किसानों के लिए बेसुरा झुनझूना है बजटः डॉ. त्रिपाठी

रायपुर। केंद्र सरकार के बजट 2020 को इस मैराथन बजट को जिस बहादुरी से शहीदाना अंदाज में लगभग 3 घंटे तक खड़े रहकर, बिना पानी पिए , बिना रुके पढ़ा , उसने मुझे अपना प्रशंसक बना लिया। इस बजट से ग्रामीण भारत और किसानों को बड़ी उम्मीदें थी लेकिन बजट ने आम किसान को निराश किया. बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक व चैम्फ इंडिया के प्रमुख डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कही.
उल्लेखनीय है कि वित्तमंत्री ने बजट पेश करते हुए कहा है कि सरकार की ओर से कृषि विकास योजना को लागू किया गया है, पीएम फसल बीमा योजना के तहत करोड़ों किसानों को फायदा पहुंचाया गया. सरकार का लक्ष्य किसानों की आय दोगुना करना है. किसानों के लिए ऐलान करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमारी सरकार किसानों के लिए 16 सूत्रीय फॉर्मूले का ऐलान करती है, जिससे किसानों को फायदा पहुंचाएगा. कृषि भूमि पट्टा आदर्श अधिनियम-2016, कृषि उपज और पशुधन मंडी आदर्श अधिनियम -2017, कृषि उपज एवं पशुधन अनुबंध खेती, सेवाएं संवर्धन एवं सुगमीकरण आदर्श अधिनियम-2018 लागू करने वाले राज्यों को प्रोत्साहित किया जाएगा.
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि आजादी के बाद संभवतः यह पहला बजट भाषण है जो सबसे लंबा रहा लेकिन भाषण जितना लंबा था, किसानों के हित उतने ही छोटे रहे. सरकार ने पहले कार्यकाल में ही कहा था कि किसानों की आय 2022 तक दो दुनी की जाएगी, लेकिन सरकार ने जो इस दिशा में अब तक काम है वह निराश करने वाला है औऱ इससे नहीं लगता कि निर्धारित समय में इस उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है. इसी तरह किसानों के लिए पेंशन योजना को देखा जाए, तो सरकार ने इसमें एक पलीता लगाया है कि जो किसान एक निश्चित समय तक पेंशन के लिए एक न्यूतम राशि अंशदान के तौर पर जमा करेंगे उन्हीं किसानों को पेंशन मिल पाएगा. जो सरकार के किसान के प्रति संवेदनशीलता के दावे की पोल खोलता है. इस बजट में भी सरकार ने कृषि और *किसानों के लिए 16 सूत्री फार्मूले का एलान किया है,* इस फार्मूले में किसानों की हालत को सुधारने के लिए 16 उपाय किए जा रहे हैं। 16 की संख्या निश्चित रूप से किसी ज्योतिषी से पूछ कर ही रखी गई होगी,,,, *भारत में 16 की संख्या बड़ी महत्वपूर्ण है सनातन हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार मानव जीवन की प्रमुख 16 संस्कार होते हैं, भगवान कृष्ण की 16 कलाएं मशहूर है, नारियों के सोलह सिंगार होते हैं व्रतों में सोलह -सोमवार सबसे महान व्रत माना जाता है, सबसे शुद्ध वस्तु अथवा कीमतीधातु को सोलह आने टंच कहा जाता है ( जैसा कि हाल में ही हमारे रक्षा मंत्री जी ने प्रधानमंत्री जी को 24 कैरेट का बताया, अगर वह इसे हमारी राष्ट्रीय संस्कृति के अनुरूप कहते तो वे उन्हें सोलह आने तक खरा सोना कहते, पर जाने क्यों उन्होंने अपनी देसी पद्धति को छोड़कर विदेशी पद्धति , कैरेट से प्रधानमंत्री जी की शुद्धता को नापा ; खैर यह तो वही बता पाएंगे), पहले हमारे रूपए में कुल 16 आने होते थे , सोलहवां सावन भी कई ज्ञात अज्ञात कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता रहा है, कुल मिलाकर हमारा यह मानना है कि कृषि सुधारों के लिए बहुत सोच विचार के 16 की संख्या तय की गई होगी। कृषि सुधारों की घोषणाओं में मुझे कोई कमी नहीं दिखती।*
किंतु मजेदार बात यह है कि पिछले बजट में जो घोषणाएं की गई, वह कितने फीसदी धरातल पर उतरी उसका कोई लेखा-जोखा या समीक्षा नहीं की गई.
डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि इस निराशाजनक बजट से कृषि और किसानों की समस्याओं को हल करने में जहां विफल रहा है, वहीं इससे कई यक्ष प्रश्न भी खड़े हुए हैं. बीते दशक से आईसीयू में पड़ी भारतीय खेती-किसानी में जान फूंकने की हर सरकारों ने कोशिश के तौर पर कई घोषणाएं की, यह16 सूत्री सुधारों की घोषणाएं जमीन पर उतरेगी या इसका भी हश्र पिछली लुभावनी घोषणाओं की तरह ही तो नहीं होगा? किसान आखिर कब तक बाजार और इससे संबंधित आधारभूत संरचनाओं के लिए करेंगे इंतजार? जैविक खेती,जैविक भारत के नाम पर नारेबाजी और जीरो बजट की सोंसेबाजी होती रही है, रासायनिक खाद के लिए अस्सी हजार करोड़ का अनुदान, और जैविक खेती के लिए जीरो आवंटन और कमान नीम-हकीम विशेषज्ञों के हवाले है, तो इससे किसानों में कैसे उम्मीद व उत्साह जगेगा. देश की 52 % आबादी खेती-किसानी और इससे जुड़े कार्य व्यवसाय में संलग्न है, अतः इस क्षेत्र के लिए पृथक बजट की मांग बहुत पुरानी है लेकिन ऐसा नहीं लगता कि यह सरकार की प्राथमिकता में हैं. बजट पूर्व सरकार मुट्ठी भर उद्योगपतियों, व्यवसायियों आदि के सभी संगठनों से सलाह मशविरा करती हैं,पर बजट पूर्व देश के अन्नदाता किसानों से कभी चर्चा क्यों नहीं करती कि आखिर उनकी समस्याएं क्या है और इसे दूर करने के लिए उनके सुझाव क्या हैं?
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए बजट में दावा किया गया है लेकिन हकीकत यह है कि रसायनिक विधि से खेती के लिए तो 80 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये गये लेकिन जैविक खेती के प्रोत्साहन के लिए सीधे तौर पर कोई वित्तीय प्रावधान बजट में नहीं दिखा. जैविक भारत निर्माण महान लक्ष्य को परजीवी नीम हकीम विशेषज्ञों के हवाले कर दिया गया, एवं बजट के नाम पर इसे जीरो बजट की पूंगी थमा दी गई है। इसी तरह किसानों की माल ढुलाई के लिए विशेष रेल चलाने की घोषणा की गई है, किसानों के लिए ऐसी ही विशेष रेल चलाने की घोषणा कुछ वर्ष पूर्व रेल मंत्री लालू यादव ने अपने रेल बजट पर की थी किसान, किसानों की रेल ढूंढते ही रह गए और लालू जी जेल पहुंच गए. बहरहाल अभी की घोषणा का मंतव्य है कि इससे किसानों के उत्पाद देश के बड़े शहरों के बाजारों या अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच सकेंगे. लेकिन इस विशेष रेल का फायदा बड़े शहरों या राजधानी के आसपास रहने वाले गिनती के बड़े किसानों को ही होगा। इसके अलावा एक बहुत बड़ी घोषणा यह हुई है कि किसानों के कृषि उत्पाद अब हवाई जहाजों से देश तथा विदेशों में विक्रय हेतु जाएंगे, यहां यह सोचने वाली बात है कि, जहां आज देश के आम किसान के लिए अब भी तहसील औऱ जिला के मंडियों तक अपने उत्पाद पहुंचाना सुगम नहीं है तो उनकी पहुंच इन गिनती के हवाईअड्डों तक , अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक कैसे संभव हो पाएगी ? यह केवल बरगलाने वाली हवाई घोषणा है. सो इसका भी धरातल पर कोई विशेष असर नहीं पड़ने वाला है.
डॉ राजाराम त्रिपाठी ने जोर देते हुए कहा कि इस बजट में मंदी से उबरने की कोरी छटपटाहट नजर आती है, लेकिन उसके लिए कोई ठोस प्रयास नहीं दिखता. जब तक ग्रामीणों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तब तक अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ने की कल्पना बेमानी है. अजीब बात है कृषि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रैक्टर को बैंक से ऋण लेने पर किसानों को 14 फीसद दर से ब्याज देना पड़ता है जबकि मारुति कार पर लोन लेने पर 6 प्रतिशत ब्याज दर है. इसी प्रकार उम्मीदों के अनुसार आय कर सीमा में भी छूट नहीं दी गई है. बल्कि कृषि से आय़ पर कर में छूट का प्रावधान है लेकिन कृषि आय़ दर्शाने पर भी बड़े किसानों को आय़कर विभाग से नोटिस या सम्मन भेजे गये हैं.
बजट में कृषि क्षेत्र पर किए जाने वाले ऋणों, उनकी ब्याज दरों में कोई विशेष रियायत नहीं दी गई है. नोटबंदी के बाद सबसे ज्यादा मार किसानों पर पड़ी थी. सब्जी उत्पादक किसान तो पूरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं. ऐसे में किसानों के लिए बजट में विशेष पैकेज देने का ऐलान किया जाना चाहिए था लेकिन कोई राहत नहीं दी गई है. इससे किसानों में भारी निराशा है।

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