रायपुर। कहते हैं जहां कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है वहां मुश्किलें भीहार मान लेती है। जो महिलाएं कल तक खेती बाड़ी एवं रोजी मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रही थीं। आज वहीं महिलाएं स्वरोजगार के ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश कर रही है जिसके बारे में पहले किसी ने सोचा तक नहीं था और एक निश्चित आमदनी उनके हाथ में होने से इन महिलाओं के आत्मविश्वास में भरपूर इजाफा हुआ है। घर परिवार की होने वाली आय में अब उनका योगदान एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित हो रहा है। यह सकारात्मक बदलाव आया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के माध्यम से। इस बदलाव का प्रभाव जनपद पंचायत आरंग के एक गांव चपरीद की जय माँ बंजारी, स्व सहायता समूह की सदस्यों पर भी हुआ है। आजीविका में जुडने से पहले समूह सदस्यों द्वारा प्रति सदस्य 20 रू. साप्ताहिक बचत किया जाता था एवं रोजमर्रा की जरूरतों के लिए खेती बाड़ी एवं रोजी मजदूरी का काम किया जाता था पर अब घर में ही कार्य करते हुए पांच से सात हजार महीने तक कमा रही है।
समूह की सदस्य तारामती साहू बताती है कि उन्हें अपना खुद का कुछ काम शुरू करने की इच्छा थी, लेकिन आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होने के कारण काम शुरू करने के लिए पूंजी की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। जैसे ही राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान के तहत आजीविका शुरू करने की जानकारी मिली, उन्होंने गांव के महिला स्व सहायता समूह से जुड़कर मंजिल की ओर अपना कदम बढ़ाया। उन्होंने बताया की वो 2015 से आजीविका गतिविधि से जुड़ी है, और अपनी आजीविका अच्छे से चला पा रही है।
उन्होंने अपने समूह से 5000 रुपए का ऋण लेकर सिलाई मशीन खरीदा और अपना एक छोटा सा कार्य शुरू किया जिससे उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी। अपने कार्य, को आगे बढ़ाने के अपने समूह में बात रखी तो समूह के सभी सदस्यों ने उनका साथ दिया और आगे बढ?े के लिये प्रेरित किया। सदस्यों की प्रेरणा से उन्होंने पार्लर का काम सीखा और समूह से 25000 रुपए का ऋण लेकर अपना कार्य शुरू किया जिससे हर माह वो घर पर ही रह कर कार्य करते हुए पांच से सात हजार रुपये तक कमा रही है। इससे उनका मनोबल बढ़ा है साथ ही अच्छी आमदनी से परिवार भी बहुत खुश हैं, अब परिवार की अतिरिक्त आवश्यकताएं, बच्चों की पढ़ाई के खर्च की चिंता से राहत भी मिली है।