रायपुर। जिसकी समस्या पेट है उसका पेट कभी नहीं भरता और जिसका नहीं उसके पास कोई समस्या नहीं रहती है। मुक्ति का मार्ग नहीं निकालेगे तो विद्या भी बंधन का कारण बन सकती है। वैराग्य के लिए विचार का होना जरूरी है। भगवान भक्त के बगैर और भक्त भगवान के बगैर कुछ नहीं। सच्चिदानंद के लिए सद्,चित्त और आनंद को जोडऩा पड़ेगा। भगवान भक्तों के साथ रहकर आनंद करते हैं तो वह परमानंद है।
मैक कालेज आडिटोरियम समता कालोनी में श्रीराम कथा सत्संग के दौरान स्वामी मैथिलीशरण भाईजी ने मानस के कई प्रसंगो को उद्धृत करते हुए बताया कि पढऩे से विद्या तो मिल जाती है पर बुद्धि का अनुभव प्राप्त करने उस स्कूल-कालेज की चारदीवारी से निकलना होगा। मुक्ति का मार्ग नहीं निकालोगे तो विद्या भी बंधन का कारण हो सकती है। हनुमान जी और पंचकोष को जोड़ते हुए वृतांत बताया कि उन्होने कभी भी अपने किसी कार्य को पुरूषार्थ नहीं माना। रामजी से विदा लेकर गए तब और जब सीता जी मिलकर लौटे तब दोनों ही स्थितियों में उन्होने आर्शिवाद को कृतज्ञिता के रूप में स्वीकारा है। कोई भी कार्य करते समय उन्होने भगवान को अपने ह्दय के अंदर पाया।
भगवान की सत्ता से जुड़ जायेंगे तो हमारी सत्ता होगी नहीं तो कुछ भी नहीं। अपने आप को भगवान से जोड़ लीजिए,अंदर से स्वीकार कर लें कि जो हम हैं वह भगवान के हैं तो उस दिन हममें और हनुमान जी में कोई अंतर नहीं रह जायेगा। जीवित शरीर में जो प्राण दिखाई देता है उस प्राण के प्राण(राम)आप हैं। जिस प्रकार धनुष बाण के बगैर कुछ नहीं है ठीक वैसे ही भगवान भक्त और भक्त भगवान के बगैर कुछ नहीं हैं। सच्चिदानंद बनने के लिए सद् चित्त और आनंद को जोडऩा पड़ेगा भगवान भक्तों के साथ रहकर आनंद करते हैं तो वह परमानंद है।
भाई जी ने आगे कहा कि हर आदमी आज अपनी समस्या लेकर बैठा है। जिसकी समस्या पेट हैं,वह कभी नहीं भरता तो उसकी समस्या कभी खत्म नहीं होती है। जिसकी नहीं उसकी कोई समस्या नहीं रहेगी। हर बेटा अपने पिता की तरह बन गया तो सृजनकर्ता की क्या जरूरत रह जायेगी। इसके लिए विचारधारा को स्वतंत्र रखना होगा। समस्या को मानस से जोड़ते हुए उन्होने कहा कि हनुमान जी को राम की और राम जी को हनुमान की चरित्र सुनाओ आपके जीवन में कोई समस्या नहीं रहेगी।
भगवान को प्रसाद लगाया जाता है,प्र्रसाद बनाने विभिन्न साधनों का उपयोग किया जाता है। भगवान उस प्रसाद को पा रहे हैं,उन्होने स्वीकार लिया तो माया बची क्या? भगवान की कृपा प्रसाद है तो वह माया कैसे? ग्रंथ से ऊपर नहीं उठोगे तो अनुभव नहीं जागेगा। वेदों में पंचकोषो को भी माया के घेरे के अंदर रख दिया गया है। यह अनुभव व दृष्टि का विषय है। जिसको देखने और सुनने व अनुभव करने वाले आप हम माया के अधीन हैं। यदि भाव आ गया तो प्रसाद पंचकोषों से ऊपर है।