्ताक्षर करवाकर जिला पंचायत बस्तर के अध्यक्ष पद का नामांकन दाखिल कर दिया था। कांग्रेस की निष्क्रियता के कारण यहां भाजपा के प्रत्याशी वेदवती कश्यप को परेशानी नहीं हुई। अन्यथा भाजपा के लिए कांग्रेसी यहां मुश्किल खड़ी कर सकती थी। भाजपा बहुत खुश किस्मत थी की, बगावत कर मनीराम कश्यप के द्वारा भरे गए नामांकन को निर्वाचन अधिकारी ने रद्द कर दिया। इसके बाद काफी मान मनव्वल के बाद बागी हो चुके मनीराम कश्यप को संतुष्ट करने के लिए उपाध्यक्ष बनाकर भाजपा न बगावत के सुर को दबाने में सफल रही है, लेकिन दूसरी ओर इस तुष्टिकरण की राजनीति से भाजपा के सामान्य वर्ग के नेता खासे नाराज देखे जा रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भाजपा के पुराने और जमीनी स्तर के नेता प्रदीप देवांगन के इस्तीफे से इसे समझा जा सकता है। यहां यह बताया जाना आवश्यक है कि प्रदीप देवांगन उस दौर के भाजपा नेताओं में से हैं, जब बस्तर संभाग सहित छत्तीसगढ़ में भाजपा का कोई जनाधार नहीं था। प्रदीप देवांगन एक बार जनपद उपाध्यक्ष एवं दो बार जिला पंचायत सदस्य के लिए जीत कर आने वाले जमीनी नेताओं में से हैं।
प्रदीप देवांगन ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बताया कि तुष्टीकरण के लिए सामान्य वर्ग के नेताओं को दरकिनार कर आरक्षित वर्ग के नेताओं को पद दिया जाना अनुचित ही नहीं सामान्य वर्ग के नेताओं के सामने यह यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर पूरे जीवन भर भाजपा की सेवा करने के बाद बस्तर संभाग जैसे क्षेत्र में सामान्य वर्ग के कुछ पदों पर उन्हें अवसर नहीं मिलना यह दुर्भाग्य जनक है। उन्होंने कहा कि सामान्य वर्ग का नेता आखिर भाजपा के साथ क्यों जुड़ा रहना चाहेगा जब उसे राजनीति में अवसर ही नहीं मिलना है। जबकि अधिकांश राजनीतिक पदों पर यहां आरक्षण है। जिसमें सामान्य वर्ग के नेता का उस पद के लिए प्रत्याशी नहीं हो सकता है। ऐसी स्थिति में तुष्टीकरण के लिए भाजपा में सामान्य वर्ग के नेताओं का हक मारा जाना इस ओर इशारा करता है कि आज मेरी बारी थी। कल कोई और सामान्य वर्ग का नेता भाजपा के तुष्टीकरण की नीति का भेंट चढ़ेगा। सभी सामान्य वर्ग के नेताओं को। भाजपा के प्रदेश नेतृत्व को इस दिशा में चिंतन करने के लिए अपनी बात रखनी चाहिए।

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