नई दिल्ली। सरस्वती नदी और उससे पनपी सभ्यता का पता लगाने के लिए हो रहे शोधों की कड़ी में नया दावा सामने आया है। इसके मुताबिक यमुना ही असल में सरस्वती नदी है। पहले इस नदी का प्रवाह क्षेत्र हरियाणा से पंजाब, राजस्थान, गुजरात के दक्षिण पश्चिमी भाग और पश्चिम पाकिस्तान तक था। हजारों साल पहले बदलाव सरस्वती नदी को लेकर उत्तराखंड के भू-वैज्ञानिक जेएस रावत का शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑफ साइंस एंड रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
ऐसे बदला नदी का प्रवाह तंत्र
शोध में दावा किया गया है कि होलोसीन के समय करीब 30 हजार से 8500 वर्ष पूर्व नदी का प्रवाह तंत्र बदला। जो इस समय उत्तराखंड से हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज तक है। लोथल और मोहनजोदड़ो वास्तव में सरस्वती (यमुना) के किनारे विकसित सभ्यता हैं। भूगर्भीय, पुरातात्विक और रासायनिक प्रमाणों से इसका पता चला कि यह पूरी तरह स्वदेशी सभ्यता है। इसे मध्य एशिया से आने वाले आर्यों ने विकसित नहीं किया।
ये हैं सरस्वती नदी के सभ्यता क्षेत्र
सरस्वती का प्रवाह सरस्वती नदी का सभ्यता क्षेत्र हरियाणा में भिरना, कुणाल, महम, फरमाना, पौली, धानी, राखीगढ़ी, बालू, सीसवाल, पंजाब में दलेवान, लखमीरावाला, राजस्थान में कालीबगान, सूरतगढ़, अनूपगढ़, किशनगढ़, सोठी, मेहरगढ़, कच्छ के रण, पाकिस्तान में चोलिस्तान, गनवेरीवाला, किला अब्बास, मारोट, मोहनजोदड़ो, मिताथल तक था।
जहां बहती थी गंगा, वहां अब यमुना बह रही
जेएस रावत के मुताबिक, हजारों सालों में न सिर्फ यमुना बल्कि गंगा, गोमती, शारदा और घाघरा नदी ने भी प्रवाह बदला। एक समय गंगा नदी भी ऋषिकेश से दिल्ली के बीच बहती थी। लगभग 8,500 वर्ष पहले यमुना ने ठीक वही रास्ता अपनाया, जहां गंगा बहती थी।
सरस्वती के किनारे पनपी सबसे पुरानी सभ्यता
नील नदी बेसिन में जिस तरह विभिन्न सभ्यताओं का जन्म हुआ, उसी तरह सरस्वती नदी के किनारे भी सबसे पुरानी सभ्यता पनपी। इसके बाद सरस्वती के नए प्रवाह क्षेत्र को यमुना के नाम से जाने जाने लगा।
– जेएस रावत, शोध वैज्ञानिक