रायपुर। संसार में हर कोई बड़ा बनना चाहता है और अपनी बड़ाई ही सुनना उसे पसंद है और अपने आपको को भगवान से कम नहीं आंकता। यदि राम बनना चाहते हो तो पहले सामने वाले की बड़ाई करना सीखो बड़ाई भी वही कर सकता है जिसमें बड़प्पन होता है जिसमें बड़प्पन नही है वह दूसरों की कभी बड़ाई नहीं कर सकता जिसके पास कुछ भी नहीं वह दूसरों को क्या देगा। भगवान अपने पास कभी कुछ नहीं रखते वह सब कुछ देते हैं। भगवान भी अपने भक्तों को पहचानते हैं जहां श्रद्धा होती है वहां बहस नहीं होती और जहां बहस होती है वहां श्रद्धा नहीं रहती है इसलिये जिस पर श्रद्धा हो वह जैसा कहें वैसा करना चाहिये। भगवान ने लंका विजय के बाद जब वानरों भालूओं से अपने-अपने घर चले जाने को कहा तो सभी चले गये लेकिन जो भगवान से अतिशय प्रेम करते थे उनकी आँखो से केवल आंसूओंं की धार बह रही थी ऐसे प्रेमी भक्तों को भगवान अपने साथ लेकर अयोध्या चले गये।
रामकथा विश्रांती पर संत श्री शंभू शरण लाटा ने भगवान श्रीराम के लंका विजय और रावण वध प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि ज्ञान और अभिमान एक साथ कभी नहीं रहते, जहां अभिमान होता है वहां ज्ञान चले जाता है और जहां ज्ञान रहता है वहां से अभिमान चले जाता है। मनुष्य को अपने किसी भी कार्य पर अभिमान नहीं करना चाहिए, अभिमान करने से उसका ज्ञान तो चले जाता ही है साथ ही दूसरे लोग भी उससे दूर होने लगते हैं। भगवान दर्शन के पात्र सभी है, हनुमानजी के दर्शन भी महिलाएं व बच्चियां कर सकती है लेकिन इस बात का सभी को ध्यान रखना चाहिए कि भगवान का दर्शन करते समय मूर्ति स्पर्श किसी को भी नहीं करना चाहिए। मूर्ति का स्पर्श केवल पुजारी ही कर सकता है क्योंकि मनुष्य दिन भर अपने हाथों से न जाने क्या-क्या कर्म करता है इसलिए इन हाथों को दूर रखकर ही भगवान के सामने शीश झुकाना चाहिए। भगवान के दर्शन का सबसे अधिक सुख तीन लोगों को प्राप्त हुआ। स्पर्श सुख गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या, पति सुख माता जानकी, शीश सुख मंदोदरी, पिता सुख हनुमान और मित्र का सुख बालि को प्राप्त हुआ। भगवान शत्रुओं को भी अपना सुख प्रदान करते हैं, वे शत्रुओं का भी भला करते है। उन्होंने रावण युद्ध में मारे गए राक्षसों का भी उद्धार किया, वे सभी का भला चाहते है।
उन्होंने हनुमान और रावण युद्ध प्रसंग पर कहा कि पहले तो रावण हनुमान जी की पूंछ तोड?ा चाहता था लेकिन जब हनुमान जी उसे आकाश में ले उड़े तो वह सोचने लगा कि पूंछ बची रहे। सभी भगवान जय-जयकार करने लगे लेकिन जय किसकी, जब रावण ने पूछा तो रावण की जय बोले, जब हनुमान ने पूछा तो उनकी जय बोलने लगे। आज संसार में स्थिति यही है। कोई कुछ करना नहीं चाहता केवल अपनी जय-जयकार सुनना चाहता है इसलिए चुनाव के समय किसी भी पार्टी के खिलाफ मुदार्बाद के नारे लगाने के बजाए जिंदाबाद के नारे लगाने चाहिए। भले वे काम करें या न करें लेकिन जिंदाबाद जरुर बोलिए। संत श्री शंभूशरण लाटा ने कहा कि सुंदरकांड के प्रत्येक कार्य में भगवान की कृपा का अनुभव करें भगवान के द्वारा किये गये कार्य बिना उनकी कृपा के नहीं हो सकते। गलतियां करने पर भगवान सभी को सम्हलने का मौका देते हैं अपराध करने पर यदि मनुष्य अपनी गलती मान ले और प्राश्यचित करे तो भगवान उसे भी माफ कर देते हैं यह संसार केवल भगवान के नाम से ही जुड़ सकता है और भजन से जुड़ता है। पहले परिवार में कोई भी कार्य होता था तो भगवान का भजन – कीर्तन जरूर होता था और उसमें सभी शामिल होते थे। लेकिन आज परिस्थितियां ठीक इसके विपरीत है आज घर में भजन बंद हो गये संस्कार चले गये हालात यह है कि भाई – भाई आपस में बैरी हो गये हैं।
फूलों की खेली गई होली
कथा विश्रांति पर लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी पर भगवान श्रीराम, सीता, लक्ष्मण के वापस अयोध्या लौटने पर उनका अयोध्यावासियों ने जो आदर-सत्कार, स्वागत किया इस प्रसंग का जब संतश्री शंभूशरण लाटा ने श्रद्धालुओं के समक्ष जब वर्णन किया तो खुशी के आँसू छलक पड़े, वहीं श्रद्धालुओं ने फूलों की होली खेलकर एक-दूसरे से खुशियां बांटी।