बिहार। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बेहद करीबी का रिश्ता रहा। उन्होंने बिहार के जिन लोगों के साथ लंबे समय तक काम किया, उनमें नीतीश कुमार प्रमुखता से शामिल हैं। अटल बिहारी वाजपेयी और नीतीश कुमार ने साथ मिलकर बिहार के लिए बहुत कुछ किया। यही वजह है कि नीतीश कुमार यह कहते थकते नहीं हैं कि अटल जी के साथ राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में काम करते उन्होंने जो सीखा उसका आज भी पालन कर रहा हूं। 25 दिसंबर को भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी की जयंती पर बिहार उन्हें नमन करता है।
साल 1996 में नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच गठबंधन हुआ। उस समय पार्टी का पूरा नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में हुआ करता था। उससे पहले 1995 में ही नीतीश कुमार और अटल जी के बीच अच्छे संबंध बन गए थे। नीतीश कुमार 1995 में मुंबई में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पहुंच गए थे। उस मीटिंग में जॉर्ज फर्नांडीस भी मौजूद थे। अपने एक आलेख में नीतीश कुमार कहते हैं कि उस वक्त बीजेपी को साथियों की जरूरत थी और उन्हें समता पार्टी वाले विधानसभा में हारने के बाद एक सशक्त साझीदार की तलाश थी। उस समय दोनों पक्ष बिहार में लालू यादव को सत्ता से बेदखल करने वाले एक मजबूत प्लेटफॉर्म की जरूरत महसूस कर रहे थे।
गठबंधन धर्म निभाने में अटल बिहार वाजपेयी का व्यक्तित्व असाधारण था। नीतीश कहते हैं कि उन्हें तब भारी आश्चर्य हुआ जब अटल जी और आडवाणी जी रामजन्म भूमि, समान आचार संहिता और धारा-370 की समाप्ति जैसे मुद्दों को कुछ समत तक के लिए ठंडे बस्ते में डालने के लिए राजी हो गए। 1996 में बीजेपी और समता पार्टी ने चुनाव लड़े और दो अंकों में सीटें प्राप्त की। अटल जी के व्यक्तित्व को याद करते हुए नीतीश कुमार कहते हैं कि अटल जी उनके पूर्व संसदीय क्षेत्र बाढ़ में आया करते थे। वाजपेयी जी जब प्रचार करने आते तो राजनीतिक तौर पर विरोधी भी बैठकर उनका भाषण सुनते। लोकसभा चुनाव 1999 की एक घटना याद करते हुए नीतीश कुमार कहते हैं कि अटल जी उस एक रिपोर्ट से चिंता में पड़ गए जिसमें बताया गया था कि मैं चुनाव हार रहा हूं। उस सम. बैलट पेपर से वोटिंग होती थी और काउंटिंग में काफी समय लगता था। कई बार नतीजे आने में दो से तीन दिन लग जाते थे। अटल जी ने काउंटिंग की प्रोगेस जानने के लिए मुझे फोन किया। जब मैंने उन्हें मजबूती के साथ बताया कि नतीजे मेरे पक्ष में हैं, तब उन्होंने फोन रखा। 1999 की गैसल रेल दुर्घटना को याद करते हुए नीतीश कुमार कहते हैं कि 300 यात्रियों की मौत की जिम्मेदारी लेते हुए मैंने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अटल जी उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। काफी मेहनत करके उन्हें मनाना पड़ा।
अटल जी बिहार की जरूरतों और मांगों को लेकर काफी उदार थे। वाजपेयी ने 2004 में अपने कार्यकाल में पटना सहित देश के अन्य भागों में कुल छह एम्स खोले जाने की योजना की परिकल्पना की थी। 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान 350 करोड़ की परियोजना की आधारशिला रखी गई थी। 25 दिसंबर 2012 को पटना AIIMS का उद्घाटन किया गया। उसी दौरान 6 जून 2003 को प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कोसी नदी पर रेल पुल की नींव रखी गई। 17 साल बाद यह पुल बनकर तैयार हुआ है, जिसका उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने किया।
नीतीश कुमार कई मामलों में अटल जी गुरु मानते हैं। कहते हैं कि अटल जी का नेतृत्व नहीं होता तो वह गवर्नेंस के उन आधारभूत चीजों को नहीं सीख पाते। नीतीश आज भी वाजपेयी जी से मिली सीख का पालन करने का दावा करते हैं। उन्होंने ही सिखाया कि दूसरे नेताओं का विरोध उनके प्रति विनम्र रहकर भी किया जा सकता है। संसदीय लोकतंत्र की राजनीति में उनका सहज और निष्पक्ष विश्वास, सहयोगियों के साथ सम्यक व्यवहार उनकी पहचान है। जयंती पर पूरा देश अपने प्रिय नेता को याद कर रहा है।