रायपुर। परम पवित्र आश्विन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को तदनुसार २९/११/१९६६ को शुभ दिन शुभ नक्षत्र सिद्ध योग में। जिला जबलपुर तहसील पाटन ( अब शहपुरा) के ग्राम सूखा भारतपुर के परम कुलीन परिवार में
परम पूज्य पिता श्री भगवान प्रसाद तिवारी जी
एवं पूज्यनीया माता श्रीमती खोवा बाई तिवारी जी के यहाँ भगवान शंकर एवं माँ नर्मदा जी की अहैतुकी कृपा से एक विलक्षण पुत्र का जन्म हुआ। भाईयों के क्रम में तृतीय क्रम में जन्मे बालक की बाल्यकाल से ही ईश्वर आस्था माँ नर्मदा के प्रति प्रेम श्रद्धा उत्पन्न हो गई।
बाल्यकाल का नामकरण हुआ ” श्री रेवा प्रसाद तिवारी ” आपने पूज्य पिता जी के साथ रहते हुए विद्यालय की शिक्षा अपने गृह ग्राम सूखा भारतपुर मे ग्रहण की यही से संस्कृत भाषा के प्रति अपार प्रेम का उदय ह्रदय में उत्पन्न हुआ। तब आगे के अध्ययन हेतु।परम पूज्य अनन्तश्रीविभूषित् ज्योतिष् एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा स्थापित परमहंसी गंगा आश्रम में संचालित संस्कृत विद्यालय में प्रवेश किया कुछ वर्षों अध्ययन करने के बाद आप की विलक्षण बुद्धि और लगन ने आपको बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की ओर आकर्षित किया तब आपने निश्चित किया अब काशी में अध्ययन प्रारंभ हो और आपने काशी की यात्रा की। वहाँ जाकर आप आनन्द वनम् (लंका) नामक स्थान पर रहे और विख्यात विश्वविद्यालय श्री संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से अपना आचार्य पर्यन्त अध्ययन किया। इसी समय आपने अनेक स्थानों पर अनेक विद्वानों के साथ न्याय, वेदान्त, सांख्य ,व्याकरण , मीमांसा, साहित्य, और अपने प्रिय विषय ज्योतिष का अध्ययन किया। और साथ ही पूज्य शंकराचार्य जी को अपने पूज्य गुरुदेव मानकर 1983 से सेवा में तत्पर रहने लगे।
समय समय में चातुर्मास में जाना अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हुए अपने इष्ट मित्रों के साथ भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुन्दरी की आराधना में पूज्य गुरुदेव भगवान से प्राप्त की।
दस महाविद्यायो में आपने षोडशी और बगलामुखी की साधना की और सुदृढ़ साधकों में सम्मिलित हुए। साथ ही आपने PhD उपाधि प्राप्त की।
काशी अध्ययन के उपरांत पूज्य गुरुदेव भगवान की आज्ञा से आप मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में पंडित श्री लोकनाथ शास्त्री संस्कृत महाविद्यालय में अध्यापन हेतु पद गृहण किया सन् २००० मे और अपने अनेक शिष्यो को योग्य बनाया। जो आज अपने अपने क्षेत्र में प्रगति प्राप्त किये हुए हैं।। आपकी ईश्वर गुरु में निष्ठा अध्यात्म में निष्ठा होने के कारण वह समर्पण का शुभ दिन आया २००६ में परम पवित्र बसंत पंचमी का दिन जब आपको परम पूज्य प्रातः स्मरणीय अनन्त श्री विभूषित परिव्राजकाचार्य ज्योतिष एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु धर्म सम्राट ब्रह्मलीन श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के पावन सानिध्य में प्रातःकाल की बेला में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण की दीक्षा प्राप्त हुई। और पूज्य गुरुदेव भगवान द्वारा नामकरण हुआ ब्रह्मचारी डां सच्चिदानन्द जी महाराज।
पूज्य गुरुदेव भगवान की आज्ञा से आपको पूर्व मध्यप्रदेश और अब वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में श्री जगद्गुरु शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर के प्रभारी एवं मुख्य साधक के रूप में लाया गया।
परम पूज्य गुरुदेव भगवान के प्रथम प्रवास के उपरांत रायपुर आश्रम में आपका पुनः नामकरण किया गया नाम हुआ ब्रह्मचारी डां इन्दूभवान्द जी महाराज। तब से लेकर आज तक आप भगवती राजराजेश्वरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी की अनन्य उपासना में निष्ठा एवं भक्ति से तत्पर है साथ ही विद्या प्रदान भी कराने हेतु विद्यार्थीयों को अध्ययन कराते हैं। गौ सेवा हेतु गौशाला आदि का संचालन कुशल रीति से निर्वाह करते हैं। आपकी साधना ,विद्या , ज्ञान, स्वभाव, प्रेम, से सभी अत्यंत लाभान्वित हो रहे हैं। आश्रम में समय समय पर कार्यक्रम आपके मार्गदर्शन में होतें है।। सभी गुरु परिवार आपके सानिध्य में मार्गदर्शन में भगवती राजराजेश्वरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी एवं पूज्य गुरुदेव भगवान की साधना में लगे हुए है।।
भगवती राजराजेश्वरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी एवं पूज्य गुरुदेव भगवान से यही प्रार्थना है आपका सानिध्य हम सभी को प्राप्त होता रहें।। जय ललिते।
शरद पूर्णिमा होने वाले विभिन्न कार्यक्रम
(1) प्रातःकाल सिद्धेश्वर
महादेव का पूजन गणेश. हनुमान. भैरव. पूजन
(2) भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुन्दरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी का पूजन श्रंगार आरती सुबह 10:30 बजे
(3) अपराह्न 3:30 बजे गोशाला
गौ पूजन
(4) भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुन्दरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी का विशेष पूजन प्रारंभ सायंकाल 5 बजे से
(5) श्री यंत्र पूजन दीपार्चन रात्रि 8:15
(6) चौषठ योगी माताओ का पूजन रात्रि 9:15
(7) भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुन्दरी ललिता प्रेमाम्बा महारानी को पायस (खीर) भोग समर्पण
(8) परम पूज्य ब्रह्मचारी डां इन्दुभवानन्द जी महाराज का अभिनन्दन