भिलाई। पंडवानी के पुरोधा और गुरु दिवंगत झाड़ू राम देवांगन के गृहग्राम बासीन भिलाई में छत्तीसगढ़ आदिवासी लोक कला अकादमी, छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा आयोजित पंडवानी समारोह रविवार को देर रात तक चला। आखिरी दिन खचाखच भरे आयोजन स्थल में महाभारत के अलग-अलग प्रसंगों की कलाकारों ने सधी हुई प्रस्तुतियां दी। इन प्रस्तुतियों को देखने सुनने हजारों की तादाद में स्थानीय सहित आस-पास के तमाम ग्रामवासी मौजूद थे।
तीसरे दिन के कार्यक्रम की शुरूआत पंडवानी के पुरोधा दिवंगत झाड़ूराम देवांगन के तैलचित्र पर श्रद्धासुमन अर्पण के साथ हुई। छत्तीसगढ़ आदिवासी लोककला अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने पंडवानी गुरू झाड़ूराम देवांगन के पंडवानी के प्रति योगदान का स्मरण किया। ग्राम बासीन के पंच-सरपंचगणों ने भी स्व. झाड़ूराम देवांगन को अपनी श्रद्धांजलि दी। इस दौरान एक के बाद एक पंडवानी के सिद्ध कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। इन सभी पंडवानी कलाकारों का संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सम्मान किया गया।
शुरूआत में अर्जुन सेन ने कापालिक शैली में द्रोण पर्व व जयद्रथ पर्व प्रसंग सुनाया। इस दौरान रागी के साथ उनका तालमेल खूब सराहा गया। प्रभा यादव ने कर्ण पर्व व कर्ण वध का दृश्य मंच पर सजीव कर दिया। कर्ण वध का मार्मिक चित्रण उन्होंने पंडवानी के माध्यम से किया, जिससे ग्रामीण भी भावुक हो गए। भिलाई से पहुंची ऊषा बारले ने भीम-दुर्योधन युद्ध का जीवंत चित्रण किया। इस दौरान ऊषा ने तंबूरे के साथ अपने अभिनय का प्रदर्शन करते हुए युद्ध के दृश्य में वीर रस का पुट दिया, जिससे उपस्थित ग्रामीणों बेहद सराहा। भिंभौरी बेरला की प्रख्यात पंडवानी कलाकार शांति बाई चेलक ने भीष्म अम्बा संवाद से दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।
तीन दिवसीय इस आयोजन को सफल बनाने में ग्राम पंचायत बासीन सरपंच के प्रमोद साहू, उप सरपंच पोषण सोनी, कुंज बिहारी देवांगन, ओमप्रकाश साहू, पुनीत वर्मा, डॉ. अवध सोनी, डॉ. तरुण वर्मा,डॉ. त्रिलोकी वर्मा, राम खिलावान कौशिक, थानू राम बंछोर, राकेश बंछोर, तीरथ साहू,चन्द्रिका साहू, रोशन साहू,शम्भू निषाद, मुकेश बंछोर, केजू यादव, मन्नू यादव और बिशनाथ साहू सहित बासीन के समस्त ग्रामवासियों का योगदान रहा।
छत्तीसगढ़ आदिवासी लोककला अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने बताया कि पूरा आयोजन बेहद सफल रहा। पंडवानी गुरु झाड़ूराम देवांगन ने जो बीजारोपण किया था, अब वह वटवृक्ष बन चुका है और पंडवानी के कई कलाकार देश-विदेश और स्थानीय स्तर पर अपनी प्रस्तुतियों से इस कला को ऊंचाईयां दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह पहला अवसर है, जब एक ही मंच पर पंडवानी की दोनों शैलियों में भी अलग-अलग ढंग के प्रस्तुतिकरण देखने को मिले। इससे ग्रामीणों को पंडवानी विधा को और करीब से देखने-समझने का अवसर मिला।