रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में शरद पूर्णिमा के अवसर पर मानकेश्वरी देवी मंदिर में सदियों पुरानी परंपरा के तहत बैगा ने बकरों की बलि देकर उनका खून पिया। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस दिन देवी मां बैगा के शरीर में प्रवेश करती हैं और बलि दी गई बकरों का खून पीती हैं। यह परंपरा लगभग 500 साल पुरानी है और आज भी जीवित हैं।
यह परंपरा रायगढ़ जिले के करमागढ़ स्थित मानकेश्वरी देवी मंदिर में शरद पूर्णिमा के दिन निभाई जाती है। मानकेश्वरी देवी रायगढ़ राजघराने की कुल देवी मानी जाती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन दोपहर बाद बलि पूजा का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
- बकरों और नारियल की चढ़ौती
श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जिनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वे बकरा और नारियल चढ़ाते हैं। पहले जहां 150 से 200 बकरों की बलि दी जाती थी, वहीं कोरोना के बाद यह संख्या घटकर 100 तक रह गई है। - निशा पूजा और देवी का वास
बलि पूजा से एक रात पहले निशा पूजा का आयोजन होता है। इस पूजा के दौरान राज परिवार से एक ढीली अंगूठी बैगा के अंगूठे में पहनाई जाती है, जो बलि पूजा के समय कसकर बैगा के अंगूठे में फिट हो जाती है। इसे देवी के बैगा के शरीर में प्रवेश करने का संकेत माना जाता है।
मानकेश्वरी देवी की चमत्कारी मान्यताएं
मंदिर के पूर्व अध्यक्ष युधिष्ठिर यादव ने बताया कि, पुरानी मान्यताओं के अनुसार, जब अंग्रेजों ने रायगढ़ के राजा को जंजीरों से बांध लिया था, तब राजा ने मां मानकेश्वरी को याद किया। मां के आह्वान पर मधुमक्खियों ने अंग्रेजों को दौड़ा दिया और राजा को मुक्त कर दिया। तब से इस मंदिर में पूजा की परंपरा जारी है। मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने पर परिवार वृद्धि या बीमारी जैसी समस्याओं का समाधान होता है।
इस बलि पूजा को देखने रायगढ़ के अलावा दूसरे जिलों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। रायगढ़ के जोबरो, तमनार, गौरबहरी, हमीरपुर, ओडिशा के सुंदरगढ़ और सारंगढ़ सहित कई गांवों से श्रद्धालु यहां आते हैं।