48 साल बाद ऐतिहासिक दुर्गाडी किले को लेकर अब आया मंदिर के पक्षा में फैसला, बाला साहेब ठाकरे ने उठाया था मुद्दा

मुंबई
 48 साल बाद कल्याण के ऐतिहासिक दुर्गाडी किले को लेकर बड़ा फैसला आया है। कल्याण सिविल कोर्ट ने दुर्गाडी के अंदर ईदगाह (प्रार्थना स्थल) के स्वामित्व का दावा करने वाले एक मुस्लिम ट्रस्ट के दायर मुकदमे को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। सिविल जज सीनियर डिवीजन एएस लांजेवार ने कहा कि यह निर्धारित किया गया है कि ट्रस्ट का दावा अमान्य है क्योंकि वह कथित बेदखली के बाद तीन साल की अवधि के भीतर मुकदमा दायर करने में विफल रहा, जो कि सीमा अधिनियम के तहत आवश्यक है।

दुर्गाडी किले में स्थित दुर्गाडी मंदिर और ईदगाह के स्वामित्व को लेकर कानूनी लड़ाई 1976 से चल रही है। मजलिश-ए-मुशावरीन मजीद ट्रस्ट ने मुकदमा दायर किया था। दुर्गाडी नमाज स्थल पर मुस्लिम समुदाय की दायर याचिका को मंगलवार को एक सिविल कोर्ट ने खारिज कर दिया और इसे ठाणे कलेक्टर (महाराष्ट्र सरकार) की भूमि घोषित कर दिया।

बॉम्बे हाई कोर्ट जाएगा मुस्लिम ट्रस्ट

ट्रस्ट अधिकारियों ने कहा कि वे इस आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील करेंगे। महाराष्ट्र में यह विवाद सबसे पहले दिवंगत बालासाहेब ठाकरे ने उठाया था। बाद में शिवसेना के पदाधिकारी आनंद दिघे ने यह मुद्दा उठाया। आनंद दिखे से उनके शिष्य एकनाथ शिंदे ने इस मुद्दे को लेकर मुखर थे।

महाराष्ट्र सरकार को दिया स्वामित्व

मुस्लिम ट्रस्ट के दावों को खारिज किए जाने के बाद, केस लड़ रहे हिंदू संगठनों के नेताओं के साथ-साथ शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना यूबीटी के नेताओं ने अदालत के फैसले पर खुशी जताई। चूंकि दुर्गाडी किला ऐतिहासिक और प्राचीन है, इसलिए महाराष्ट्र सरकार ने 1971 में इसे विरासत संपत्ति घोषित किया था। इसके साथ ही, दुर्गाडी किले का कब्जा और स्वामित्व राज्य सरकार के पास रहेगा।

पट्टे पर लिया था परिसर, बन गए मालिक

ट्रस्ट चाहता था कि सरकार दुर्गाडी ईदगाह और मंदिर को अपनी संपत्ति घोषित करे, क्योंकि 1968 तक स्थानीय मुस्लिम समुदाय इसका सक्रिय रूप से नमाज के लिए उपयोग करते थे। मुकदमे के अनुसार, उस समय सरकार ने कल्याण नगर परिषद को परिसर पट्टे पर दिया था। श्री दुर्गाडी देवी उत्सव समिति कल्याण और कल्याण शहर के कुछ हिंदू नागरिकों ने सिविल कोर्ट में एक आवेदन दायर किया था।

इस बीच, 2018 में मुस्लिम ट्रस्ट ने कल्याण सिविल कोर्ट में इस दावे को वक्फ बोर्ड, औरंगाबाद (संभाजीनगर) को हस्तांतरित करने के लिए एक आवेदन दायर किया। इस वाद में उन्होंने दावा किया गया कि उनके दावों पर निर्णय लेने का अधिकार वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आता है।

'मंदिर को मुसलमानों ने बनाया मस्जिद'

मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उक्त आवेदन पर एक आदेश पारित किया और मामले को वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित करने के उनके दावे को खारिज कर दिया। हिंदू मंच के अध्यक्ष दिनेश देशमुख का दावा है कि उपलब्ध अभिलेखों से पता चलता है कि दुर्गाडी किले पर एक दुर्गा मंदिर है। मुसलमान इसे ईदगाह कहते हैं, वह वास्तव में किले की दीवार है।

बालासाहेब ठाकरे को दिया श्रेय

भाजपा विधायक रवींद्र चव्हाण ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में राज्य सरकार इस मामले पर अदालत के आदेश को लागू करेगी। शिवसेना और सेना यूबीटी के स्थानीय पदाधिकारियों ने भी इस फैसले का स्वागत किया। उन्होंने दावा किया कि कानूनी लड़ाई के अनुकूल परिणाम का श्रेय दिवंगत बालासाहेब ठाकरे को जाता है।

क्‍या है पूरा मामला
इस जगह पर 1968 तक मंदिर और मस्जिद दोनों का इस्तेमाल दोनों समुदाय करते थे, लेकिन इसके बाद विवाद हो गया. इसके बाद साल 1967 में यहां पूजा करने पर भी रोक लगा दी गई. महाराष्ट्र सरकार ने 1968 में दुर्गाडी किले को लेकर आदेश जारी क‍िया. राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक, मुस्लिम पक्ष को केवल दो दिन रमजान ईद और बकरीद पर नमाज अदा करने का आदेश दिया. फिर 1976 में मजलिस नामक एक मुस्लिम संगठन ने दावा दायर किया कि सदर किला एक मंदिर नहीं बल्कि एक मस्जिद है. दावा कई वर्षों से लंबित था. बाद में मजलिस ने जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया. मजलिस के दावे के खिलाफ अदालत करीब 48 साल से सुनवाई कर रही थी. इसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया.

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