नई दिल्ली
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ स्थित राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय में आयोजित प्रथम दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता की और गोल्ड मेडलिस्ट छात्रों को पुरस्कृत किया। समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वतंत्रता के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई और वंचितों को श्रेय नहीं मिला। दुर्भाग्य है कि स्वाधीनता की लड़ाई में योगदान देने वाले महान नायकों की प्रेरक कहानियों का हमारी पाठ्य पुस्तकों में अब तक कोई उल्लेख नहीं है। यह दर्दनाक है कि स्वतंत्रता के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई और वंचितों को इसका श्रेय नहीं दिया गया।
उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों को चरित्र निर्माण की धुरी बनना होगा। प्राचीन काल से ही भारत में शिक्षा को महत्ता दी गई है। शिक्षा व्यावसायीकरण से प्रेरित नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, शिक्षा प्रणाली को बदलने के लिए एक दूरदर्शी रोडमैप है। युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के वास्तविक नायकों के बारे में जागरूक करना हमारा परम कर्तव्य है। यह सुखद है कि हाल के दिनों में हम पूरे देश में अपने गुमनाम नायकों या सुप्रसिद्ध नायकों का जोरदार जश्न मना रहे हैं। इतिहासकारों की अगली पीढ़ी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान इस पीढ़ी को प्रेरित करें।
धनखड़ ने कहा कि सभ्यताएं और संस्थाएं अपने नायकों से जीवित रहती हैं। राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक थे, जिन्हें हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में जगह दी जानी चाहिए थी। उनके जैसे नायकों के बलिदान के कारण ही आज हम एक स्वतंत्र वातावरण में जी रहे हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि 1915 में सिंह ने काबुल में भारत की पहली अस्थायी सरकार की स्थापना की थी, जो स्वतंत्रता उद्घोष करने का एक बहुत बढ़िया विचार था। उन्होंने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर और पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह को याद करते हुए कहा कि हमें अपने नायकों को पहचानने में इतना समय क्यों लगा। डॉ. अंबेडकर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देर से दिया गया। वर्ष 1990 में डॉ अंबेडकर, और 2023 में चौधरी चरण सिंह तथा कर्पूरी ठाकुर को सम्मानित किया गया।