तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए घातक, कड़ी सजा जरूरी

नई दिल्ली

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि तीन तलाक समाज में वैवाहिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है और यह मुस्लिम महिलाओं की हालत दयनीय बना देता है। केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल करके सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क दिया है। केंद्र सरकार ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में जारी तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का 2017 का आदेश भी तलाक के केसों को कम नहीं कर पा रहा है। ऐसे में इसे क्रिमिनलाइज किया जाना जरूरी है।

केंद्र सरकार ने कहा, तीन तलाक की पीड़िताओं के पास पुलिस के पास जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह जाता है। वहीं पुलिस भी इस मामले में मजबूर हो जाती थी क्योंकि कानून में कड़ी कार्रवाई का प्रावधान ना होने की वजह से आरोपी पति पर ऐक्शन लेना मुश्किल हो जाता था। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका में कहा गया था कि जब कोर्ट ने तीन तलाक को आवैध करार दे दिया है तो इसे क्रिमिनलाइज करने का कोई मतलब नहीं है। इसी याचिका को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष रखा है।

दरअल इस महीने की शुरुआत में ही समस्त केरल जमाइतुल उलेमा की तरफ से याचिका फाइल की गई थी। यह सुन्नियों का एक संगठन है। याचिकाकर्ता ने मुस्लिम महिला (विवाह के बाद अधिकारों की रक्षा) कानून 2019 को असंवैधानिक बताया गया था। याचिकाकर्ता कहना है कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। धर्म के आधार पर किसी कानून में इसे अपराध नहीं बताया जा सकता।

वहीं केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता के दावों को खारिज करते हुए कहा कि तीन तलाक महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन करता है। संविधान में महिलाओं को भी बराबरी का अधिकार दिया गया है। संसद ने सर्वसहमति से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाया है। इसमें लैंगिक न्याय और महिलाओं के समानता के अधिकार को सुनिश्चित किया गया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुका है कि संसद द्वारा बने कानून पर वह बहुत ज्यादा चर्चा नहीं करना चाहता। कानून बनाने का काम विधायिका का है और उन्हें अपना काम करने देना चाहिए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *